एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय

एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय

इस लेख में आप पढ़ेंगे : एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय

साल 2001 में ऐसी दो घटनाएं हुईं थी जिन्होंने पूरी दुनिया की धूरी ही हिला दिया था। एक तरफ़, दुनिया 9/11 हमलों की प्रतिक्रिया में उलझी थी। तो दूसरी ओर, इसके ठीक तीन महीने बाद 11 दिसंबर को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चीन के शामिल हो जाने से नए समीकरण बनने तय थे।

दूसरी घटना आर्थिक और भू-राजनैतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थीं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे नेताओं ने वादा किया था कि ‘लोकतंत्र के सबसे ठोस मूल्यों में से एक आर्थिक आज़ादी’ को चीन भेजने से दुनिया का यह सबसे अधिक आबादी वाला देश राजनीतिक आज़ादी के रास्ते पर भी चलेगा। लेकिन यह नीति नाकाम रही। चीन के आर्थिक मॉडल ने कुछ हद तक इस पश्चिमी विचार को धता बताया है कि ‘आप राजनीतिक नियंत्रण में एक अभिनव समाज नहीं बना सकते। कहने का मतलब यह नहीं है कि चीन की नवाचार क्षमता उसके आर्थिक मॉडल से मज़बूत हुई है। कहने का मतलब यह है कि पश्चिमी देशों ने जिस सिस्टम को असंगत माना था वह दरअसल असंगत नहीं था।

साल 2000 से पहले चीन की पहचान प्लास्टिक के अलग-अलग सामान और सस्ते सामान के प्रमुख उत्पादनकर्ता की थी। ये चीज़ें ज़रूरी तो थीं लेकिन ना ही इनसे दुनिया बदल रही थी और ना ही आप इनसे दुनिया को हरा सकते थे। विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन के शामिल होने ने कई बड़ी आर्थिक उपलब्धियां हासिल की हैं। चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने से पहले देश की पचास करोड़ आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे थी। आज की बात की जाए तो यह शून्य है क्योंकि इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था 12 गुणा बढ़ चुकी है। चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 16 गुणा बढ़कर 2.3 ट्रिलियन डॉलर पहुँच गया है। साल 2000 में चीन उत्पादों के आयात में दुनिया में सातवें नंबर पर था लेकिन जल्द ही यह नंबर एक पर पहुंच गया। चीन में अभी आर्थिक प्रगति की दर 8 प्रतिशत सालाना है लेकिन एक समय यह 14 प्रतिशत तक पहुंच गई थी जबकि पिछले साल यह 15 प्रतिशत पर स्थिर हो गई थी।

कंटेनर जहाज़ वैश्विक व्यापार की रीढ़ होते हैं। डब्ल्यूटीओ में शामिल होने में चीन से आने-जाने वाले कंटेनरों की संख्या 4 करोड़ से बढ़कर आठ करोड़ पहुंच गई थी। जबकि साल 2011 में चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के एक दशक बाद चीन से आने जाने वाले कंटेनरों की संख्या तीन गुणा बढ़कर 12 करोड़ 90 लाख को पार कर गई थी। पिछले साल यह संख्या 24.5 करोड़ थी। चीन पहुँचने वाले आधे कंटेनर जहाँ ख़ाली थे, वहीं चीन से निकलने वाले सभी कंटेनर सामान से भरे थे। चीन का हाइवे नेटवर्क भी तेज़ी से बढ़ा है। 1997 में चीन में 4700 किलोमीटर लंबे हाईवे थे, जो 2020 में बढ़कर 161000 किलोमीटर लंबे हो गए हैं। चीन के पास अब दुनिया का सबसे लंबा हाईवे नेटवर्क है। चीन में दो लाख से अधिक आबादी वाले 99 प्रतिशत शहर अब हाइवे से जुड़े हैं।

इस उन्नत इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ चीन को उत्पादन बढ़ाने के लिए मेटल, ईंधन, और खनिजों की भी ज़रूरत है। चीन की तेज़ी से बढ़ती ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिकल एप्लायंस इंडस्ट्री के लिए स्टील ज़रूरी है। साल 2005 में चीन पहली बार स्टील का निर्यातक बना और अब चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्टील निर्यातक है। 90 के दशक में चीन सालाना दस करोड़ टन स्टील का उत्पादन करता था। डब्ल्यूटीओ का सदस्य बनने के बाद चीन साल 2012 में 70 करोड़ टन स्टील उत्पादन तक पहुंच गया था और साल 2020 में चीन ने सौ करोड़ टन का आँकड़ा पार कर लिया। चीन इस समय दुनियाभर में स्टील उत्पादन का 57 फ़ीसदी उत्पादन करता है। साल 2000 से 2005 के बीच चीन का कपड़ों का निर्यात दोगुना हो गया और इस दौरान वैश्विक कारोबार में चीन का हिस्सा पाँचवें से होकर तीसरा हो गया।

चीन को पश्चिम की वर्कशाप के रूप में देखा गया था, लेकिन चीन ने डब्ल्यूटीओ की अपनी सदस्यता का इस्तेमाल इससे कहीं अधिक हासिल करने के लिए कर लिया है। उदाहरण के तौर पर चीन ने ऐसे गठजोड़ बनाए हैं जो उसे नेट ज़ीरो जलवायु परिवर्तन उत्पादन करने के लिए ज़रूरी रेयर अर्थ मटीरियल (ऐसे प्राकृतिक संसाधन जो आसानी से उपलब्ध नहीं है) मुहैया कराएंगे। चीन ने दुनिया भर में अपनी इंडस्ट्री को फैलाया है और उसके पीछे चीन की सरकार खड़ी है। अमेरिका कूटनीतिक और आर्थिक रूप से चीन को रोकने की कोशिशें कर रहा है और इसके लिए वो एशिया और यूरोप में गठबंधन बना रहा है। अब 20 साल बाद एक ऐसे निर्णय ने दुनिया को बदल दिया है, जिस पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया था। चीन के लिए यह एक बड़ी कामयाबी साबित हुआ है। इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों की भू-राजनैतिक रणनीति फेल हो गई है।

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार घाटा 300 अरब डॉलर का है। दोनों देशों के बीच 500 अरब डॉलर का व्यापार होता है जिसमें अधिकांश माल चीन से निर्यात होता है। दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉर में भी चीन के व्यापार पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन इस समय दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।