चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई को प्रक्षेपित कर दिया गया है. यह प्रक्षेपण LVM 3 रॉकेट के ज़रिए किया गया है. जिसे पहले जीएसएलवी मार्क 3 के नाम से जाना जाता था. इसरो के इस मिशन के कुछ अहम लक्ष्य तय किए गए है –
- चंद्रयान- 3 के लैंडर की चन्द्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ़्ट लैंडिंग.
- इसके रोवर को चंद्र की सतह पर चलाकर दिखाना.
- वैज्ञानिक परीक्षण करना.
- चांद की सतह पर रासायनिक तत्वों और मिट्टी, पानी के कणों जैसे प्राकृतिक संसाधनों का परीक्षण करना
- चंद्रयान-3 पर स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री ऑफ़ विजेटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPI) भी लगा होगा जिससे हमारे वैज्ञानिकों को चंद्रमा की कक्षा के छोटे ग्रहों और हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित ऐसे अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए महत्वपूर्ण डेटा हासिल हो सकेगा जहां जीवन संभव है.
- वैज्ञानिक उपकरणों में सिस्मोमीटर भी शामिल है ताकि चांद के भूकंप को मापा जा सके.
चंद्रयान का इतिहास
चंद्रयान-3 चंद्र को लेकर इसरो का तीसरा अंतरिक्ष अभियान है. भारत ने अपना पहला चंद्र अभियान चंद्रयान-1 2008 में प्रक्षेपित किया था. उस पर एक ऑर्बिटर और इम्पैक्ट प्रोब भी था लेकिन यह शेकलटन क्रेटर के पास क्रैश हो गया था. बाद में इस जगह को जवाहर पॉइंट का नाम दिया गया. इसके साथ ही भारत चांद पर अपना झंडा फहराने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया.
उससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ये कामयाबी हासिल कर चुके थे. 10 साल के बाद 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान- 2 विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के साथ प्रक्षेपित किया गया, लेकिन 6 सितंबर 2019 को जब इसने चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की कोशिश की तो विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था विक्रम लैंडर भले ही असफल रहा लेकिन ऑर्बिटर चंद्रमा और इसके वातावरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करता रहा है. चंद्रयान- 2 की तरह चंद्रयान- 3 के पास भी एक लैंडर (वो अंतरिक्ष यान जो चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग करेगा) और एक रोवर होगा (वो अंतरिक्ष यान जो चांद की सतह पर घूमेगा) जैसे ही यह चांद की सतह पर पहुंचेगा, लैंडर और रोवर अगले एक लूनर डे या चंद्र दिवस यानी धरती के 14 दिनों के समान समय के लिए सक्रिय हो जाएंगे. इसरो के चंद्र अभियान का लक्ष्य चांद के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में सॉफ़्ट लैंडिंग करने का है.
सॉफ्ट लैंडिंग क्या है ?
अंतरिक्ष यान की लैंडिंग-किसी अंतरिक्ष यान के चांद पर दो तरह से लैंडिंग हो सकती है
- सॉफ़्ट लैंडिंग जिसमें अंतरिक्ष यान की गति कम होती जाती है और वो धीरे-धीरे चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतर जाता है.
- हार्ड लैंडिंग वह होती है इसमें अंतरिक्ष यान चांद की सतह से टकरा कर क्रैश हो जाता है.
आर्टेमिस समझौता क्या है?
अलग अलग देशों के चंद्र अभियानों के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए नासा और अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आर्टेमिस समझौते की व्यवस्था की है. यह एक बहुपक्षीय ग़ैर बाध्यकारी व्यवस्था है जो चंद्रमा, मंगल ग्रह और अन्य खगोलिए पिंडों के असैनिक अन्वेषण और शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है. भारत आधिकारिक रूप से इस आर्टेमिस समझौते में हाल में शामिल हुआ है.
आदित्य- एल1 क्या है ?
आदित्य- एल1 भारत का पहला सौर अभियान है जो अगस्त 2023 में प्रक्षेपित किया जायेगा. इस अभियान पर भेजा जाने वाला अंतरिक्ष यान सूर्य पर नहीं जाएगा, बल्कि धरती से 15 लाख किलोमीटर की दूरी से इसका अध्ययन करेगा. एल-1 या लॉन्ग रेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच वो जगह है जहां से सूरज को बग़ैर किसी ग्रहण के अवरोध के देखा जा सकता है. आदित्य- एल1 ऊपरी सौर वायुमंडल (क्रोमोस्फ़ेयर और कोरोना) चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और सौर वायु इत्यादि का अध्ययन करेगा.