ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन की भूमिका (Role of Methane in Global Warming)- UPSC

ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन की भूमिका (Role of Methane in Global Warming)- UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे : ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन की भूमिका (Role of Methane in Global Warming) – UPSC

कुछ साल पहले तक वैश्विक जलवायु वार्ताओं में सारा ज़ोर कॉर्बन का उत्सर्जन कम पर रहता था और मीथेन को महत्व नहीं दिया जाता था। दो नवंबर 2021 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत चल रहा 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप26) हाल के समय में मीथेन की भूमिका को रेखांकित करना वाला पहला कार्यक्रम बना।

इस दिन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में 105 देशों ने एक स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी वैश्विक मीथेन संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसमें उन्होंने वादा किया कि वे 2030 तक मीथेन के उत्सर्जन में तीस फीसदी की कमी करेंगे।अगर ये देश एक साथ मिलकर यह वादा पूरा कर लेते हैं तो मीथेन के वैश्विक उत्सर्जन में 40 फीसदी की कमी हो सकती है। इस लिहाज से कॉप-26 के अन्य समझौते के बीच दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने में इस संकल्प-पत्र की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में ब्राजील, नाइजीरिया और कनाडा जैसे बड़े मीथेन उत्सर्जक देश शामिल हैं। हालांकि वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में 35 फीसदी योगदान देने वाले तीन अन्य बड़े उत्सर्जक देशों –चीन, रूस और भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए। अफ्रीका के कम से कम 22 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इस संकल्प-प़त्र पर सितंबर 2021 में ही हस्ताक्षर कर दिए थे, जब केवल नौ देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

इसके अलावा बीस से ज्यादा कल्याणकारी संगठनों ने मीथेन का उत्सर्जन कम करने के लिए इसी साल अक्टूबर में 28 मिलियन डॉलर यानी लगभग 2,440 करोड़ रुपये का आर्थिक सहयोग देने का वादा किया है। इन संगठनों में गैर-लाभकारी संगठन ब्लूमबर्ग, चिल्ड्रन्स इन्वेस्टमेंट फंड फाउंडेशन और ओक फाउंडेशन शामिल हैं।जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी अपनी ताजा जांच रिपोर्ट में पहली बार अल्प-कालिक प्रदूषक के तौर पर मीथेन का उल्लेख किया है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कम करने में लक्षित किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि अगले बीस सालों में धरती को गरम होने से रोकने में मीथेन उत्सर्जन को कम करना सबसे महत्वपूर्ण कारक है।

मानवजनित कुल मीथेन उत्सर्जन में खेती का योगदान चालीस फीसदी, जीवाश्म ईंधनों का योगदान 35 फीसदी और कचरे का योगदान बीस फीसदी है। आईपीसीसी के मुताबिक, ग्रीनहाउस गैसों में कॉर्बन डाइअॅाक्साइड के बाद मीथेन, ग्लोबल वार्मिंग की दूसरी सबसे बड़ी योगदानकर्ता गैस है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की मानें तो औद्योगिक क्रांति के बाद से ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन का योगदान कम से कम तीस फीसदी है। मीथेन का ऑक्सीकरण, जमीनी स्तर पर ओजोन (धुंध) के लिए जिम्मेदार है, जो एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।इस तरह, मीथेन का उत्सर्जन कम होने से दुनिया भर में हर साल वायु प्रदूषण से होने वाली 2,55,000 मौतों को रोका जा सकता है। अस्थमा से संबंधित बीमारियों के 7,75,000 मरीजों को अस्पताल जाने से बचाया जा सकता है।

मीथेन का रिसाव, इसके उत्सर्जन के बड़े कारकों में है, और इसे बिना किसी अतिरिक्त खर्च के नियंत्रित किया जा सकता है। आकलन में पाया गया है कि अगर जरूरी कदम उठाए जाएं तो तेल और गैस संबंधी रिसावों को 80 फीसदी और कोयले से होने वाली 98 फीसदी रिसावों को रोका जा सकता है। इसमें कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं आएगा। इसके बजाय इन उपायों से आमदनी भी बढ़ेगी क्योंकि बचाई गई मीथेन को बेचा जा सकेगा।