इस लेख में आप पढ़ेंगे: High Seas Treaty की चुनौतियाँ – UPSC
सितंबर में 60 से अधिक देशों द्वारा उच्च सागर संधि का अनुसमर्थन (ratification) किया गया है। इस शर्त को पूरा करने पर, यह संधि अब जनवरी 2026 में लागू होगी। यह संधि समुद्री जैव विविधता को स्थायी रूप से संरक्षित और उपयोग करने के लिए नियम निर्धारित करती है और जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्रदूषण से होने वाले खतरों का समाधान करती है।
उच्च सागर संधि, जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर समझौता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction – BBNJ) भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य उन महासागरों की रक्षा करना है जो किसी भी देश की सीमा के बाहर हैं। इस संधि के तहत, 2023 में सरकारों ने उच्च महासागरों (जिसे अंतरराष्ट्रीय जल भी कहते हैं) में समुद्री जीवन के संरक्षण, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना, और इन क्षेत्रों में की जाने वाली किसी भी आर्थिक गतिविधि के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने जैसे मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा तैयार किया है। यह ढांचा साझा समुद्री जैव विविधता को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए आवश्यक है।
उच्च सागर संधि के मुख्य उद्देश्य हैं:
- यह समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (Marine Genetic Resources/ MGR) को मानव जाति की साझी विरासत के रूप में पहचानता है और लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारे पर ज़ोर देता है।
- इसके क्षेत्र-आधारित प्रबंधन साधनों (ABMT/ Area based management tools) में समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA / Marine Protected Areas) शामिल हैं जिन्हें जैव विविधता की रक्षा के लिए मान्यता दी जा सकती है। यह विज्ञान और स्वदेशी ज्ञान के संयोजन से जलवायु रेसिलिएंस बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार, वर्तमान में महासागर का केवल 6.35 प्रतिशत ही संरक्षित है, लेकिन केवल 1.89 प्रतिशत ही विशिष्ट MPA के अंतर्गत आता है (जो मछली पकड़ने, खनन, ड्रिलिंग या अन्य निष्कर्षण गतिविधियों की अनुमति नहीं देता है)।
- यह संधि इन क्षेत्रों को संभावित रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA/ Environmental Impact Assessment) भी प्रदान करती है।
- यह संधि क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी ज़ोर देती है ताकि विकासशील देश भी संरक्षण में हिस्सा ले सकें।
इस संधि की आवश्यकता संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS), 1982 में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए महसूस की गई थी, जिसमें बीबीएनजे की सुरक्षा के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं थे।
संधि सम्बन्धी प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- पहला, “मानव जाति की साझी विरासत” और “उच्च समुद्र की स्वतंत्रता” के सिद्धांतों पर अनिश्चितता। “साझी विरासत सिद्धांत” सभी के लिए समुद्री संसाधनों तक समान पहुँच और लाभ-बंटवारे का समर्थन करता है, जबकि “उच्च समुद्र पर स्वतंत्रता” राज्यों के नौवहन, संसाधन उपयोग और अनुसंधान गतिविधियों के अप्रतिबंधित अधिकारों पर ज़ोर देती है। हालाँकि, साझी विरासत सिद्धांत आंशिक रूप से ही लागू होता है, खासकर जब बात MGR की हो। यह समाधान के बजाय समझौता दर्शाता है। यह अन्वेषण, अनुसंधान और लाभ-बंटवारे में भी अस्पष्टता पैदा करता है।
- दूसरा, समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGR) का उपयोग है। MGR के संचालन को पहले परिभाषित नहीं किया गया था, जिससे विकसित देशों द्वारा “जैव चोरी” (bio-piracy) और अनुचित शोषण की चिंताएँ बढ़ गई थीं। विकासशील देशों को चिंता थी कि उन्हें समुद्र में वैज्ञानिक खोजों के लाभों से वंचित कर दिया जाएगा। संधि में अब मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभों के बँटवारे का एक ढाँचा शामिल है, लेकिन इस बारे में कोई स्पष्ट विवरण नहीं है कि इन लाभों की गणना या बँटवारा कैसे किया जाएगा।
- तीसरा, बड़ी शक्तियों का इसमें शामिल होने से इनकार। अमेरिका, चीन और रूस की गैर-भागीदारी के कारण यह संधि खतरे में है, जिन्होंने अभी तक इस संधि का अनुसमर्थन नहीं किया है।
- चौथा, बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ संवाद है। संधि को अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority/ ISA) और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों (RFMO) जैसी मौजूदा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सह-अस्तित्व में रहना चाहिए। कानूनी विवादों को रोकने और महासागरीय शासन के और अधिक विखंडन को रोकने के लिए बीबीएनजे समझौते को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय संधियों के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए।
आगे क्या?
यह संधि UNCLOS के प्रावधानों को और अधिक स्पष्टता प्रदान करती है, और EIA, ABMT और लाभ-साझाकरण के लिए विज्ञान-आधारित आवश्यकताओं पर केंद्रित है। हालाँकि, MGR और मानव जाति की साझी विरासत के सिद्धांत में अस्पष्ट भाषा संधि के क्रियान्वयन को चुनौती देती है। MPAs के गतिशील प्रबंधन और नियमित निगरानी की आवश्यकता है। BBNJ को क्रियान्वित करने के लिए, जलवायु-जैव विविधता को महासागर से जोड़ना प्रभावशाली प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण होगा।
NOTE
हाई सीज़ ट्रीटी:
- इस संधि को जून 2023 में अपनाया गया।
- संधि कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
- 1958 के जिनेवा कन्वेंशन ऑन द हाई सीज़ के अनुसार, समुद्र के वे हिस्से जो किसी देश के प्रादेशिक जल या आंतरिक जल में शामिल नहीं हैं, उन्हें हाई सीज़ कहा जाता है। यह किसी देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र/ Exclusive Economic Zone (जो समुद्र तट से 200 समुद्री मील / nautical miles तक फैला है) से परे का क्षेत्र है। अनन्य आर्थिक क्षेत्र तक ही किसी देश का सजीव और निर्जीव संसाधनों पर अधिकार क्षेत्र होता है। कोई भी देश हाई सीज़ पर संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
- यह UNCLOS के अंतर्गत एक नया अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचा है।यह UNCLOS का तीसरा कार्यान्वयन समझौता है। इसके अलावा, अन्य दो समझौते हैं: 1994 में UNCLOS के कार्यान्वयन से संबंधित समझौता और 1995 का संयुक्त राष्ट्र मत्स्य भंडार समझौता हैं।
- भारत ने अभी तक उच्च सागर संधि का अनुसमर्थन (ratification) नहीं किया है, हालाँकि उसने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। औपचारिक अनुसमर्थन के लिए आगे बढ़ने से पहले, देश को जैविक विविधता अधिनियम सहित कई विधायी संशोधन करने होंगे। इस संधि को लागू होने के लिए 60 अनुसमर्थनों की आवश्यकता है, जो सितंबर में पूरे हो चुके हैं।
- भारत ने 1995 में UNCLOS का अनुसमर्थन किया था।

