अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिको की वापसी से क्या वहां शांति प्रक्रिया बहाल हो सकेगी?

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिको की वापसी से क्या वहां शांति प्रक्रिया बहाल हो सकेगी?

फ़रवरी 2020 में दोहा बैठक के दौरान अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौता हुआ था की एक मई 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिको की वापसी हो जाएगी, अमेरिका की नव-निर्वाचित सरकार ने अब इस अवधि को 11 सितम्बर 2021 तक के लिए बढ़ा दिया है।  अमेरिकी सैनिको की वापसी के साथ ही अफ़ग़ानिस्तान में चलने वाले बीस वर्षीया युद्ध का अंत भले ही मान लिया जाये लेकिन सब से बड़ी चुनौती अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर जो की त्यों बनी हुई है। अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया को बहाल करने के लिए मार्च 2021 में मास्को और दुशाम्बे में तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की गयी है।  दरअसल अफ़ग़ानिस्तान की शांति वार्ता मुख्यतय तीन बिन्दुओ को लेकर अटकी हुई है –

(1) अमेरिका बिना शर्त शांति प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के पक्ष में है ,

(2) तालिबान चाहता है की पहले उसके लड़ाकों की रिहाई सुनिश्चित की जाये और अमेरिका व उसके मित्र देश तालिबान नेताओ के नामो को काली सुची से बहार करे,

(3) वार्ता के लिए अच्छा माहौल बनाने हेतु तालिबान हिंसा को रोकने की गारंटी दे। 

अफगानिस्तान की शांति वार्ता में अमेरिका और पाकिस्तान के अलावा रूस,चीन और ईरान भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं जिनके अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अपने-अपने हित है। चीन भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान को अपनी महत्वकांक्षी one belt one road योजना के साथ जोड़ना चाहेगा और पाकिस्तान का भी यही प्रयास होगा जो इस योजना का अहम् हिस्सा भी है। जबकि रूस तालिबान के साथ अपने अच्छे रिश्ते चाहता है ताकि वह उन IS (इस्लामिक स्टेट) लड़ाकों को संरक्षण न दे जो सीरिया में रूस के विरुद्ध सघर्षरत्त रहे है। ईरान की अफ़ग़निस्तांन से सीमा लगी हुई है और हेमलद नदी के जल बटवारे को लेकर दोनों के मध्य कुछ विवाद है, ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया में उसकी भूमिका भी अहम् है। 

अब टर्की में अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया को लेकर एक सम्मलेन आयोजित होने वाला है, देखना होगा की इसमें तालिबान किस मानसिकता के साथ समझौते की दिशा में आगे बढ़ता है अथवा नहीं।  अमेरिका और रूस दोनों ही चाहते है की समझौते से पहले ही एक अंतरिम सरकार का गठन कर लिया जाये जो नयी सरकार के गठन तक अपनी भूमिका का निर्वहन करे।  लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार इस बात क लिए तैयार नहीं है।जहाँ तक भारत का प्रश्न है, चीन और पाकिस्तान का प्रयास यही रहा है की अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया से भारत को बहार रखा जाये । जबकि अमेरिका भारत को एक हितधारक (stakeholder) मानता है ।   दुशाम्बे बैठक में भारत को भी आमंत्रित किया गया था।  जिसमे भारत ने दोहरी शांति का आह्वान किया है अर्थात अफ़ग़ानिस्तान के साथ-साथ उसके पड़ोस में ही शांति कायम रहना जरुरी है।  अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिको की वापसी को अमेरिकी हार या तालिबान की जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि सभी पक्षों को अफ़ग़निस्ता के बेहतर भविष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए।  तालिबान के लिए भी यह जरूरी है की वह शरीया कानूनों की जिद को छोड़ कर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के आधार पर ही अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य के बारे में सोचे और अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए समावेशी दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करे।