जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का विकराल स्वरुप – UPSC
Polar Bears -Ursus maritimus-, female and young, on pack ice, Spitsbergen, Svalbard archipelago, Svalbard and Jan Mayen, Norway

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का विकराल स्वरुप – UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे : जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का विकराल स्वरुप – UPSC

हाल ही में दुनिया के कई देश भीषण गर्मी की चपेट में हैं। इनमे कनाडा (हीट डोम), अमेरिका और साइप्रस शामिल हैं। सायप्रस के जंगलों में सबसे भीषण आग लगी हुई है, जिस पर काबू पाने के लिए ग्रीस, इटली और ब्रिटैन ने अपने विमान भेजे हैं। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है। हीट वेव के चलते जंगल में आग लगी हुई है। कनाडा के लिटन में 49.6 डिग्री तापमान दर्ज किया गया था जो अब तक का सर्वाधिक तापमान है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस बात की सम्भावना है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर 2015 में किए पैरिस समझौते में तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया था| हालांकि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि अब तक 1.2 डिग्री सेल्सियस तक जा चुकी है| रिपोर्ट के अनुसार 2021 से 2025 के बीच कम से कम एक वर्ष ऐसा होगा जो अब तक तापमान में हो रही वृद्धि के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा, जिसका मतलब है कि वो इतिहास का अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा| रिकॉर्ड के अनुसार ला नीना के बावजूद भी 2020 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जब तापमान में हो रही औसत वृद्धि 2016 और 2019 के बराबर रिकॉर्ड की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की एमिशन गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसार यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक वो वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • हीटवेव का बढ़ना
  • अटलांटिक महासागर में आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के बढ़ने की संभावना है।
  • अफ्रीका के सहेल और ऑस्ट्रेलिया में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की सम्भावना है।
  • उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में सूखा पड़ने की सम्भावना कहीं अधिक है।
  • अधिक मात्रा में बर्फ का पिघलना और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि।
  • मौसम की चरम घटनाओं का और विनाशकारी होना जिसका असर खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सतत विकास पर पड़ेगा।
  • आपदाओं के चलते दुनियाभर में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा है। 2020 में ही जलवायु से जुड़ी आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान के कारण 38.6 लाख भारतीयों को अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका में आइस शेल्फ से टूट कर दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड (A-76) अलग हुआ है|
  • ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के चलते समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) 400 मीटर तक सिकुड़ चुका है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां समाप्त हो जाएंगी।
  • जलवायु परिवर्तन और तापमान में हो रही वृद्धि के चलते दुनिया भर में ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं जिसका असर पृथ्वी की धुरी पर पड़ रहा है और उसके झुकाव में वृद्धि हो रही है।
  • यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जरुरी कदम न उठाए गए तो 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को जीडीपी के 35.1 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है|
  • इस प्रकार से यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को जल्द से जल्द नहीं रोका गया तो क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट के विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे।

गौरतलब है कि टिप्पिंग पॉइंट वो सीमा हैं, जिसपर पहुंचने के बाद जलवायु परिवर्तन को वापस अपनी पूर्व अवस्था में नहीं लाया जा सकता। जर्नल नेचर में छपे एक शोध के अनुसार अब तक नौ टिप्पिंग पॉइंट सक्रिय हो चुके हैं जिनमें –

  • अमेजन वर्षावन
  • आर्कटिक समुद्री बर्फ
  • अटलांटिक सर्कुलेशन
  • उत्तर के जंगल (बोरियल वन)
  • कोरल रीफ्स
  • ग्रीनलैंड बर्फ की चादर
  • परमाफ्रॉस्ट
  • पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ की चादर
  • विल्क्स बेसिन, शामिल हैं।

तापमान में वृद्धि जितना ज्यादा होगी, टिपिंग पॉइंट को रोकने के लिए हमारे पास उतना ही कम समय होगा। गतवर्ष हमारे लिए एक सबक है जिसमे दुनिया भर ने मौसम की चरम घटनाओं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात आदि का प्रकोप झेला था। जिसमें अमेरिका में आया हरिकेन, भारत में आए चक्रवात, ऑस्ट्रेलिया और आर्कटिक में हीटवेव, अफ्रीका और एशिया के बड़े हिस्सों में आई बाढ़ और अमेरिका के जंगलों में लगी आग प्रमुख घटनाएं थी। वर्ष 2021 की यूरोप और अमेरिका महाद्वीप की हीट वेव ने साफ़ संकेत दे दिए हैं की जलवायु परिवर्तन का मामला अब एक सीमा से आगे बढ़ चुका है और यदि इसके लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो पूरी दुनिया को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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