इस लेख में आप पढ़ेंगे: भूख और भूख सूचकांक की हकीकत (Global Hunger Index)- UPSC
ऍफ़एओ (FAO) के अनुसार जब व्यक्ति सामान्य, सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में कैलोरी (आहार ऊर्जा) का सेवन नहीं करता है,और जब यह प्रक्रिया दीर्घकालिक या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती जाती है तो उसे भूख कहा जाता है। दूसरे शब्दों में भूख को “अल्पपोषण” भी कहा जा सकता है।
भूख और कुपोषण अपने आप में समस्या नहीं, बल्कि कई अन्य समस्याओं के कारण बनने वाली स्थिति है। यह निम्नलिखित अंतर्निहित कारणों को इंगित करता है-
- जब जलवायु परिवर्तन के कारण आजीविका, पेयजल और स्वास्थ्य के की समस्याएं बहुत बढ़ जाती हैं;
- सम्मानजनक उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण कृषि का संकट बढ़ता है;
- जब लोगों के पास रोज़गार नहीं होता है;
- जब लोगों से उनके संसाधन (पानी, जंगल, जमीन, पहाड़, लकड़ी, खनिज, मिटटी) छीने जाते है;
- समाज में जातिगत व् लैंगिक असमानता बढ़ जाती है
सूचकांक में निम्नलिखित घटक होते हैं:
वेल्थुंगरहिल्फे और कंसर्न वर्ल्डवाइड नामक संस्थाए चार सूचकों – अल्प पोषण, बच्चों में ठिगनापन और दुबलापन और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों का मूल्यांकन करके वैश्विक भूख सूचकांक जारी करती हैं।
- भारत में कितने लोग अल्पोषण (जिन्हें निर्धारित मात्रा में कैलोरी प्राप्त नहीं होती है) के साथ रहते हैं, दुनिया के सभी देशों कि भांति यह अध्ययन राष्ट्रीय सरकारों की सहमति से संयुक्त राष्ट्र संघ का खाद्य और कृषि संगठन (ऍफ़एओ) करता है।
- भारत में कितने बच्चे ठिगनेपन (जन्म के अनुसार लम्बाई/ऊंचार कम होना) और दुबलेपन (लम्बाई/ऊंचाई के अनुसार वज़न कम होना) का अध्ययन भारत सरकार राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के माध्यम से करती है।
- इसी तरह पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर का अध्ययन संयुक्त राष्ट्र संघ की इंटर-एजेंसी ग्रुप फार चाइल्ड मार्टेलिटी एस्टीमेशन द्वारा किया जाता है, जिसमें भारत की भागीदारी रहती है।
इन चारों सूचकों को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि जब किसी भी देश या समाज में जलवायु परिवर्तन, मंहगाई, गरीबी, बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता या किसी भी कारण से भूख की समस्या बढ़ती है, तो उसका परिणाम अल्प पोषण, बाल कुपोषण और बाल मृत्यु में दिखाई दे जाता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2022) मुख्य रूप से यही बताता है कि कहीं न कहीं कुछ कारण हैं, जो भूख के संकट को मिटने नहीं दे रहे हैं। वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index) 2022 में भारत को 121 देशों की सूची में 107 वें स्थान पर रखा गया है।
वैश्विक भूख सूचकांकों का वर्ष 2000 से 2022 के बीच अध्ययन करने से पता चलता है कि इन दो दशकों में तुलनात्मक रूप से भारत में कम बदलाव आया है। वर्ष 2000 में भारत का सूचकांक 38.8 था, जो वर्ष 2014 में घट कर 28.2 पर आया था लेकिन वर्ष 2022 में इसमें बढ़ोतरी हुई है और अब यह 29.1 है। इन 22 सालों में सूचकांक में 25 प्रतिशत कमी हुई थी। इसकी तुलना में अंगोला में 60 प्रतिशत, माली में 44 प्रतिशत और कम्बोडिया में 58 प्रतिशत की कमी आई। इसका मतलब है कि भारत में आर्थिक विकास का लाभ कुछ लोगों/घरानों तक ही सीमित रहा है और वंचितपन बढ़ रहा है।संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन के द्वारा नियमित रूप से यह बताया जाता है कि भारत की कितनी जनसँख्या को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है? वर्ष 2016-18 की अवधि में 17.36 करोड़ लोग अल्प पोषित थे, वर्ष 2017-19 की अवधि में यह संख्या 18.03 करोड़ हो गई, लेकिन ऍफ़एओ की वर्ष 2022 की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019-21 की अवधि में यह संख्या बढ़कर 22.43 करोड़ हो गई। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति को प्रभावित करने वाला यही सबसे महत्वपूर्ण सूचक है। इसके दूसरी तरफ वर्ष 2017 में भारत में ठिगनेपन से प्रभावित बच्चों की संख्या 4.01 करोड़ थी, जो वर्ष 2020 में घटकर 3.61 करोड़ रह गई। लेकिन जब दुबलेपन (वास्टिंग) कुपोषण की बात की जाती है, तो भारत सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (5) के अनुसार इस वक्त भारत में 19.3 प्रतिशत बच्चे अल्पपोषित (कुपोषित) हैं और ग्लोबल हंगर इंडेक्स तथ्यों में बस यही जोड़ता है यह संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। वर्ष 2012-16 की अवधि में यह संख्या 15.1 प्रतिशत ही थी।
भारत में पोषण से सम्बंधित नीतियों का आधार राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण होते हैं। इस सर्वेक्षण के पांचवे चक्र के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में बच्चे भूख और कुपोषण के साथ रहना गर्भ में ही सीखते हैं। भारत सरकार का यही अध्ययन बताता है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (4; 2015-16) में 15 से 49 वर्ष के आयु वर्ग की 54.1 प्रतिशत महिलायें एनीमिया से प्रभावित थीं, यह संख्या राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (5; 2019-21) में बढ़कर 59.1 प्रतिशत हो गई। बच्चों में भी एनीमिया इसी दौरान बढ़कर 58.6 प्रतिशत से 67.1 प्रतिशत हो गया।
वास्तव में खाद्य और पोषण असुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। भारत में जन्म के एक घंटे के भीतर माँ का दूध केवल 41.8 प्रतिशत बच्चों को ही मिलता है। वर्ष 2015-16 में यह स्तर 41.6 था। यानी पांच सालों में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसके बाद सबसे ज्यादा कुपोषण तब बढ़ता है, जब बच्चों को छः महीने की उम्र का होने पर ऊपरी आहार मिलना शुरू नहीं होता है। भारत सरकार का अध्ययन बताता है कि अभी की स्थिति में 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 11.3 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त ऊपरी पोषण आहार मिलता है, यानी लगभग 89 प्रतिशत बच्चे भूखे रहते हैं।
भूख को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यता है –
- राशन प्रणाली में दाल, मोटे अनाज और तेल जोड़ना;
- मध्यान्ह भोजन (mid-day meal) और आंगनवाड़ी योजना में आवंटन को दो गुना करना ;
- पोषण सुरक्षा के लिए सरकार के विभिन्न विभागों – कृषि, उद्यानिकी, जल संसाधन, शिक्षा, आदिवासी और अनुसूचित जाति विकास, वित्त, पर्यावरण, ग्रामीण विकास, शहरी विकास, खाद्य विभाग, स्वास्थ्य विभाग आदि की जवाबदेहिता सुनिश्चित करना जरूरी है केवल महिला एवं बाल विकास विकास विभाग से कुछ नहीं होगा।