इस लेख में आप पढ़ेंगे: ट्रंप की टैरिफ़ योजना का किन देशों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है ? – UPSC
अपना दूसरा कार्यकाल सभालते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेशी सामान पर कड़े टैरिफ़ लगाने की सीधे चेतावनी दे दी है। जैसे कि जब तक कनाडा और मैक्सिको की सरकारें अमेरिका में अवैध प्रवासियों और फेंटानिल ड्रग आने से नहीं रोकती, तब तक वह इन दोनों देशों से आने वाले सामानों पर 25% टैरिफ़ लगाएंगे। इसके अलावा चीन से आयात पर 10 फ़ीसदी टैरिफ़ और यूरोपीय संघ से आने वाले सामानों पर भी टैरिफ़ लगाया जायेगा। ध्यान रहे चीन, मैक्सिको और कनाडा अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। टैरिफ़ उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं और इससे अमेरिकी उपभाक्ताओं के लिए भी कीमतें बढ़ सकती हैं।
आखिर ट्रंप टैरिफ़ को लेकर इतने आक्रामक क्यों हैं ?
- डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार टैरिफ़ घरेलू स्तर पर रोज़गार पैदा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं;
- अमेरिका के साथ चीन और यूरोप के ट्रेड सरप्लस को कम करना चाहते हैं, जिसे वह ‘अमेरिका को लूटने’ के रूप में देखते हैं;
- वे इस कदम को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के रूप में देखते है। डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में राष्ट्रपति के तौर पर स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ़ शुरू किए थे क्योंकि ये ‘रक्षा-औद्योगिक क्षेत्र’ की बुनियाद थे;
- ट्रंप टैरिफ़ को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ ही टैक्स रेवेन्यू को भी बढ़ाने के साधन के तौर पर देखते है।
टैरिफ़ का दूसरे देशों पर क्या असर हुआ?
अपने पहले कार्यकाल के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में टैरिफ़ नीति लागु की थी। 2018 से पहले अमेरिका के कुल आयात में 20 फ़ीसदी चीन से आता था. लेकिन अब ये हिस्सा 15 फ़ीसदी से भी कम है। साल 2023 तक मैक्सिको चीन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। मैक्सिको अब अमेरिका को 476 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है, जबकि चीन 427 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है। हालांकि ये हिस्सेदारी आंशिक रूप से है क्योंकि कई बड़ी कंपनियां, ख़ासतौर पर कार बनाने वाली कंपनियों ने अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते और उत्पादन की कम लागत का फ़ायदा उठाने के लिए अपना उत्पादन मैक्सिको में स्थानांतरित कर दिया है।
चीन पर ट्रंप के भारी टैरिफ़ की वजह से अमेरिका में पूर्वी एशिया के देशों की ओर से निर्यात में भी बढ़ोतरी देखी गई। आसियान व्यापार गुट से संबंधित देश जैसे इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाइलैंड और वियतनाम ने साल 2016 में अमेरिका को 158 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया था, लेकिन 2023 में इन देशों से लगभग 338 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है।
निसंदेह टैरिफ़ ने अमेरिका में स्टील और एल्यूमीनियम के उत्पादन को बढ़ावा दिया, लेकिन इसने धातुओं की कीमतों को भी बढ़ाया। इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे मैन्युफ़ैक्चरिंग उद्योगों में हज़ारों नौकरियां चली गईं। साथ ही साथ ट्रंप के टैरिफ़ से जुड़े कदमों से सभी जगह कीमतें बढ़ गईं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं की स्थिति खराब हो गई।
दूसरे दौर के टैरिफ़ से, जो एक फ़रवरी से लागु होंगे, कनाडा और मैक्सिको की अर्थव्यवस्थाओं को नुक़सान पहुंच सकता है। ये दोनों देश अमेरिका पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं। मैक्सिको दूसरे देशों को जो भी सामान बेचता है उसका 83 फ़ीसदी अमेरिका खरीदता है। कनाडा के कुल निर्यात में 76 फ़ीसदी अमेरिका को जाता है। कनाडा बड़ी मात्रा में तेल और मशीनरी अमेरिका को बेचता है और 25 फ़ीसदी टैरिफ़ से पाँच सालों में उसकी जीडीपी सिकुड़ कर 7.5 फ़ीसदी तक आ सकती है, जो एक बड़ा झटका होगा। अगर मैक्सिको पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगता है, तो जिन कंपनियों ने यहां अपने कार बनाने वाले प्लांट लगाए हैं, वे आसानी से अपने देशों में उत्पादन स्थानांतरित कर सकते हैं। टैरिफ़ से मेक्सिको की जीडीपी में पाँच साल के भीतर 12.5 फ़ीसदी की गिरावट हो सकती है. ये भी एक बड़ा आघात होगा।
NOTE: टैरिफ़ क्या है?
टैरिफ़ किसी देश से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर लगने वाला कर है। यह निर्यात करने वाले की बजाय उत्पादों को आयात करने वाली फ़र्म पर लगाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई फ़र्म ऐसी कार आयात कर रही हैं जिसकी कीमत 50 हज़ार डॉलर प्रति कार है और उसपर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगेगा, तो फ़र्म को हर कार पर 12,500 डॉलर का शुल्क देना होगा। टैरिफ़ का ‘आर्थिक’ बोझ उपभोक्ता वहन करेगा।