यह तकनीकी अपशिष्ट जल (Wastewater) को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बना सकेगी यह तकनीक यूवी-फोटोकैटलिसिस (UV-photocatalysis) का उपयोग करती है जोकि घरेलु सीवेज के साथ-साथ अत्यधिक प्रदूषणकारी औद्योगिक अपशिष्ट जल को भी साफ कर सकती है और पुनः उपयोग के लायक बना सकती है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा मार्च 2021 में जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि देश में हर दिन करीब 72,368 एमएलडी वेस्ट वाटर पैदा होता है लेकिन भारत की कुल वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट क्षमता केवल 31,841 एमएलडी है।
बढ़ते जल संकट को देखते हुए यह जरुरी हो जाता है कि उद्योग अपने वेस्ट वाटर का दोबारा इस्तेमाल करें, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के लिए नई और उन्नत तकनीक का ईजाद नई दिल्ली के द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट ने भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सहयोग से किया है जिसे ‘द एडवांस्ड ऑक्सीडेशन टेक्नोलॉजी’ या टेडॉक्स नाम दिया गया है। 1 अप्रैल 2021 को इसे ट्रेडमार्क दिया जा चुका है। यह नई और उन्नत तकनीक ऑक्सीकरण पर आधारित है
नोट- ‘डे जीरो’ (Day Zero) एक ऐसा शहर जिसकी जमीन के नीचे पानी खत्म हो जाएगा यानी जब भूमिगत जल का स्तर 13.5 फीसद से भी कम हो जाता है।
भारत में जल संकट?
यदि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और मानव कार्यों के प्रभावों को ध्यान में रखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, 2030 तक आपूर्ति की तुलना में पानी की मांग में 40% की वृद्धि होगी।
नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि हमारे देश में साल 2030 तक पानी ख़त्म होने कगार पर आ जाएगा और इस भारी किल्लत का सामना सबसे ज्यादा दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई को करना पड़ सकता है।
जल संकट का सामना करने के लिये मंगलूरु नगर निगम ने जल राशनिंग की व्यवस्था अपनाई है, जिसके अनुसार 48 घंटों के लिये जल की पूर्ति को रोक दिया जाता है और फिर अगले 96 घंटो के लिये जल की पूर्ति शुरू कर दी जाती है, यह चक्र बार-बार चलता रहता है।
उडुपी में ‘स्वर्ण नदी’ (Swarna River) और ‘बाजे बाँध’ (Baje Dam) जल के प्रमुख स्रोत हैं, परंतु इसका जल भी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है और अब प्राकृतिक रूप से इनका प्रयोग करना संभव नहीं है।