दुसरे महायुद्ध के पश्चात अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य प्रारम्भ होने वाले शीत युद्ध के कारण 1949 में नाटो संगठन वजूद में आया था। अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों के द्वारा नाटो के रूप में एक सैन्य-संधि की गई थी जिसके तहत यदि सोवियत संघ और उसके मित्र राष्ट्रों के द्वारा किसी पूंजीवादी लोकतान्त्रिक देश के विरुद्ध आक्रामक नीति अपनाई जाती है तो नाटो के सभी देश मिल कर उसका मुकाबला करेंगे। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात यह बहस होनी भी लाज़मी थी कि जब शीत युद्ध ही समाप्त हो चुका है तो ऐसे में नाटो को बनाए रखने का क्या औचित्य है। लेकिन अमेरिका ने न केवल नाटो को बनाये रखने का ऐलान किया बल्कि उसके विस्तार की भी घोषणा कर दी थी। आज नाटो की सदस्य संख्या 12 से बढ़ कर 30 हो चुकी है। 1990 के बाद वजूद में आई एकल-धुर्वीय विश्व व्यवस्था के लिए नाटो एक policeman की भूमिका निर्वहन करता रहा है। चाहे कोसावा संकट हो या फिर लीबिया का गृहयुद्ध, नाटो की भूमिका को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े होते रहे हैं। ज्ञात रहे की सोवियत संघ ने नाटो के विरुद्ध 1955 में वॉरसॉ पैक्ट नामक संगठन खड़ा किया था जिसका मुख्य कार्य पूंजीवादी देशों की किसी भी आक्रामक गतिविधि पर अंकुश लगाना था। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के साथ ही वॉरसॉ पैक्ट अपने आप समाप्त हो गया था।
नाटो (North Atlantic Treaty Organisation) – UPSC
- Post published:May 9, 2021
- Post category:Prelims / अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध
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