चारधाम सड़क परियोजना क्यों चर्चा में है ? – UPSC

चारधाम सड़क परियोजना क्यों चर्चा में है ? – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे : चारधाम सड़क परियोजना क्यों चर्चा में है ? – UPSC

चारधाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थों यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ेगी। 12 हज़ार करोड़ की इस परियोजना के तहत सड़क के चौड़ीकरण का काम किया जाना है। पहले इसका नाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट था जिसे बदलकर चारधाम परियोजना कर दिया गया। इसकी शुरुआत साल 2016 में की गयी थी। इसके तहत दो सुरंगें, 15 पुल, 25 बड़े पुल, 18 यात्री सेवा केंद्र और 13 बायपास आदि बनाए जाने हैं। 899 किलोमीटर के इस हाइवे प्रोजेक्ट से पूरे उत्तराखंड में सड़कों का जाल विकसित होगा। चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण परियोजना है। इस परियोजना के तहत कुल 53 परियोजनाओं पर काम होना है।

क्या है विवाद :

साल 2018 में एक गैर सरकारी संस्था ने सड़क चौड़ीकरण की इस परियोजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एनजीओ का कहना था कि सड़क चौड़ीकरण के लिए जो पेड़ काटे जाएंगे, पहाड़ों में विस्फोट होगा और मलबा फेंका जाएगा उससे हिमालय की पारिस्थितिकी को नुक़सान पहुंचेगा। इससे भूस्खलन, बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाएगा और वन्य व जलीय जीवों को नुक़सान पहुंचेगा। परियोजना के पर्यावरण पर संभावित प्रभावों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2018 में पर्यावरणविद रवि चोपड़ा के नेतृत्व में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (हाई पावर कमिटी- एचपीसी) का गठन किया था। समिति के सदस्यों के बीच सड़क की चौड़ाई को लेकर सहमति ना बन पाने के कारण एचपीसी ने जुलाई 2020 में दो रिपोर्ट सौंपी थीं। प्रथम रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सड़क 5.5 मीटर चौड़ी करने की अनुमति दी थी। इस रिपोर्ट के सदस्यों में रवि चोपड़ा भी शामिल थे। जबकि 21 सदस्यों वाली दूसरी रिपोर्ट में 12 मीटर चौड़ाई के पक्ष में राय दी गई थी। लेकिन, पर्यावरणविदों का कहना है कि सड़क जितनी चौड़ी होगी उसके लिए उतने ही पेड़ काटने, रास्ते खोदने, पहाड़ों में ब्लास्ट करने और मलबा फेंकने की ज़रूरत होगी।

एचपीसी की रिपोर्ट के मुताबिक समिति के सदस्यों में केवल इस बात को लेकर विभाजन था कि सड़क कितनी चौड़ी की जानी चाहिए। लेकिन, दोनों ही समूह इस बात पर सहमत थे कि परियोजना ने पहले ही अवैज्ञानिक और अनियोजित होने के कारण हिमालय की परिस्थितियों को नुक़सान पहुंचाया है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपने 5.5 मीटर की चौड़ाई वाले फ़ैसले को बदलने की अपील की है और सड़क 10 मीटर चौड़ी करने की अनुमति मांगी है। सिटिजंस फॉर ग्रीन दून एनजीओ ने इस अपील का विरोध किया है। उनका कहना है कि हिमालय क्षेत्र संवेदनशील है इसलिए सड़क की चौड़ाई की सीमा को नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मुद्दा भी होगा कि क्या हम इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं कि ये सड़कें सीमा से जुड़ने वालीं सहायक सड़के हैं? हमारे सामने एक विरोधी(चीन) है जिसने सीमा के दूसरी तरफ़ उस छोर तक बुनियादी ढांचा विकसित किया है।