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Article 143: सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकारी क्षेत्राधिकार – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे: Article 143: सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकारी क्षेत्राधिकार/ Advisory Jurisdiction- UPSC

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने Article 143 के तहत किए गए 16वें राष्ट्रपति संदर्भ पर अपनी राय दी है। अपनी राय में सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2025 में दिए गए दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को काफी हद तक नकार दिया है।

राष्ट्रपति का संदर्भ क्या था? Presidential Reference

वर्तमान संदर्भ अप्रैल 2025 में तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का परिणाम है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्रगतिशील फैसला सुनाया था:

वर्तमान संदर्भ में न्यायालय की राय हेतु 14 प्रश्न उठाए गए थे, जिनमें मुख्यतः अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या शामिल थी। ये प्रश्न न्यायालयों के उस अधिकार से संबंधित हैं जिसके तहत वे समय-सीमाएँ निर्धारित कर सकते हैं, जो संविधान में कहीं भी निर्दिष्ट नहीं हैं। सरकार ने प्रश्न किया था कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति के कार्यों को किसी विधेयक के कानून बनने से पहले ही न्यायिक समीक्षा के अधीन लाया जा सकता है। संदर्भ में Article 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रयोग की जा सकने वाली शक्तियों की सीमा पर भी राय मांगी गई थी।

वर्तमान राय क्या है? (Advisory Jurisdiction)

सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने उठाए गए प्रश्नों पर अपनी राय दी है। पीठ ने कहा कि यह संदर्भ एक ‘कार्यात्मक संदर्भ‘ है, जो संवैधानिक पदाधिकारियों के दैनिक कामकाज और राज्य विधानमंडल, राज्यपाल और राष्ट्रपति के बीच परस्पर संबंधों की समीक्षा मांगता है। सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न उत्तर दिए हैं:

इस राय से सम्बंधित समस्याएं:

प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों (समयसीमा और मान्य सहमति), असाधारण उपायों (अनुच्छेद 142), और निरीक्षण (अनुच्छेद 200 के तहत कार्यों की न्यायिक समीक्षा) को हटाकर, न्यायालय की राय ने कार्यपालिका के अतिक्रमण की संभावना को बढ़ावा दिया है। राज्यों के पास मनमाने विलंब को चुनौती देने के लिए बहुत कम तंत्र बचते हैं। हमारी संघीय व्यवस्था को ग्रसित करने वाली मूल बीमारी राज्यपाल पद का राजनीतिकरण रही है। राज्यपाल राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त व्यक्ति के रूप में कार्य करते हैं। हालाँकि, संघवाद भी हमारे संविधान की एक मूलभूत विशेषता है। सर्वोच्च न्यायालय की वर्तमान राय राज्यपाल द्वारा राज्यों में लोकप्रिय रूप से निर्वाचित सदनों की नीतियों को विफल करने का बहाना नहीं बननी चाहिए। राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करने में ज़िम्मेदार तत्परता दिखानी चाहिए।