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G-20 की अध्यक्षता से क्या भारत वैश्विक नेता के तौर पर अपनी पहचान बना पाएगा? – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे: G-20 की अध्यक्षता से क्या भारत वैश्विक नेता के तौर पर अपनी पहचान बना पाएगा? – UPSC

दुनिया भर की 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह की अध्यक्षता भारत की डिप्लोमैसी के लिए एक परीक्षा की तरह है, क्योकि यूक्रेन संकट के कारण वैश्विक स्तर पर शह और मात का खेल जारी है। इस खेल के असली खिलाडी रूस, अमेरिका और चीन माने जा सकते है। भारत की कोशिश है कि वह यूक्रेन संकट में पश्चिम और रूस के बीच सेतु का काम करे और साथ ही ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज़ के तौर पर उभरे। ग्लोबल साउथ (Global South) में मुख्य रूप से दुनिया के ग़रीब और विकासशील देश आते हैं। पिछले कुछ सालों से वित्तीय संकट, जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद और युद्ध को लेकर वैश्विक व्यवस्था नाकाम सी रही है जिसका खामियाजा विकासशील देश भुगत रहे हैं।

Global North vs. Global South

जब यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण दुनिया बुरी तरह से बँटी है, ऐसे में भारत क्या ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन सकता है? वाक़ई में भारत के पास अच्छा मौक़ा है कि वह रूस और पश्चिम के बीच वार्ता कराए। भारत ऐतिहासिक रूप से किसी अन्तरराष्ट्रीय गुट में नहीं रहा है। भारत के पास गुटनिरपेक्षता वाली विश्वसनीयता है। इस वजह से भारत एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है। रूस का यूक्रेन पर हमले का यह दूसरा साल चल रहा है। इस दौरान भारत का रुख़ संतुलनवादी रहा। भारत में इस साल जी-20 के विदेश मंत्रियों की दो बठैक हो चुकी हैं, जिनमे किसी साझे बयान पर सहमति नहीं बनना भारत के लिए चिंता की बात जरूर है। दरसल बाली बैठक (G-20 summit 2022) से दिल्ली आते-आते चीज़ें बदल चुकी हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 20 फ़रवरी को अचानक यूक्रेन पहुँच गए थे। इससे रूस का नाराज होना लाजमी था। इस तरह की घटनाओ को रोकना भारत के लिए सम्भव नहीं है।

भारत जी-20 बैठक को यूक्रेन संकट में खपने नहीं देना चाहता है। भारत की कोशिश है कि बढ़ती महंगाई, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर भी बात हो। इसी साल भारत ने 12 और 13 जनवरी को ‘वॉइस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट(Voice of the Global South) का आयोजन किया था, जिसमे 120 देशों को आमंत्रित किया गया था। इस बैठक में चीन को आमंत्रित नहीं किया गया था। कम से कम चीन इतना तो समझ ही गया होगा कि इस प्रकार की कोशिश से भारत विकासशील दुनिया का नेतृत्व करना चाहता है। जब दुनिया की शक्तिशाली देशों के बीच टकराव चरम पर है, ऐसे में डर है कि जी-20 में बाक़ी के मुद्दे पीछे ना छूट जाएं। जी-20 में भारत की कामयाबी रूस और चीन पर भी बहुत हद तक निर्भर करेगा। चीन के साथ भारत के रिश्ते ठीक नहीं हैं और यूक्रेन पर हमले के बाद से कहा जा रहा है कि रूस और चीन की क़रीबी बढ़ी है। ऐसे में भारत इससे कैसे निपटेगा? बाली से दिल्ली आते-आते कई चीज़ें बदल गई हैं। अमेरिका ने चीन के ‘जासूसी गुब्बारे‘ मारकर गिराए जो चीन को पंसद नहीं आया। इसके अलावा चीन, यूक्रेन और रूस के बीच शांति प्रस्ताव लेकर आया है। चीन नहीं चाहता है कि रूस और यूक्रेन में शांति की शुरुआत में भारत की कोई भूमिका हो। दूसरी ओर पश्चिम क़तई नहीं चाहता है कि चीन की कोई मध्यस्थता हो। भारत के लिए जी-20 की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यूक्रेन का मसला कितना आगे तक जाता है।