इस लेख में आप पढ़ेंगे: NATO के विस्तार का औचित्य – UPSC
अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य प्रारम्भ होने वाले शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नाटो संस्था वजूद में आई थी। शुरुआत में नाटो के अमेरिका और कनाडा समेत 12 सदस्य देश थे अभी नाटो के कुल 30 देश सदस्य हैं, जिसमें यूक्रेन शामिल नहीं है। यूक्रेन पर रूस के ताज़ा हमले की एक वजह नाटो का यही विस्तार है।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, माना जा रहा था कि नाटो का कोई औचित्य नहीं रह गया है। सोवियत संघ टूट कर 15 छोटे-छोटे देश में बिखर गया था। ऐसे में रूस का दावा है कि नाटो ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वो अपना आगे विस्तार नहीं करेगा। लेकिन हक़ीकत ये है कि नाटो का विस्तार हाल तक जारी रहा-
- रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लात्विया, एस्टोनिया और लिथुआनिया 2004 में NATO में शामिल हुए,
- जबकि क्रोएशिया और अल्बानिया NATO में 2009 में शामिल हुए,
- 2008 में यूक्रेन और जॉर्जिया के NATO में शामिल होने की बात थी, लेकिन ऐसा हो ना सका।
2008 में जब यूक्रेन और जॉर्जिया को NATO में शामिल होने की बात चली तो पुतिन ने इसका सख़्ती से विरोध किया। पहले रूस ने जॉर्जिया में सैन्य हस्तक्षेप किया और अब यूक्रेन पर हमला किया है। NATO उस वक़्त भी जॉर्जिया के बचाव के लिए सामने नहीं आया था और अब NATO ने अपने सैनिकों को यूक्रेन भेजने से भी इंकार कर दिया है। दरअसल NATO के सैनिक तभी इस तरह के युद्ध में जाते हैं जब जंग में उसके सदस्य देश शामिल हों। ये भी सच है कि NATO ने यूक्रेन की सैन्य शक्ति बढ़ाने की दिशा में काफ़ी मदद की है और अगर NATO ने रूस और यूक्रेन की जंग में यूक्रेन का साथ दिया, तो मामला ज़्यादा बिगड़ सकता है, हालात तीसरे विश्व युद्ध जैसे पहुँच सकते हैं। NATO एकल धुर्वीय विश्व व्यवस्था में पश्चिमी देशो का औजार बन कर दूसरे देशो की प्रभुसत्ता का अतिक्रमण करता रहा है और यही विवाद का मूल है।