क्या भारत आर्थिक मंदी की और बढ़ रहा है? – UPSC
recession in India

क्या भारत आर्थिक मंदी की और बढ़ रहा है? – UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे – क्या भारत आर्थिक मंदी की और बढ़ रहा है? – UPSC

जब किसी अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ घटती है, तो उसे तकनीकी रूप में मंदी (recession) का नाम देते हैं.आसान शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था जब बढ़ने की बजाय गिरने लगे, और ये लगातार कई तिमाहियों तक होती रहे, तब देश में आर्थिक मंदी की स्थिति बनने लगती है. इस स्थिति में महंगाई और बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ती है, लोगों की आमदनी कम होने लगती है, शेयर बाज़ार में लगातार गिरावट दर्ज की जाती है.

Recession vs Depression

मंदी के साथ ही अर्थव्यवस्था के संदर्भ में जिस एक और शब्द का ख़ूब इस्तेमाल होता है, वो है स्टैगफ्लेशन.स्टैगफ्लेशन वो स्थिति है जब अर्थव्यवस्था स्टैगनेंट यानी स्थिर हो जाती है मंदी में जहां अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की जाती है, वहीं स्टैगफ्लेशन में अर्थव्यवस्था न बढ़ती, न घटती है. यानी ग्रोथ तो ज़ीरो होता है लेकिन इसके साथ ही कीमतों में बढ़त होती है।

दुनिया भर के देश इस व़क्त महंगाई से जूझ रहे हैं. इनमें दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी शामिल हैं. बढ़ती महंगाई को कम करने के लिए ज़्यादातर देशों के केंद्रीय बैंक अपने ब्याज़ दरों में वृद्धि कर रहे हैं, भारत भी उनमें एक है, लेकिन उच्च ब्याज़ दरें आर्थिक गतिविधियों में रुकावट पैदा करती हैं1970 के दशक में अमेरिका में बेतहाशा महंगाई एक बड़ी समस्या बन गई थी महंगाई को नियंत्रित करने के लिए फेडरल रिज़र्व ने ब्याज़ दरों में वृद्धि की, जिससे मंदी आ गईब्याज़ दरों में इज़ाफ़ा करने से बाज़ार में मांग कम हो जाती है और डिमांड कम होने से अर्थव्यवस्था की विकास दर भी धीमी पड़ जाती है.

डिफ्लेशन यानी महंगाई दर में भारी गिरावट भी मंदी पैदा कर सकती है. डिफ्लेशन के कारण कीमतों में गिरावट आती है, जिससे लोगों की सैलरी कम हो जाती है और चीज़ों की कीमतें और घट जाती हैं. आम लोग और व्यावसायी ख़र्च करना बंद कर देते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो जाती है और मंदी दरवाज़ा खटखटाने लगती है. 1990 के दशक में जापान में आई मंदी का कारण अत्यधिक डिफ्लेशन ही था.

ये बात बिल्कुल सही है कि संगठित क्षेत्र अच्छा कर रहे हैं, लेकिन असंगठित क्षेत्रों की स्थिति ख़स्ताहाल है. उनकी ख़स्ताहाल स्थिति के कारण ही डिमांड संगठित क्षेत्रों की तरफ़ बढ़ रही है केवल संगठित क्षेत्र के आंकड़ों के हवाले से  ये नहीं कह सकते कि मंदी नहीं आ सकती दूसरी तरफ़ रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन के बड़े शहरों में जारी लॉकडाउन के कारण सप्लाई चेन प्रभावित है, इसका असर ये हो रहा है कि महंगाई कम नहीं हो रही तो जब तक महंगाई बढ़ती रहेगी, असंगठित क्षेत्रों प्रभावित रहेंगे और हमारी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जाएगी.

मंदी से कैसे बाहर निकला जा सकता है?

  • किसी देश को मंदी से निकालने के लिए सबसे पहले उसकी अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत होती है. अगर निवेश बढ़ता है तो रोज़गार पैदा होगा, लोगों के हाथ में पैसा आएगा और उनकी परचेज़िंग पावर बढ़ेगी.
  • भारत के संदर्भ में बात करें तो रोज़गार एक बहुत बड़ी समस्या है. शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में रोज़गार गारंटी स्कीम के ज़रिए इस समस्या से निपटा जा सकता है.
  • इनडायरेक्ट टैक्सेस जैसे जीएसटी दरों को भी कम करने की ज़रूरत है. अगर उत्पादों पर लगी जीएसटी कम होगी तो लोगों की बचत बढ़ेगी और वो बाज़ार में ज़्यादा निवेश करेंगे. जीएसटी से असंगठित क्षेत्रों को बहुत धक्का लगा है.
  • इसके अलावा कॉर्पोरेट सेक्टर, जो लगातार मुनाफ़े में हैं, उन पर सरकार को विंडफॉल टैक्स लगाने की ज़रूरत है. सरकार कंपनी के प्रॉफिट पर टैक्स वसूलती है इसलिए इसे विंडफॉल टैक्स कहा जाता है. कॉर्पोरेट कंपनियों पर टैक्स लगाने से इनडायरेक्ट टैक्स में कटौती करना आसान होगा. इससे आम लोगों की जेब में ज़्यादा पैसा बचेंगे और वो ज़्यादा निवेश कर सकेंगे.