इस लेख में आप पढ़ेंगे : (BRICS) ब्रिक्स का भविष्य – UPSC
ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका के संगठन ब्रिक्स (BRICS) में ईरान के साथ-साथ अर्जेंटीना ने भी सदस्यता के लिए आवेदन किया है। ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही है। लेकिन, चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्वाड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता है। इसका असर ना सिर्फ़ ब्रिक्स पर पड़ेगा बल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा। इससे भारत के लिए स्वतंत्र विदेश नीति का रास्ता और कठिन हो सकता है। साथ ही ब्रिक्स (BRICS) का महत्व भी कम हो सकता है।
मूल रूप से ब्रिक्स को आर्थिक तौर पर पश्चिम के विकल्प के तौर पर बनाया गया ताकि पश्चिम के साथ मोलभाव की ताकत बढ़ सके और उस पर निर्भरता कम हो सके। अब चीन इस गुट को अमेरिका विरोध में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एक महाशक्ति बनकर उभरा था। आगे चलकर चीन ने अमेरिका के इस कदम को चुनौती दी। चीन की अर्थव्यवस्था करीब 15 ट्रिलियन डॉलर की है। अपनी इस मज़बूती के ज़रिए वो पश्चिम के ख़िलाफ़ इस्लामिक देशों में एक गुट तैयार करने की कोशिश कर रहा है। सऊदी अरब अमेरिकी गुट का हिस्सा है, ऐसे में ईरान, मलेशिया और तुर्की के साथ चीन नज़दीकी बढ़ा रहा है। लेकिन, जब चीन उभरती हुई ताकत बना तो अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार किया। चीन को भारत के ज़रिए एशिया में ही चुनौती दी गई। ये भारत के पक्ष में था क्योंकि उसका चीन के साथ सीमा विवाद चलता रहा है। अब अगर ईरान ब्रिक्स में शामिल होता है तो इस संगठन में अमेरिका विरोधी देशों की संख्या में इजाफ़ा हो जाएगा। ईरान लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है जिससे उसके आर्थिक हालात ख़राब हुए हैं। उसे भी नए बाज़ार चाहिए और ब्रिक्स उसके लिए एक बेहतरीन मौका हो सकता है।
भारत और ईरान –
इन हालातों में भारत हमेशा से संतुलन बनाने की विदेश नीति अपनाता रहा है। वह एक साथ ब्रिक्स और क्वाड दोनों का हिस्सा बना रहा है। वहीँ दूसरी और चीन क्वाड को अपने लिए ख़तरा बताता आया है। भारत अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस और ईरान से तेल खरीदता रहा है। यहाँ तक की, ईरान भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक दोनों स्तर पर उतना ही अहम है जितना की अमेरिका –
- पहला कारण है तेल की खरीद। बढ़ती महंगाई के बीच भारत को सस्ते तेल की ज़रूरत है जो उसे उसे ईरान और रूस से मिल सकता है। ईरान में चाबहार बंदरगाह का निर्माण भी इसी दिशा में किया जा रहा है। साल 2018 में ईरान भारत को तेल बेचने वाले देशों में दूसरे स्थान पर था लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत को ईरान से तेल ख़रीद में कटौती करनी पड़ी। हालांकि, अमेरिका ने इन प्रतिबंधों से भारत को कुछ हद तक छूट भी दी थी और भारत अमेरिका विरोध के बावजूद भी ईरान से तेल खरीदता रहा। फ़िलहाल ईरान से तेल खरीद इतनी कम हो गई कि वो शीर्ष 20 देशों में भी शामिल नहीं रहा।
- दोनों देशों के बीच व्यापार पर नज़र डालें तो अब भी इनमें अरबों डॉलर का व्यापार होता है। ईरान में भारतीय दूतावास के मुताबिक साल 2020-21 के बीच भारत-ईरान द्वीपक्षीय व्यापार 2.10 अरब डॉलर है। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल 2021 से अक्टूबर 2021 तक द्वीपक्षीय व्यापार 89 करोड़ 48 लाख डॉलर रहा है। एक मुस्लिम देश होने के नाते भी कई मुद्दों पर ईरान का साथ भारत के लिए अहम हो जाता है फिर चाहे वो पाकिस्तान का मसला हो या कश्मीर का। ईरान ने भारत के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दिया है। ऐसे में अगर ईरान ब्रिक्स में आना चाहेगा तो भारत उसका विरोध नहीं करेगा।
ऐसे में अमेरिका नहीं चाहेगा कि पश्चिमी विरोधी ताकतें इस तरह एकजुट हों। लेकिन, यहां भारत की भूमिका बढ़ जाती है क्योंकि ब्रिक्स में अमेरिका सिर्फ़ भारत के साथ ही बातचीत कर सकता है। इसमें वो दबाव भी बनाने की कोशिश कर सकता है। साथ ही चीन और रूस को संतुलित रखने के लिए भारत को बढ़ावा भी दे सकता है। भारत अभी तक रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर, इसराइल और मुस्लिम देशों में बेहतरीन संतुलना बनाता आया है तो अब भी भारत के ऐसा ही रुख अपनाने की उम्मीद है जो उसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मज़बूती प्रदान करेगा।
अगर ब्रिक्स पश्चिम विरोधी ताकत बनकर उभरता है तो भारत क्या कदम उठा सकता है ?
