700 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करने वाले ईरान और अज़रबैजान के बीच धीरे-धीरे तनाव गहरा रहा है। संबंधों में इस तनाव की कहानी बीते महीने तब शुरू हुई जब तुर्की, पाकिस्तान और अज़रबैजान ने साथ मिलकर ईरान की सीमा से थोड़ी दूरी पर एक साझा सैन्य अभ्यास शुरू किया। ‘थ्री बदर्स-2021‘ नाम का यह सैन्य अभ्यास शुरू ही हुआ था कि ईरान ने भी अज़रबैजान के नज़दीक एक सैन्य अभ्यास की घोषणा कर दी।
ईरान और अज़रबैजान के मध्य तनाव के कारण?
दरअसल इस तनाव के पीछे कई कारण उत्तरदायी माने जा सकते है –
- इसराइल की अज़रबैजान से बढ़ती निकटता।
- काराबाख़ पर अज़रबैजान का क़ब्ज़ा।
- ईरान में रहने वाली अज़रबैजान मूल की जनता के विरोध प्रदर्शन।
वैसे तो अज़रबैजान में इसराइल की साफ़-साफ़ मौजूदगी नहीं दिखती है और न ही उसकी सीमा इन दोनों देशों से लगती है लेकिन इसराइल अज़रबैजान का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर मुल्क है। अज़रबैजान के इसराइल के साथ कामकाज़ी रिश्ते ज़रूर हैं लेकिन ईरान के ख़िलाफ़ इसराइली रणनीति का वो आधिकारिक समर्थन नहीं करता है। फिर भी ईरान इसराइल की अज़रबैजान में सक्रियता को अपने विरुद्ध मानता है
तनाव का परिणाम ?
बीते साल सितंबर में अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र को लेकर युद्ध हुआ था और अज़रबैजान ने काराबाख़ के एक बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया था। अब इस क्षेत्र के अज़रबैजान के क़ब्ज़े में आ जाने के बाद ईरान के व्यापार मार्ग पर बड़ा असर पड़ा है। अज़रबैजान-आर्मीनिया के बीच युद्ध में ईरान चुपचाप अरमेनिया का समर्थन कर रहा था जबकि अज़रबैजान ईरान की तरह ही शिया बहुल देश है।
काराबाख़ जब तक आर्मीनिया के क़ब्ज़े में था तब तक ईरान पश्चिम एशिया और रूस बिना कस्टम अदा किए ट्रक और दूसरे परिवहन वहां से ले जाता था। लेकिन अब अज़रबैजान का काराबाख़ क्षेत्र पर नियंत्रण हो गया है, जिसने ईरान के पश्चिम एशिया में दाख़िल होने पर रोक लगा दी है और आर्मीनिया तक पहुँचने के लिए वो ईरान से पैसा वसूल रहा है। हाल ही में ईरान के दो ट्रक ड्राइवरों को ‘रोड टैक्स’ के कारण अज़रबैजान ने हिरासत में ले लिया था जिससे दोनों मुल्को के मध्य तनाव उत्प्पन हुआ था।
अधिकतर अज़रबैजानी ईरान के उत्तरी इलाक़े को दक्षिणी अज़रबैजान कहते हैं, जहाँ पर तक़रीबन दो करोड़ अज़रबैजानी मूल के लोग रहते हैं। कई अज़रबैजानी राष्ट्रवादी और बुद्धिजीवी उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों को सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के नाम पर एक करने की मांग करते रहे हैं, जिसे ‘ग्रेटर अज़रबैजान’ कहा जाता रहा है।
आर्मीनिया के साथ जब 44 दिनों तक अज़रबैजान की जंग चली थी तब उत्तरी ईरान के अज़रबैजानी लोगों ने उसमें काफ़ी दिलचस्पी दिखाई थी। तेहरान इसी अज़रबैजानी अलगाववाद से चिंतित है, उसे लगता है कि यह बढ़ सकता है। तुर्की नेटो सेना का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सेदार है वहीं पाकिस्तान क्षेत्र में परमाणु शक्ति है।
जब यह दोनों देश अज़रबैजान के साथ सैन्य अभ्यास में शामिल हुए हैं तो इससे रूस और ईरान चिंतित हैं कुल मिलाकर अज़रबैजान की सीमा पर ईरान का सैन्य अभ्यास कई मोर्चों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।