इस लेख में आप पढ़ेंगे : जलवायु टिपिंग पॉइंट्स (Climate Tipping Points) – UPSC
टिपिंग पॉइंटस जलवायु तापमान की वह स्थिति होगी जिसको पार करने के बाद धरती पर विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे।ऐसा मानना है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि एक बार निर्धारित सीमा को पार कर जाएगी तो उसके चलते वातावरण में अचानक बड़े बदलाव सामने आएंगे जो सबसे ज्यादा इन टिप्पिंग पॉइंट पर ही प्रकट होंगें जैसे कि अमेज़न वर्षावन सूख जाएंगे और पहाड़ों और समुद्रों पर जमा बर्फ की चादर पिघल जाएंगी।
शोधकर्ताओं ने आठ टिप्पिंग पॉइंट का अध्ययन किया हैं-
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना जिसके कारण अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जित होती है जो वापस कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन चक्रों में प्रवाहित हो सकती है।
- महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स का अलग होना, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त मीथेन उत्सर्जित होती है।
- अमेजन वर्षा वनों को होने वाला नुकसान, जिसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड दोबारा वातावरण में मुक्त होती है।
- ग्रीनलैंड में जमा बर्फ का पिघलना जो समुद्र के बढ़ते जलस्तर के लिए जिम्मेवार है।
- पश्चिम अंटार्कटिक में जमा बर्फ की चादर का पिघलना जो समुद्र के जलस्तर में होती वृद्धि का कारण है।
- अटलांटिक सर्कुलेशन पर पड़ता असर जो सतह के औसत वैश्विक तापमान पर असर डालता है।
- आर्कटिक समुद्र में जमा बर्फ का पिघलना जो ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करता है।
- भारतीय मानसून में आता बदलाव जो सीधे तौर पर भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित करता है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन सभी आठ टिपिंग प्वाइंट्स में से महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स का अलग होना और पर्माफ्रॉस्ट दो ऐसे टिप्पिंग पॉइंट हैं जिनके कारण सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान होगा। अकेले महासागरों में मीथेन हाइड्रेट्स के अलग होने से आर्थिक नुकसान में करीब 13.1 फीसदी की वृद्धि होगी जबकि पर्माफ्रॉस्ट, नुकसान में होने वाली 8.4 फीसदी वृद्धि के लिए जिम्मेवार होगा। जलवायु परिवर्तन आज दुनिया के सामने खड़ी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, जिसके परिणाम सारी दुनिया को भुगतने पड़ रहे हैं। कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा, कहीं तूफान और लू (हीटवेव), जैसी आपदाओं का आना आम होता जा रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। यदि यह टिपिंग प्वाइंट्स अपनी सीमा को पार कर जाते हैं तो पिछले अनुमानों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में लगभग 25 फीसदी का इजाफा हो सकता है।