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मध्य-पूर्व में भारत की विदेश नीति कहाँ तक संतुलनकारी रही है? – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे : मध्य-पूर्व में भारत की विदेश नीति कहाँ तक संतुलनकारी रही है? – UPSC

मध्य-पूर्व में इजराइल और फिलिस्तीनियों के मध्य मौजूदा टकराव को देखते हुए दोनों देशों के साथ एक संतुलनकारी नीति को बनाये रखना वाकई एक बड़ी चुनौती है। फिलिस्तीन के साथ भारत के परम्परागत रिश्तो को हम निम्न बिन्दुओ के आधार पर समझ सकते है :-

  • 1974 में भारत फिलस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश था।
  • 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर मसौदा प्रस्ताव को न केवल सह-प्रायोजित किया था बल्कि इसके पक्ष में मतदान भी किया ।
  • भारत ने अक्टूबर 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया जिसमें इसराइल के विभाजन की दीवार बनाने के फैसले का विरोध किया गया था।
  • 2011 में भारत ने फिलिस्तीन के यूनेस्को के पूर्ण सदस्य बनने के पक्ष में मतदान किया था।
  • 2012 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया जिसमें फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में मतदान के अधिकार के बिना “नॉन-मेंबर आब्जर्वर स्टेट” बनाने की बात थी। भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट भी किया और सितंबर 2015 में भारत ने फिलिस्तीनी ध्वज को संयुक्त राष्ट्र के परिसर में स्थापित करने का भी समर्थन किया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक समर्थन के अलावा भारत ने फिलिस्तीनियों को समय-समय पर आर्थिक सहायता भी प्रदान की है और गाज़ा शहर में अल-अज़हर विश्वविद्यालय में जवाहरलाल नेहरू पुस्तकालय तथा गाज़ा के ही फिलिस्तीनी तकनीकी कॉलेज में महात्मा गांधी पुस्तकालय बनाने में सहायता की है।
  • फरवरी 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री फिलिस्तीनी क्षेत्र में जाने वाले पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने फिलिस्तीनी क्षेत्र की सम्प्रभुता का समर्थन किया था और एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने की आशा व्यक्त की थी।

यदि इजराइल की बात की जाए तो भारत ने 17 दिसम्बर 1950 को यहूदी राष्ट्र के रूप में उसे मान्यता प्रदान की थी और 1992 से इसके साथ पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये थे। जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 वर्षो में इजराइल का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हुए है। रक्षा तकनीकी से लेकर अंतरिक्ष, जल प्रबंधन, ऊर्जा और कृषि के क्षेत्र में दोनों देशो के मध्य सम्बन्ध निरंतर प्रगाढ़ होते रहे है।


दरअसल भारत सार्वजनिक रूप से हमेशा फ़लस्तीनियों का समर्थक रहा है लेकिन पर्दे के पीछे इसराइल के साथ सम्बन्ध भी हमेशा अच्छे रहे है। भारत ज़मीनी तौर पर इस संघर्ष को रोकने में कोई भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है और इसलिए वह शांतिपूर्ण समाधान की अपील करते हुए रचनात्मक रुख ही अपना सकता है। अमेरिका और अरब देशों के अलावा किसी भी देश के पास मौजूदा समस्या के हल में योगदान करने के लिए कुछ भी नहीं है, अगर कोई हल निकल सकता है तो अमेरिका या अरब देश ही निकाल सकते हैं, यदि उनकी ही भूमिका अस्पष्ट है तो भारत जैसे देशो की भला इसमें क्या भूमिका हो सकती है?