क्या मध्य-पूर्व का संघर्ष एक वैश्विक मुद्दा बन गया है? – UPSC
GAZA: Boys are looking at the damages made by a shelling on Abu Mazen Mosque in the area of Beach Camp.

क्या मध्य-पूर्व का संघर्ष एक वैश्विक मुद्दा बन गया है? – UPSC

मध्य-पूर्व में इजराइल और फिलिस्तीनियों के मध्य खूनी संघर्ष का मुद्दा अब केवल अरब देशों तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि इसमें विश्व बिरादरी दो खेमो में बंटी दिखाई देती है। अधिकांश इस्लामिक देश जहाँ फिलिस्तीनियों के पक्ष में खड़े है तो वही इजराइल के समर्थन में भी पश्चिमी देशो की एक लम्बी सूची है।

अमेरिका की इजराइल से करीबी किसी से छिपी नहीं है। वह हमास को एक चरमपंथी संगठन मानता रहा है और संयुक्त राष्ट्र में हमास के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी ला चूका है। मौजूदा संघर्ष में अमेरिका ने इजराइल की आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है। यूरोपियन देशो में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने इजराइल के प्रति समर्थन प्रकट किया है। इसके अलावा इजराइल ने जिन पच्चीस देशो के समर्थन का आभार प्रकट किया है उनमें ऑस्ट्रेलिया, अलबेनिया, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील, कनाडा, कोलंबिया, साइप्रस, जॉर्जिया, हंगरी, इटली, स्लोवेनिया और यूक्रेन भी शामिल है।

इस्लामिक देशो में सऊदी अरब, तुर्की, ईरान, पाकिस्तान, कुवैत और खाड़ी क्षेत्र के कई देशों ने इसराइल की खुलकर निंदा की है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप्प अर्दोआन ने इसराइल के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए चेतावनी दी है कि अगर पूरी दुनिया भी ख़ामोश हो जाए तो भी तुर्की अपनी आवाज़ उठाता रहेगा। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के अनुसार यहूदी सिर्फ़ ताकत की भाषा समझते हैं. इसलिए फ़लस्तीनियों को अपनी शक्ति और प्रतिरोध बढ़ाना चाहिए ताकि अपराधियों को आत्मसमर्पण करने और उनके क्रूर कृत्यों को रोकने के लिए मजबूर किया जा सके । संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इसराइल के साथ राजनैयिक सम्बन्ध कायम किय है जो ‘अब्राहम एकॉर्ड्स‘ के नाम से जाने जाते हैं। इस हालात में ‘अब्राहम एकॉर्ड्स’ का लिटमस टेस्ट भी होना बाकि है।

मिस्र दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम की कोशिशों में लगा है और वह दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है। चीन खुल कर फिलिस्तीनियों के पक्ष में आ खड़ा हुआ है जिसका मुख्य कारण अमेरिका को माना जा सकता है। चीन के अनुसार अमेरिका को सिर्फ़ शिनजियांग (चीन) के वीगर मुसलमानों की चिंता दिखाई देती है, फ़लस्तीनियों को किस तरह युद्ध और आपदा की स्थिति में धकेल दिया गया है, वो अमेरिका को दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि रूस की भूमिका स्पष्ट नहीं है, ऐसे भी देश हैं जो फ़लस्तीनियों और इसराइल में से किसी भी तरफ़ झुकाव नहीं दिखाना चाहते हैं, इनमे भारत सबसे प्रमुख है। उसके फ़लस्तीनियों और इसराइल दोनों से अच्छे संबंध रहे हैं. ऐसे में उसके लिए किसी एक का पक्ष ले पाना मुश्किल है। अतः भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।

कितने दुर्भाग्य की बात है पूरी दुनिया मे मानवाधिकारों की लंबरदारी करने वाले दुनिया के ताकतवर देश मध्य-पूर्व की तबाही में भी अपने राजनीतिक हित साधने में लगे हुए है ।