- भारत ब्रिक्स से दूरी बना सकता है।
- वह अपना निवेश कम करके इससे एक रस्म अदायगी वाले समूह के तौर पर जुड़ा रह सकता। अगर भारत इसमें अपना निवेश घटाता है या दूरी बनाता है तो एक दिन ऐसी स्थिति आ जाएगी की ब्रिक्स सिर्फ़ कागज़ों पर रह जाएगा क्योंकि भारत जैसी बढ़ी अर्थव्यवस्था उससे निकल जाएगी।
हालाँकि भारत ब्रिक्स से निकलने की गलती नहीं करेगा क्योंकि इससे वो पूरी तरह पश्चिमी खेमे में नज़र आएगा। साथ ही चीन को एक पश्चिम विरोधी गुट का नेतृत्व करने का मौका मिल जाएगा जो भारत की स्थिति को कमज़ोर करेगा।
क्या है ब्रिक्स ?
- 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी चीन ने ऑनलाइन मोड में की है।
- संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मिस्र, कजाकिस्तान, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, नाइजीरिया, सेनेगल और थाईलैंड जैसे देशों के मंत्रियों के साथ मुख्य बैठक के हिस्से के रूप में ब्रिक्स प्लस आभासी (ब्रिक्स Plus) सम्मेलन भी आयोजित किया गया था।
- ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है- ब्राज़ील, रुस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका. दक्षिण अफ़्रीका, जिसे दिसंबर 2010 में शामिल किया गया था, के इस आर्थिक समूह से जुड़ने से पहले इसे ‘ब्रिक’ ही कहा जाता था.
- ‘ब्रिक’ शब्दावली के जन्मदाता जिम ओ’नील हैं. ओ’नील ने इस शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले वर्ष 2001 में अपने शोधपत्र में किया था.
- जिम ओ’नील के इस प्रसिद्ध शोधपत्र के आठ साल बाद ब्रिक देशों की पहली शिखर स्तर की आधिकारिक बैठक 16 जून 2009 को रुस के येकाटेरिंगबर्ग में हुई.
- इसके बाद वर्ष 2010 में ब्रिक का शिखर सम्मेलन ब्राज़ील की राजधानी ब्रासिलीया में हुई.
- ब्रिक्स देशों के सर्वोच्च नेताओं का सम्मेलन हर साल आयोजित किये जाते हैं. ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता हर साल एक-एक कर ब्रिक्स के सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता करते हैं. 2021 के लिए अध्यक्षता भारत द्वारा की गई।
- ब्रिक्स देशों की जनसंख्या दुनिया की आबादी का लगभग 40% है और इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30% है.
- ब्रिक्स देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं लेकिन इनमें से कुछ के बीच राजनीतिक विषयों पर भारी विवाद हैं. इन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद प्रमुख है.
- इसका सदस्य बनने के लिए कोई औपचारिक तरीक़ा नहीं है. सदस्य देश आपसी सहमति से ये फ़ैसला लेते हैं.