लाल सागर क्या मध्य पूर्व की समस्या को ओर जटिल बना सकता है? Houthi Attacks in the Red Sea
Houthi attacks in the Red Sea

लाल सागर क्या मध्य पूर्व की समस्या को ओर जटिल बना सकता है? Houthi Attacks in the Red Sea

इस लेख में आप पढ़ेंगे : लाल सागर क्या मध्य पूर्व की समस्या को ओर जटिल बना सकता है? Houthi attacks in the Red Sea. UPSC.

Countries surrounding the Red Sea. Image Credit: The Economist

यमन के हूती विद्रोही (Houthi) नवंबर के मध्य से लेकर अब तक लाल सागर में अंतरराष्ट्रीय और व्यापारिक जहाज़ों पर तीस से अधिक हमले कर चुके हैं। इन हमलों से समुद्री आवाजाही से जुड़ा अंतरराष्ट्रीय उद्योग प्रभावित हुआ है और इस आशंका को भी बढ़ावा मिला है कि इसराइल और हमास के युद्ध के कारण मध्य पूर्व अस्थिर हो सकता है। हाल ही में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, कनाडा और हॉलैंड ने मिलकर हूती विद्रोहियों के विरुद्ध एक अंतरराष्ट्रीय टास्क फ़ोर्स का गठन किया है। क्या अमेरिका और उसके सहयोगी एक ऐसे समूह के ख़िलाफ़ जीत हासिल कर सकते हैं जिनके ख़िलाफ़ सऊदी अरब लगभग एक दशक तक लड़ता रहा, लेकिन नाकाम रहा? हूती विद्रोहियों का दावा है कि उनके हमले फ़लस्तीनियों के साथ एकजुटता जताने के लिए है क्योंकि इसराइल ने ग़ज़ा पर हमला किया है।

Israel and Gaza. Image Credit: ABC News

हूती विद्रोही कितने शक्तिशाली हैं ?

Houthi attacks in the Red Sea. Operation Prosperity Guardian was initiated on December 19 to aid the safe movement of ships in the Red Sea. Image Credit: Visual Capitalist

ईरान से मिल रहे कथित समर्थन की बदौलत वो अब एक बिखरे विद्रोही गुट से एक प्रशिक्षित लड़ाका दल में बदल चुके हैं, जिनके पास आधुनिक साज़ो सामान, यहां तक कि अपने हेलीकॉप्टर भी हैं। हूती विद्रोही लड़ाके सऊदी अरब के साथ चल रहे युद्ध में यह साबित कर चुके हैं कि वह एक स्वयंभू देश की सेना का सामना करने की क्षमता रखते हैं। हालांकि हूती लंबे अरसे से एक बड़े विरोधी से लड़ने में कामयाब रहे हैं लेकिन अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से मुक़ाबला बिल्कुल अलग मामला है। अमेरिका और उसके सहयोगियों की सामूहिक शक्ति, रणनीति और अनुभव सऊदी सेना से कहीं अधिक है।

USA and its allies against the Houthis. Image Credit: AlJazeera

ईरान हूती विद्रोहियों को हथियार और आर्थिक मदद ज़रूर देता है लेकिन उन पर ईरान का सीधे नियंत्रण नहीं है। हूती विद्रोहियों ने ख़ुद ही अमेरिका से दुश्मनी मोल ली है और इसराइल विरोधी नीतियां अपनाई हैं, उन्हें ईरान ने इस मामले में उकसाया नहीं था। ईरान को यह उम्मीद तो है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिका के सामने ये आशंका पैदा हो सकती है कि यह विवाद बहुत बढ़ जाएगा। ऐसे में वो इसराइल को किसी तरह के समझौते पर सहमत कराने के लिए मजबूर हो जाएंगे। अमेरिकी नीति सीमित सैन्य कार्रवाई और प्रतिबंध पर आधारित हो सकती है। इससे ऐसा लगता है कि इसका मक़सद मध्य पूर्व में किसी बड़े विवाद को पैदा होने से रोकना है। ऑपरेशन पोसाइडन आर्चर के तहत 11 जनवरी से शुरू हुई अमेरिकी कार्रवाइयों के बाद से यमन में हूती विद्रोहियों के 25 से अधिक मिसाइल लॉन्चिंग और तैनाती के संयंत्रों और बीस से अधिक मिसाइलों को नष्ट किया जा चुका है। हूती विद्रोही भी शायद इस युद्ध में शामिल होना चाहते हैं ताकि यमन की जनता को यह जताया जा सके कि वो न केवल फ़लस्तीन की जनता के साथ हैं बल्कि पश्चिम के ख़िलाफ़ भी खड़े हैं ऐसे समय में जब स्थानीय स्तर पर अमेरिका और ब्रिटेन विरोधी भावनाएं अपने चरम पर हैं, इस मामले को विशुद्ध सैनिक पृष्टभूमि में देखना और उसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों को सिरे से नज़रअंदाज़ कर देना उचित नहीं है।

कौन हैं हूती ?

हूती यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘ज़ैदी’ समुदाय का एक हथियारबंद समूह है। इस समुदाय ने 1990 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के कथित भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए इस समूह का गठन किया था। उनका नाम उनके अभियान के संस्थापक हुसैन अल हूती के नाम पर पड़ा है। वे ख़ुद को ‘अंसार अल्लाह’ यानी ईश्वर के साथी भी कहते हैं।

यमन में 2014 की शुरुआत में हूती राजनीतिक रूप से काफ़ी मज़बूत हो गए, जब वे राष्ट्रपति के पद पर अली अब्दुल्ला सालेह के उत्तराधिकारी बने अब्दरब्बुह मंसूर हादी के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए। यमन के उत्तर में हूती सादा प्रांत पर नियंत्रण करने में सफल रहे और साल 2015 की शुरुआत में उन्होंने राजधानी सना पर क़ब्ज़ा कर लिया। ऐसे में राष्ट्रपति हादी यमन छोड़कर विदेश भाग गए। यमन के पड़ोसी देश सऊदी अरब ने सैन्य दख़ल दिया और हूती विद्रोहियों को हटाकर फिर से हादी को सत्ता में लाने की कोशिश की। उसे यूएई और बहरीन का भी साथ मिला हुआ था। हूती विद्रोहियों ने इन हमलों का सामना किया और यमन के बड़े हिस्से पर नियंत्रण बनाए रखा। हूती विद्रोही लेबनान के सशस्त्र शिया समूह हिज़बुल्लाह के मॉडल से प्रेरणा लेते रहे हैं और ख़ुद को ईरान का सहयोगी भी बताते हैं क्योंकि उनका साझा दुश्मन है सऊदी अरब।