इस लेख में आप पढ़ेंगे : दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन की आक्रामकता की वजह (South China Sea) – UPSC
दक्षिणी चीन सागर में क़रीब 250 छोटे-बड़े द्वीप हैं और लगभग सभी द्वीप निर्जन हैं। यह पूरा क्षेत्र हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई और फ़िलीपीन्स से घिरा है। इंडोनेशिया के अलावा अन्य सभी देश इसके किसी न किसी हिस्से पर अपना दावा करते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक दक्षिणी चीन सागर के पूरे इलाक़े पर जापान का कब्ज़ा था। लेकिन जापान की हार के बाद चीन ने इस पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया था। चीन ने नाइन डैश लाइन के ज़रिये 30 लाख वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र के हिस्से को अपने मानचित्र में जारी कर दिया था। दक्षिणी चीन सागर को लेकर मौजूदा चीनी सरकार के दावे के केंद्र में अब भी वही मानचित्र और अनसुलझा विवाद है।
दक्षिणी चीन सागर का महत्व
- कई देशों की दिलचस्पी इस क्षेत्र में कच्चे तेल की सम्भावना को लेकर है। हालाकि यहाँ कितना तेल मिल सकता है इसे लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
- यहां तीस हज़ार प्रकार की मछलियां है और मत्स्य उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर क़रीब 15 फ़ीसदी का मछली उत्पादन करता है। ज्ञात है की वर्ष 2012 में चीन ने फ़िलीपीन्स से मछुआरों को यहां मछली पकड़ने से रोक दिया था।
- दुनिया में होने वाले व्यापार का 80 फीसदी समुद्री मार्ग से होता है और इस व्यापार का क़रीब एक तिहाई दक्षिणी चीन सागर से हो कर गुज़रता है। इस रास्ते से सालाना क़रीब 3.37 ट्रिलियन डॉलर का बिज़नेस होता है। ऐसे में कई देशों की इसमें दिलचस्पी होना स्वाभाविक ही है।
- सामरिक दृष्टि से भी इस क्षेत्र का अपना महत्व है।
इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां
- चीन ने यहां तीन हज़ार मीटर लंबे तीन रनवे बना लिए हैं। ये सैन्य रनवे हैं यानी यहां वो लड़ाकू विमान उतार सकता है।
- 2013 में चीन ने पूर्वी चीन सागर में एयर डिफेन्स आइडेन्टिफिकेशन ज़ोन (एडीआईज़ेड) बनाया। साउथ चाइना सी में भी वो ऐसा एक ज़ोन बनाना चाहता है ताकि इसे नो फ्लाई ज़ोन करार दे सके।
- दक्षिणी चीन सागर के पारासेल, स्पार्टली, फायरी, मिसचिफ़, सूबी और वूडी द्वीपों को बड़ा करने और वहां सैन्य अड्डे और बंदरगाह बनाने का काम कर रहा है। वह अब तक समुद्र के भीतर तीन हज़ार हेक्टेयर की नई ज़मीन तैयार कर चुका है।
दक्षिणी चीन सागर में चीन की आक्रामकता के बावजूद कोई भी देश सीधे तौर पर उससे भिड़ना नहीं चाहता और इस क्षेत्र के अधिकाँश देश अमेरिका से उम्मीद रखते हैं की वह शांति और स्थायित्व के लिए देर सवेर कोई न कोई कदम उठाएगा। ऐसा प्रतीत होता है की इस क्षेत्र को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टकराव की पृस्ठभूमि तैयार हो चुकी है। यदि अमेरिका अपने एजेंडा में दक्षिणी चीन सागर को कोई अधिक महत्व नहीं देगा तो इसका सीधा फ़ायदा चीन को होगा। शतरांज की इस बिसात पर अगर चीन बड़ा खिलाड़ी बन कर उभरता है और अमेरिका सक्रिय रूप से इस इलाक़े में दखल नहीं देता है तो वह दक्षिण एशिया के पूरे इलाक़े से अमेरिका को बाहर धकेल सकता है और उसके ख़िलाफ़ एक मज़बूत प्रतिद्वंदी के रूप में खुद को स्थापित कर सकता है। दरअसल दुनिया के मछली उद्योग के सबसे बड़े स्रोत और व्यस्ततम समुद्रीमार्ग पर अपना अधिकार साबित कर चीन खुद को इस इलाक़े की अकेली बड़ी शक्ति के रूप में देखना चाहता है। इस इलाके में चीन की भारी भरकम सैन्य गतिविधियां इस बात की तरफ भी इशारा है कि वो अमेरिका को केवल इस इलाक़े से नहीं बल्कि इस एकध्रुवीय दुनिया के केंद्र से भी निकालने की कोशिश कर रहा है।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है, सीमा सम्बन्धी मुद्दों को लेकर वह पहले ही चीन की आक्रामकता का सामना कर रहा है और दक्षिणी चीन सागर में अगर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान आगे बढ़ते हैं तो भारत निश्चित तौर पर साथ देगा क्योंकि वह क्वाड समूह का सदस्य भी है। ASEAN देशों की इतनी हैसियत नहीं है की वे अपने बलबूते चीन की आक्रामकता पर अंकुश लगा सकें। अतः उन्हें भी अमेरिका का साथ देना ही होगा।