भुकमरी का विकराल रूप – UPSC

भुकमरी का विकराल रूप – UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे : भुकमरी का विकराल रूप – UPSC

ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज‘ के अनुसार इस समय दुनिया में प्रत्येक मिनट भूख के कारण औसतन 11 लोग दम तोड़ रहे है, अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 15.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं, जोकि पिछले साल की तुलना में 2 करोड़ ज्यादा है। वर्तमान में भुखमरी की तीन मुख्य वजह मानी गयी है –

  • दो-तिहाई लोग सिर्फ इसलिए भुखमरी का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनके देश सैन्य संघर्ष में लगे हुए हैं। यदि 23 संघर्ष-ग्रस्त देशों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उनमें करीब 10 करोड़ लोग इसके चलते खाद्य संकट का सामना करने को मजबूर हैं। यह एक विडंबना है कि वैश्विक स्तर पर पिछले साल सेना पर किए खर्च में करीब 2.7 फीसदी का इजाफा किया गया है, जो करीब 3.8 लाख करोड़ के बराबर है| यह रकम इतनी है जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी को रोकने के लिए आवश्यक जरूरतों को छह बार से ज्यादा पूरा कर सकती है।
  • कोरोना महामारी भुखमरी का दूसरा मुख्य कारण है। 2020 में महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट के चलते 17 देशों में करीब 4 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना करने को मजबूर थे। कोविड-19 से दुनिया भर के कई देश प्रभावित हो रहे हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर होंगे। लैटिन अमेरिका में आर्थिक गिरावट के कारण इससे उबरने में सबसे अधिक समय लगेगा। मध्य पूर्व में, यमन, सीरिया और लेबनान के इन देशों की मुद्रा की कीमत तेजी से कम हो रही हैं, जिसके कारण ये देश आसमान छूती मुद्रास्फीति के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
  • जलवायु परिवर्तन भुखमरी के लिए तीसरा बड़ा कारण माना जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले आपदाओं ने 1.5 करोड़ लोगों को भुखमरी के कगार पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है।

खाद्य संकट की सबसे गंभीर समस्या अफ्रीका महाद्वीप में है। गंभीर रूप से खाद्य संकट का सामना कर रहे हर तीन में से दो लोग अफ्रीका से ही सम्बन्ध रखते हैं| 2020 में अकेले अफ्रीका महाद्वीप में रहने वाले 9.8 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे थे। हालांकि यमन, अफ़ग़ानिस्तान, हैती और सीरिया जैसे देशों में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है| यह सभी देश भी गंभीर खाद्य संकट का सामना करने वाले 10 प्रमुख देशों में शामिल है। यदि जून 2021 के मध्य तक के आंकड़ों को देखे तो इथियोपिया, मेडागास्कर, दक्षिण सूडान और यमन में भीषण अकाल की स्थिति का सामना करने वाले लोगों की संख्या 521,814 थी जोकि पिछले वर्ष कि तुलना में करीब 500 फीसदी ज्यादा है।

यदि भारत की बात करें तो यहाँ भी लाखों लोग भोजन की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। यही वजह है कि इस रिपोर्ट में भारत को एक ‘हंगर हॉटस्पॉट‘ के रूप में प्रदर्शित किया गया है। यदि 2020 के आंकड़ों को देखें तो भारत में करीब 19 करोड़ लोगो कुपोषण का शिकार हैं। वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के करीब एक तिहाई बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है। भारत में भुखमरी के पीछे कई मुख्य वजह है –

  • कोरोना महामारी के कारण असंगठित क्षेत्र में लगे परिवार अपनी आय का 60 % से अधिक हिस्सा खो चुके है। अकेले अप्रैल 2021 में करीब 80 लाख लोगों की नौकरियां छिन गई है।
  • देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली उन लोगों तक मदद पहुंचाने में विफल रही है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। सरकार अभी भी अपनी सार्वजनिक वितरण योजना के लिए 2011 की जनगणना से जुड़े आंकड़ों पर निर्भर करती है, जिसके चलते करीब 10 करोड़ लोग जो राशन प्राप्त करने के हकदार थे, उन्हें यह मदद नहीं मिल पाई है। इस योजना के लिए हकदार केवल 57 फीसदी आबादी को ही इसका लाभ मिल पा रहा है।
  • देश में भुखमरी के लिए स्कूलों के बंद होने को भी एक कारण माना गया है। देश में कारबी 12 करोड़ बच्चे स्कूलों में मिलने वाले मिड-डे मील पर निर्भर थे, स्कूल और कई भोजन कार्यक्रमों के बंद होने के कारण बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाया है।
  • अधिकाँश लोग खेती पर निर्भर है और पूँजीवाद के चक्रव्यूह में खेती आज घाटे का सौदा बन चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हर पांच लोगों में से चार अपनी जीविका के लिए किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर हैं। ऐसे में गंभीर खाद्य असुरक्षा का सबसे पहला शिकार वो ही बनते हैं।
  • भारत में हर वर्ष करीब 6.88 करोड़ टन भोजन बर्बाद कर दिया जाता है। यदि इसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो प्रत्येक व्यक्ति हर वर्ष 50 किलोग्राम भोजन बर्बाद कर देता है। यदि इस बर्बादी को रोक दिया जाए तो न केवल करोड़ों लोगों को भोजन मिल पाएगा, साथ ही इसके चलते हर वर्ष होने वाले करीब 68,39,675 करोड़ रुपए (94,000 करोड़ डॉलर) के आर्थिक नुकसान को टाला जा सकता है, जोकि किसानों और लोगों की भलाई के लिए खर्च किया जा सकता है।

कोविड-19 ने वक्त की नजाकत को समझने तथा लचीली और टिकाऊ खाद्य प्रणाली की दिशा में नीतियों को दोबारा बनाने का मौका दिया है। उपभोक्ताओं की संस्कृति, स्वाद और भोजन संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए जागरुकता कार्यक्रमों के जरिए स्वास्थ्य के लिए बेहतर और पोषक खाने की मांग को बढ़ाए जाने की जरूरत है। पोषण अभियान, ईट राइट (Eat Right) इंडिया अभियान, मिलेट मिशन और स्वस्थ भारत अभियान की तरह ही पोषण के अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए संगत गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं।


भारत में, दशकों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक खरीद संबंधी नीतियों में खाद्य फसलों की विविधता को अनदेखा किया गया और इस संबंध में नीतियां चावल तथा गेहूं के पक्ष में ही रहीं।चावल और गेहूं की तुलना में ज्वार, बाजरा और दाल जैसी फसलों के लिए न केवल कम पानी की जरूरत होती है बल्कि इनमें अन्य पोषक तत्व और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। बाजरा में ग्लूकोस बहुत कम मात्रा में होता है, इसलिए डायबिटीज को नियंत्रण में रखने या इससे बचाव के लिए यह एक अच्छा विकल्प है। इनके पोषक तत्वों की प्रचुरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से कुछ खाद्यान्न पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का प्राकृतिक जरिया बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, रागी में दूध से तीन गुणा ज्यादा कैल्शियम होता है, बाजरा में सबसे ज्यादा फॉलेट(folate) पाया जाता है और कोदरा (कोदो) में गेहूं या मक्का से तीन गुणा और चावल से 10 गुणा ज्यादा रेशे (फाइबर) होते हैं

कुपोषण और भुखमरी का सीधा सम्बन्ध है। अतः न केवल सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा बल्कि खेती के तौर तरीको को भी बदलने कि आवश्यकता है जिसमे जलवायु के साथ सहकारिता के आधार पर अधिक से अधिक उत्पादन संभव हो सके।