NPA (Non Performing Asset) समझने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि बैंक काम कैसे करते हैं
बैंक काम कैसे करते हैं?
इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मसलन बैंक में अगर 100 रुपये जमा है तो उसमें से 4 रुपये (CRR) रिज़र्व बैंक के पास रखा जाता है, साढ़े 19 रुपये (अभी एसएलआर 19.5 प्रतिशत है) बॉन्ड्स या गोल्ड के रूप में रखना होता है। बाकी बचे हुए साढ़े 76 रुपयों को बैंक कर्ज़ के रूप में दे सकता है। इनसे मिले ब्याज से वो अपने ग्राहकों को उनके जमा पर ब्याज का भुगतान करता है और बचा हुआ हिस्सा बैंक का मुनाफ़ा होता है।
बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा।
लोन खाता NPA कैसे बनता है?
कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है या नहीं, इसकी पहचान के लिए रिज़र्व बैंक ने नियम बनाए हैं इसके तहत बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर चिन्हित करना होता है :-
- अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 30 दिनों के भीतर नहीं होता है तो उसे एसएमए-0 कहा जाता है
- अगर भुगतान 31 से 60 दिनों तक न हो तो इसे एसएमए-1 कहा जाता है
- अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 61 से अधिक दिनों तक न हो तो उसे SMA-2 कहा जाता है
- किसी लोन खाते को एनपीए घोषित करने के बाद बैंक को उस एनपीए खाते का तीन श्रेणियों – ‘सब स्टैंडर्ड एसेट्स’, ‘डाउटफुल एसेट्स’ और ‘लॉस एसेट्स’ के रूप में बाँटना पड़ता है
- जब कोई लोन खाता एक साल या इससे कम अवधि तक एनपीए की श्रेणी में रहता है तो उसे ‘सब स्टैंडर्ड असेट्स’ कहा जाता है
- जब कोई लोन खाता एक साल या इससे अधिक अवधि तक एनपीए की श्रेणी में रहता हैतो उसे ‘डाउटफुल असेट्स’ कहा जाता है
- जब बैंक यह मान लेता है कि कर्ज़ अब वसूल नहीं हो सकता तो उसे ‘लॉस असेट्स’ की श्रेणी में डाल दिया जाता है
वर्तमान स्थिति?
साल 2016 में सरकार ने इन्सोल्वेंसी एंडी बैंकरैप्सी कोड (दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड) लागू किया जिसके बाद कर्ज़ वसूली की स्थिति थोड़ी बेहतर हुई
इस क़ानून के अनुसार कंपनी के दिवालिया घोषित होने पर उसकी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उसे बेच कर अपने कर्ज़ की भरपाई कर सकती है
बढ़ते NPA का बैंकों पर प्रभाव?
बढ़ते एनपीए का बैंकों पर तीन मुख्य प्रभाव पड़ता है :-
- उनकी लोन देने की क्षमता घट जाती है
- मुनाफे में कमी आती है
- उनके नकदी का प्रवाह घट जाता है