कोविड-19 से जुडी वैक्सीनों को TRIPS समझौते से छूट दिया जाना कहाँ तक तर्कसंगत है? – UPSC

कोविड-19 से जुडी वैक्सीनों को TRIPS समझौते से छूट दिया जाना कहाँ तक तर्कसंगत है? – UPSC

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TRIPS (बौद्धिक संपदा अधिकार) विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देशो के बीच एक बहुपक्षीय कानूनी समझौता है जिसके तहत किसी फर्म, व्यक्ति अथवा देश के द्वारा कोई नया अविष्कार किया जाता है तो उसपर उसका मालिकाना हक़ होगा, दूसरे शब्दों में सम्बंधित फर्म की अनुमति के बिना कोई भी उसकी नक़ल नहीं कर सकेगा। पेटेंट होल्‍डर के अलावा कोई और उस उत्‍पाद को तैयार नहीं कर सकता।

अक्टूबर 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन में कोविड वैक्सीन के पेटेंट पर छूट के सम्बन्ध में प्रस्ताव रखा था जिसका प्रमुख उद्देश्य था कि वैक्सीन और कोविड से जुडी दवाओं के उत्पादन को तेज किया जाये और विकासशील तथा पिछड़े देशो को उनपर अधिकार दिया जाये।

प्रारम्भ में अमरीका सहित अधिकाँश विकसित देशो ने इसका विरोध किया था लेकिन हाल ही में महामारी के प्रकोप को देखते हुए, अमेरिका और यूरोपियन संघ के देशो ने इस पर विचार करने पर सहमति प्रकट की है। भारत का सुझाव है की जबतक दुनियाभर में वैक्‍सीनेशन शुरू नहीं हो जाता और अधिकतर आबादी को टीका नहीं लग जाता, तब तक यह छूट जारी रहनी चाहिए। इस छूट की हर साल समीक्षा भी की जाए।

दरअसल वैक्‍सीन का उत्‍पादन समान रूप से नहीं हो रहा है अतः पेटेंट में छूट से विकासशील और गरीब देशों को फायदा मिलेगा। फिलहाल दुनिया की बड़ी फार्मा कंपनियां जैसे- अस्‍त्राजेनेका, फाइजर, जॉनसन ऐंड जॉनसन या तो वैक्‍सीन खुद बना रही हैं या फिर उन्‍होंने किसी और कंपनी को लाइसेंस दे रखा है। इससे उन्‍हें वैक्‍सीन के उत्‍पादन और उसके वितरण पर नियंत्रण मिला हुआ है। उदाहरण के लिए सीरम इंस्टिट्यूट के पास भले ही भारत में कोविड वैक्‍सीन बनाने का लाइसेंस हो मगर वैक्‍सीन कहां बिकेगी, यह तय करने का अधिकार पेटेंट वाली कंपनी को है

भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का अबतक 62 देशो ने समर्थन किया है, अमेरिका, यूरोपियन संघ, कनाडा, न्‍यूजीलैंड इस प्रस्‍ताव पर बातचीत को तैयार हैं जबकि जर्मनी, स्विट्जरलैंड, यूके, ब्राजील और जापान ने इस कदम का विरोध किया है। विरोध करने वाले देशों का तर्क है कि इससे भविष्‍य में नए अनुसंधानों पर असर पड़ेगा और यह कदम फार्मास्‍यूटिकल कंपनियों के हितों के खिलाफ होगा। अगर पेटेंट में छूट मिलती है तो भारत समेत कई देशों में वैक्‍सीन उत्‍पादन बढ़ सकता है। यदि आयात के बजाय घरेलू उत्‍पादन होगा तो निश्चित तौर पर टीकों के दाम घटेंगे। अभी रेमडेसिविर जैसी कई दवाएं हजारों रुपये में मिलती हैं। पेटेंट में छूट के बाद उनके जेनेरिक वर्जन काफी सस्‍ते में उपलब्‍ध हो सकेंगे।

प्रस्ताव में छूट के लिए तीन वर्ष की अवधि की मांग की गयी है, यह अवधि इसलिए महत्वपूर्ण होगी की इच्छुक कम्पनिया निवेश का निर्णय लेने से पहले निश्चितता अवश्य चाहेगी। देखना होगा कि विश्व व्यापार संगठन के सभी देश इस मानवीय आपदा को देखते हुए वैक्सीन के मुद्दे पर आम राय बना पाते है अथवा नहीं।