नाटो की व्यापकता को लेकर इतनी छटपटाहट क्यों? – NATO UPSC HINDI

नाटो की व्यापकता को लेकर इतनी छटपटाहट क्यों? – NATO UPSC HINDI

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नाटो क्या है?

नाटो एक सैन्य संधि है जो नव-उदित महाशक्तियों के मध्य प्रारम्भ होने वाले शीत-युद्ध की परिस्थितियों में वजूद में आयी थी। 1949 में अमेरिका और उसके मित्र देशो के मध्य की गयी इस संधि का मूल सिद्धांत था, “सबके लिए एक और एक के लिए सब”। इस सिद्धांत का सीधा अभिप्राय था कि यदि कोई साम्यवादी देश पूंजीवादी खेमे से जुड़े किसी भी सदस्य के विरुद्ध आक्रामक नीति अपनाता है तो सभी पूंजीवादी देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे।

सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो

90 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात इस संधि का कोई मतलब नहीं होना चाहिए था, क्योकि एकल धुर्वीय विश्व व्यवस्था में शीत युद्ध की परिस्थितियां समाप्त हो चुकी थी परन्तु अमेरिका ने नाटो को न केवल जिन्दा रखा बल्कि इसके विस्तार पर भी बल देता रहा है, ताकि यह उसके लिए एक पुलिसमैन की भूमिका निर्वहन करता रहे। जब सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था वजूद में है तो फिर नाटो का क्या औचित्य था? सवाल तो इसके आलावा भी कई है लेकिन अमेरिका और रिश्तेदार इनका उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं है क्योकि एकल धुर्वीय मानसिकता का नशा ही कुछ ऐसा है।

नाटो की व्यापकता

दिसंबर 2019 में नाटो के लम्बरदारो ने घोषणा कर दी थी कि भूमि, समुद्र, वायु और साइबर स्पेस के बाद अंतरिक्ष नाटो के अभियानों के लिहाज से पांचवा क्षेत्र होगा। इसके पीछे सन्देश साफ़ था कि अंतरिक्ष में होने वाले हमलो के खिलाफ भी नाटो के देश साथ मिलकर लड़ेंगे। नाटो संधि के अनुछेद 5 के अनुसार गठबंधन के तीस में से किसी भी सहयोगी पर हमले को सभी पर हमला माना जायेगा। अब तक यह केवल परंपरागत सैन्य हमलो जैसे जल, थल व् वायु तक ही सम्बंधित था लेकिन हाल ही में इसमें साइबर हमलो को भी जोड़ दिया गया है। पश्चिमी देशो के अनुसार अंतरिक्ष में, अंतरिक्ष से और अंतरिक्ष पर हमला नाटो के लिए एक चुनौती हो सकता है। ऐसा कोई भी हमला होने पर संधि का अनुछेद 5 अपने आप प्रभावी हो जायेगा।

अंतरिक्ष में विस्तार कि वजह –

गौरतलब है कि पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले करीब 2 हजार में से आधे उपग्रहों का संचालन नाटो के देशो के पास है। आज जिस प्रकार से चीन और रूस अंतरिक्ष में पश्चिमी देशो के लिए नयी चुनौती बनकर उभरे है। उसके मनोवैज्ञानिक दबाव के कारण ही नाटो का विस्तार अंतरिक्ष तक कर दिया गया है। लब्बोलुबाब एक ही है कि चीन और रूस की जुगलबंदी अमेरिका और उसके मित्र देशो के लिए सबसे बड़ी समस्या बन कर उभरी है। अतीत के शीत युद्ध में दो ही मुख्य खिलाड़ी थे अमेरिका और सोवियत संघ। परन्तु अब जिस नव-शीतयुद्ध की पृष्टभूमि तैयार हो रही है उसमे अमेरिका के सम्मुख मुख्य खिलाडी चीन है और रूस के साथ आ जाने से शक्ति संतुलन कहीं न कहीं चीन और रूस की ओर झुकने लगा है, इसलिए अमेरिका अपने एकल धुर्वीय वर्चस्व को बचाने के लिए तरह-तरह के प्रपंच अपना रहा है ।

अब देखने वाली बात होगी की नव-शीतयुद्ध का यह दौर कितना लम्बा खींचता है, क्योकि आर्थिक मोर्चे पर चीन काफी आगे निकल चुका है और राजनीतिक मोर्चे पर रूस का सहारा उसके लिए काफी मायने रखता है।

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