इस लेख में आप पढ़ेंगे : भारत में दलहन नीति (Pulse Policy in India) कितनी जरूरी ? – UPSC
भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। परन्तु दालों की आपूर्ति अधिकतर योजनावधि में, मांग की तुलना में कम रही है, जिससे देश को बड़ी मात्रा में दालों का आयात करना पड़ा है। आज देश की अधिकतर आबादी प्रोटीन इन्फ्लेशन के कारण प्रोटीन की कमी की समस्या से सामना कर रही है। देश के पूरे कृषि इतिहास में दालों का रिकार्ड उत्पादन 25.42 मिलियन टन वर्ष 2018 में हुआ। परन्तु तब भी यह उस वर्ष के लिये निर्धारित लक्ष्य 26.3 मिलियन टन से कम ही था, जबकि देश की कुल अनुमानित मांग लगभग 30-31 मिलियन टन है। उसके बाद के दो वर्षों 2019 और 2020 में यह पुन: घटकर क्रमश: 22 और 23 मिलियन टन रहा। अत: प्रतिवर्ष लगभग 3 से 6 मिलियन टन दालों का आयात करना पड़ता है।
कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत कृषि लागत एवं मूल्य आयोग दालों सहित सभी कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण निम्नलिखित बातों के आधार पर करता है:
- उत्पादन लागत
- घरेलू और वैश्विक बाजार में आपूर्ति, मांग तथा मूल्यों की स्थिति
- अन्य जिंसों के सापेक्ष मूल्यों की स्थिति
- भूमि, जल आदि प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग
- देश की अर्थव्यवस्था, विशेषकर उपभोक्ताओं पर होने वाले संभावित प्रभाव और
- उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत लाभ।
इस व्यवस्था में कई स्पष्ट विसंगतियां हैं जैसे कि-
- आयोग की सिफारिशें मात्र परामर्शात्मक होती हैं, जिन्हें मानना न मानना सरकार की मर्जी पर निर्भर है।
- किसान को मिलने वाला तथाकथित 50 प्रतिशत लाभ समग्र यानि सी-2 लागत पर नहीं बल्कि ए-2+ एफ.एल. स्तर के ऊपर जोड़ा जाता है, जो अपेक्षाकृत काफी कम होता है।
- जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किये जाते हैं, वे भी किसान को नहीं मिलते। खासकर दालों के मूल्य तो कभी नहीं, क्योंकि सरकार द्वारा इनकी खरीद की वैसी व्यवस्था भी नहीं है जैसी गेहूं, चावल, कपास और गन्ने आदि की है। फसल के समय खुले बाजार में दालों के मूल्य अक्सर सरकार द्वारा घोषित किये ए-2+एफ.एल.+50 प्रतिशत मूल्यों से भी कम रहते हैं।
- उपभोक्ताओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुकाबले ढाई-तीन गुणा यानि 150 प्रतिशत से 200 प्रतिशत दाम पर दालें खरीदनी पड़ती हैं। इससे मुद्रा स्फीति बढ़ती है।
इस समस्या के निम्न समाधान हो सकते है –
- न्यूनतम समर्थन मूल्यों को सरकार सी-2+50 (C2 + 50) प्रतिशत के आधार पर घोषित करें।
- पूरे देश में प्रत्येक फसल की उस घोषित मूल्य पर खरीद सुनिश्चित की जाए।
- कृषि लागत मूल्य आयोग का पुनर्गठन करके उसे संवैधानिक दर्जा दिया जाय, ताकि उसकी संस्तुतियां सरकार के ऊपर बाध्यकारी हों।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसान का वैधानिक अधिकार और सरकार का संवैधानिक उत्तरदायित्व बनाया जाए।
भारत वैश्विक उत्पादन का 24 प्रतिशत दालों का उत्पादन करता है। हालांकि इसकी पैदावार अन्य उत्पादक देशों की तुलना में बहुत कम है, क्योंकि हमारे यहां दालें अपेक्षाकृत सीमांत भूमि और शुष्क या वर्षा आधारित असिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती हैं। कीमतों को नियंत्रण में रखने हेतु आपूर्ति बढ़ाने के लिए भारत में दालों के उत्पादन को वर्तमान 3 प्रतिशत की तुलना में 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने की आवश्यकता है। हालांकि उनका उत्पादन 2014-15 में 15-16 मीट्रिक टन से बढ़कर 2019-20 तक 22-23 मीट्रिक टन हो गया, लेकिन घरेलू मांग बढ़ जाने के कारण कमी बरकरार रही, क्योंकि दालों की खपत लगभग 25-26 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। 5 जून, 2020 को, भारत सरकार ने “आवश्यक वस्तु (संशोधन) (ईसी(ए) अध्यादेश, 2020” जारी किया था। बाद में इसे एक अधिनियम में बदल दिया गया, जिसके तहत सरकार खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगी, जब तक कि हालात “असाधारण “ न हों। नए कानून के अनुसार स्टॉक सीमा लगाने का निर्णय केवल तभी लिया जा सकता है, जब जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थों के औसत खुदरा मूल्य में पिछले एक वर्ष या पांच वर्षों के मुकाबले 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई हो, ऐसे खाद्य पदार्थ जो जल्दी खराब नहीं होते, उनके लिए मूल्य वृद्धि की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की गई थी। किसानो का विरोध इस बात को लेकर है कि खाद्य वस्तुओं पर स्टॉक की सीमा को हटाने से अधिकांश गरीब परिवारों को जमाखोरी और खाद्य मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ सकता है। इसमें किसान एवं खेतों में काम करने वाले मजदूर शामिल हैं।