क्या  चुनाव आयुक्त (EC) और मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए ? – UPSC
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क्या चुनाव आयुक्त (EC) और मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए ? – UPSC

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चुनाव आयोग (EC) के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में साल 2018 में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में माँग की गई थी कि चुनाव आयुक्त (EC) और मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से कुछ सवाल पूछे है –

  • चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के संदर्भ में क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही है?
  • यदि कभी किसी पीएम पर आरोप लगे तो क्या आयोग उनके ख़िलाफ़ ऐक्शन ले सकता है या कभी लिया है ?
  • 1991 के अधिनियम के तहत पद धारण करने वाले मुख्य निर्वाचन अधिकारी का कार्यकाल छह साल का है। फिर उनका कार्यकाल कम क्यों रहता है?
  • नियुक्ति के मामले में संविधान की ख़ामोशी और क़ानून की कमी के कारण सरकारों का जो रवैया रहा है वो परंपरा क्या परेशान करने वाली नहीं है?

सुधार क्यों जरूरी है ?

1993 में बहुसदस्यीय चुनाव आयोग बन जाने के बाद से कई बार इस बात को उठाया जा चूका है कि आयुक्तों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष को भी शामिल किया जाना चाहिए। लॉ कमीशन ने भी यह सिफ़ारिश की थी। आज हालत यह है कि हर नया चुनाव आयुक्त सरकार को ख़ुश करने में लग जाता है क्योंकि उसे पता है कि वो सीईसी बनेगा या नहीं यह सरकार की मर्ज़ी पर ही निर्भर करता है। चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम जैसी होनी चाहिए। सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त का सीआईसी बनना सुनिश्चित किया जाना चाहिए जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बनते हैं। सीईसी को तो यह सुरक्षा है कि उसे बिना महाभियोग की प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता है लेकिन चुनाव आयोग के दूसरे दो सदस्यों को हटाना बहुत आसान है। दोनों चुनाव आयुक्तों को सीईसी के रहमो करम पर छोड़ना ग़लत है, उन्हें भी यही सुरक्षा मिलनी चाहिए जो सीईसी को हासिल है। सवैधानिक संस्थाओ की निष्पक्षता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने जो मुद्दा उठाया है वह सकारातमक पहल है।

आज देश में शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़रूरत है जिन्हे आयोग में कई ऐतिहासिक सुधारों के लिए जाना जाता है। 1993 में उन्होंने कहा था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा। शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख़्शा। उन्होंने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया और चारों बार चुनाव की तारीखें बदली गईं। ये बिहार के इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था। शेषन का सबसे बड़ा योगदान था कि वो चुनाव आयोग को ‘सेंटर- स्टेज’ में लाए। इससे पहले तो मुख्य चुनाव आयुक्त का पद गुमनामी में खोया हुआ था और हर कोई उसे ‘टेकेन फ़ॉर ग्रांटेड’ मान कर चलता था।

यह सोच भी पूरी तरह से सही नहीं है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस किसी चयन प्रक्रिया में होंगे तो सबकुछ ठीक हो जाएगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश सीबीआई निदेशक के चयन समिति में शामिल हो गए हैं लेकिन क्या इससे कहा जा सकता है कि सीबीआई की छवि बेहतर हुई है और वो एक निष्पक्ष और स्वतंत्र एजेंसी के रूप में काम करने लगी है?