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ग़ाज़ा से फिलिस्तीनियों के विस्थापन के पीछे अमेरिकी मकसद – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे: ग़ाज़ा से फिलिस्तीनियों के विस्थापन के पीछे अमेरिकी मकसद – UPSC

डोनाल्ड ट्रंप ने ग़ाज़ा से फिलिस्तीनियों को बाहर निकालने और दूसरी जगह ले जाने की नीति को क्लीन आउट का नाम दिया है। दरअसल 1948 में जब इसराइल को एक देश के तौर पर एकतरफा मान्यता दी गई, और उसके बाद फ़लस्तीनियों का जिस प्रकार से विस्थापन हुआ था उसे अल नकबा कहा जाता है। डोनाल्ड ट्रंप की योजना कमोवेश अल नकबा जैसी ही है।

डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि 18 लाख फिलिस्तीनियों को मिस्र और जॉर्डन में बसाया जाये। निसंदेह इसराइल के हमलों में 47,200 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें से अधिकांश आम नागरिक हैं। ग़ाज़ा के 20 लाख लोगों में से अधिकांश पिछले 15 महीनों के युद्ध में विस्थापित हो गए हैं,और ग़ाज़ा का ज़्यादातर बुनियादी ढांचा नष्ट हो चूका है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग़ाज़ा में 60% संरचनाएं क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी हैं और इनको फिर से बनाने में दशकों लग सकते हैं। दशकों से चली आ रही अमेरिकी विदेश नीति में ग़ाज़ा को मुख्य हिस्सा बनाकर फिलिस्तीनी राष्ट्र के निर्माण की बात कही जाती रही थी। डोनाल्ड ट्रम्प की क्लीन आउट नीति इसकी ओर एक कदम है।

दरअसल इजरायल के कट्टर दक्षिणपंथी लोग ग़ाज़ा के लोगों को पड़ोसी देशों में भेजने के विचार को लम्बे समय से आगे बढ़ाते रहे है। शायद ट्रम्प इस विचार को व्यवहारिक धरातल पर उतारना चाहते है। इजरायल के दक्षिणपंथी हमेशा से ही ग़ाज़ा और वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां को बसाकर एक “ग्रेटर इसराइल” का सपना साकार करना चाहते है । फिलिस्तीनियों में यह डर है कि राष्ट्रपति ट्रंप के आस-पास के लोग उन्हें मध्य पूर्व की नीति के मामले में अधिक कट्टर दिशा में धकेल रहे हैं। हाल ही में ट्रंप ने ईसाई धर्मावलंबी माइक हकाबी को इसराइल में अगले अमेरिकी राजदूत के रूप में नामित किया है, जिन्होंने फिलिस्तीनी राज्य के अस्तित्व के विचार को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है ।

ग़ाज़ा से फिलिस्तीनियों को बाहर निकालने और दूसरी जगह ले जाने के मुद्दे को लेकर मिस्र, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, क़तर, फिलिस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग ने अपना विरोध प्रकट किया है। मध्य-पूर्व की समस्या का समाधान दो राष्ट्र सिद्धांत से ही सम्भव हो सकता है, जिसका कभी अमेरिका भी समर्थक था। ट्रम्प के प्रस्ताव को पूरे मध्य-पूर्व में अविश्वास के साथ देखा गया है। पूरे क्षेत्र में इसकी व्यापक रूप से आलोचना की गई है, क्योंकि यह संभावित ‘दूसरा नकबा‘ है। ट्रंप का यह विचार ऐसे समय आया है जब इसराइल और हमास के बीच युद्ध विराम समझौते को लेकर सहमति बनी है और विस्थापित लोग उत्तरी ग़ाज़ा में अपने घरों को लौट रहे हैं ।

अगर ट्रंप की योजना आगे बढ़ती है तो अरसे से ‘दो-देशों’ के समाधान वाली योजना की उम्मीद का भी अंत हो जायेगा। दो देशों वाले समाधान का मकसद इसराइल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश की स्थापना करना रहा है, ताकि एक सदी से चला आ रहा है यह ख़ूनी संघर्ष थम जाए। ट्रंप की योजना अंतरराष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन करेगी, जिसके लिए वह दावा करता है कि वह हमेशा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था (International order) में यक़ीन करता है।