इस लेख में आप पढ़ेंगे: चीन के ‘न्यू थ्री’ प्रोडक्ट क्या दुनिया को ट्रेड वॉर की और धकेल सकते है ? – UPSC / China’s ‘new three’ products
‘न्यू थ्री’ अर्थात इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी), लीथियम-इयन बैटरी और सोलर प्रोडक्ट्स चीन के वे मौजूदा व्यापारिक हथियार है जो एक नया ट्रेड वॉर प्रारम्भ कर सकते है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन तीनों नए उत्पादों के निर्यात में विस्फोटक वृद्धि देखी गई है. बैटरी से चलने वाली गाड़ियों का निर्यात 131.8 फ़ीसदी बढ़ा है, तो फ़ोटोवोल्टैक्स (photovoltaics) 67.8 फ़ीसदी और लीथियम बैट्री के निर्यात में 86.7 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.
इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चीन के लिए ‘धन के नए स्रोत‘ के रूप में देखा जा रहा है. 21वीं सदी के पहले दो दशकों में रियल इस्टेट सेक्टर को कुछ इसी नज़रिये से देखा जाता था. ईवी इंडस्ट्री के विकास की संकल्पना सबसे पहले साल 2009 की सरकारी नीति में अपनाई गई थी. साल 2012 में इस सेक्टर को रणनीतिक रूप से उभरते हुए सेक्टर के रूप में चिह्नित किया गया. बाद के सालों में इस सेक्टर को रिसर्च और डेवेलपमेंट के लिए फंडिंग, सब्सिडी, टैक्स सहायता, प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के विकास के रूप में सरकारी मदद मिलती रही. साल 2012 में एक सरकारी दस्तावेज़ में यह कहा गया कि आने वाले दस साल ग्लोबल ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में बदलाव के लिहाज से रणनीतिक रूप से अहम हैं. इसी दस्तावेज़ में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में चीन को एक ताक़तवर देश बनाने के लिए नई ऊर्जा से चलने वाली गाड़ियों के विकास के लिए अपील की गई. साल 2023 में ऐतिहासिक तौर पर चीन पहली बार ग्लोबल ऑटोमोबाइल एक्सपोर्ट मार्केट में जापान से आगे निकल गया. चीन के कुल निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा इलेक्ट्रिक गाड़ियों का है हालाँकि सरकारी मदद की वजह से इस इंडस्ट्री में भीड़ भी काफी बढ़ गई. इससे कारोबारी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी साल 2018 में चीन में लगभग 500 कंपनियां इस सेक्टर में काम कर रही थीं, लेकिन अगले पांच साल में लगभग 40 कंपनियां ही मैदान में बची रह गईं. इसकी वजह थी गला काट प्रतिस्पर्धा.
इलेक्ट्रिक गाड़ियों के ज़रूरत से अधिक उत्पादन का सीधा संबंध लीथियम बैटरी से है. लीथियम बैटरी इलेक्ट्रिक गाड़ियों का एक महत्वपूर्ण कॉम्पोनेंट (पुर्जा) होता है. साल 2017 से साल 2023 के बीच चीन में लीथियम बैटरी का उत्पादन 111 से 940 गीगावॉट हावर्स (जीडब्ल्यूएच) लगभग नौ गुना बढ़ गया. बैटरी के उत्पादन में काम आने वाली एक प्रमुख चीज़ लीथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) की उत्पादन क्षमता साल 2020 में 362,000 टन से दो साल में बढ़कर 1.65 मिलियन टन हो गई. घरेलू लीथियम उत्पादन का दोगुना होना, दुनिया के बाज़ारों में चीनी कच्चे माल की मांग का बढ़ना, ये दोनों घटनाएं एक ही वक़्त में हुई. वर्ष 2025 तक चीन की एलएफपी प्रोडक्शन क्षमता 5.75 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी जबकि दुनिया की कुल मांग महज 2.67 मिलियन टन ही है. विश्व बाज़ार में पोलिसिलिकोन, वेफ़र्स, सोलर सेल्स और फ़ोटोवॉल्टेक्स के क्षेत्र में चीन का हिस्सा 70 फ़ीसदी हो गया है लेकिन इन सबके निर्माण की लागत भारत से 10 फ़ीसदी, अमेरिका से 20 फ़ीसदी और यूरोप से 35 फ़ीसदी कम थी. चीन में फ़ोटवॉल्टेक्स बनाने की क्षमता 1,000 गिगा वाट्स तक पहुँचने जा रही है. इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया में ये क्षमता अब भी 400-500 गिगा वाट्स तक ही पहुँच पाई है.
क्या ग्लोबल ट्रेड वॉर होगा?
अमेरिका और यूरोपीय संघ वैश्विक बाज़ारों में ‘सस्ते चीनी उत्पादों की भरमार‘ को लेकर पहले से ही चिंतित है, और अब चीन के ‘न्यू थ्री’ उत्पाद ने चिंता और गहरी कर दी है. एक वक्त चीन के रियल इस्टेट की कुल जीडीपी में हिस्सेदारी 25 फीसदी रहती थी. लेकिन रियल इस्टेट में मंदी के कारण स्टील के दामों को घटाना पड़ा है, जिससे उसका निर्यात बढ़ा है. अमेरिका,मेक्सिको और चिली ने चीन से आने वाली स्टील पर टैरिफ़ लगा दिए थे. इसके अलावा ब्राज़ील, विएतनाम, भारत, ब्रिटेन, फ़िलिपींस और तुर्की ने भी चीनी स्टील के निर्यात पर जांच शुरू की है. अमेरिकी में चुनावों से पहले ही चीन के साथ व्यापारिक मतभेदों पर सख़्त बयान दिए जा रहे है. डोनाल्ड ट्रंप ने मेक्सिको में बन रही चीनी कारों पर 100 फ़ीसदी टैक्स लगाने की बात कही है. इसी प्रकार दूसरा पक्ष भी इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनल और सेमी कंडक्टर पर टैरिफ़ लगाने की बात कर चुका है. यूरोप में भी चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों, मेडिकल के साज़ो-सामान, विंड टर्बाइन और सोलर पैनलों पर जांच शुरू कर दी है. भारत ने भी चीनी सोलर पैनल पर 2022 में टैरिफ़ लगाए थे, और 2023 में 40 चीनी फ़र्मों की जांच शुरू की थी. दुनिया में जिस प्रकार से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, उससे ग्लोबल ट्रेड में तरकार बढ़ने का अंदेशा और अधिक है.