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कृषि में Genetic Engineering- UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे: कृषि में Genetic Engineering- UPSC

कपास को छोड़कर, भारत आनुवंशिक संशोधन (Genetic Modification/GM) क्रांति की राह से चूक गया है। कपास में भी, 2006 में बोलगार्ड-II बीटी के बाद, तथाकथित पर्यावरण समूहों के विरोध के कारण, किसी भी नई तकनीक के व्यावसायीकरण की अनुमति नहीं दी गई है। भारत को जीनोम-संपादित (Genome-Edited) फसल प्रजनन में इस तरह के लुडाइट दबावों के आगे न झुककर, इस तकनिकी में हो रहे नए विकासों को अपनाना चाहिए। जैव प्रौद्योगिकी फसलें (Biotech Crops) वे पौधे हैं जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग के माध्यम से संशोधित किया गया है ताकि उन्हें कीट और रोग प्रतिरोधक क्षमता, जलवायु सहनशीलता और बेहतर पोषण मूल्य जैसे गुण प्रदान किए जा सकें। इन परिवर्तनों से फसलों की उपज बढ़ सकती है, कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो सकती है, और सूखे या ठंड जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी उगने की क्षमता प्राप्त हो सकती है। आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का उपयोग करने वाले देश:

भारत में जीनोम-संपादित (GE) फसल प्रजनन में नए विकास:

पौधों के डीएनए को सटीक रूप से काटने और उसमें फेरबदल करने वाले इस स्वदेशी उपकरण से GE को चुनौती देने वालों की एक प्रमुख चिंता का समाधान होना चाहिए – भारतीय किसानों के हितों को वैश्विक कृषि प्रौद्योगिकी एकाधिकार के हवाले करने की चिंता। यह तर्क विशेष रूप से GM कपास के मामले में इस्तेमाल किया गया था, जहाँ बोलगार्ड BT मोनसेंटो/बायर की स्वामित्व वाली तकनीक थी। यह और बात है कि उन्हीं समूहों ने जीएम सरसों के व्यावसायिक विमोचन को रोक दिया था, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक पेंटल के नेतृत्व में भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया था। देश के कृषि विज्ञान समुदाय के मनोबल को गिराने के परिणाम दूरगामी होंगे।

भारत को कृषि में Genetic Engineering की आवश्यकता क्यों है?

विकसित पश्चिमी और पूर्वी एशियाई देशों के विपरीत, भारत के सामने 2060 तक अनुमानित 1.7 अरब लोगों का पेट भरने की एक बड़ी चुनौती है। कम ज़मीन और पानी, और बढ़ती जलवायु अनिश्चितता इस चुनौती को और कठिन बनाते हैं। सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहतर फसल प्रजनन के बिना संभव नहीं है, चाहे पारंपरिक क्रॉसिंग-सिलेक्शन के ज़रिए हो या GM और GE के ज़रिए। इस हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ करने की एक क़ीमत है, जो देश पहले ही चुका रहा है: आज भारत लगभग 20 अरब डॉलर मूल्य के वनस्पति तेलों का सालाना आयात करता है और कपास के शुद्ध निर्यातक से आयातक बन गया है। इस साल भारत लगभग 1.5 बिलियन डॉलर के कपास का आयत करेगा। भारत को स्वदेशी और पर्यावरणवाद के नाम पर और तकनीकी एकाधिकार के डर से विज्ञान को नकारना नहीं चाहिए। बल्कि बेहतर शोध, स्वदेशीकरण में वृद्धि और बेहतर नियामक ढांचे के ज़रिये भारतीय किसानों तक जेनेटिक इंजीनियरिंग और सटीक प्रजनन के फ़ायदों पहुंचाने चाहिए।

Genetic Engineering, Genetic Modification और Gene Editing में अंतर:

जेनेटिक इंजीनियरिंग, किसी जीव के डीएनए में बदलाव लाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न तकनीकों के लिए एक व्यापक शब्द है। इन तकनीकों में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर विशिष्ट जीन या डीएनए अनुक्रमों को जोड़ना, हटाना या बदलना शामिल हो सकता है।

आनुवंशिक संशोधन (GM) एक प्रकार की आनुवंशिक इंजीनियरिंग है, जिसमें किसी जीव के DNA में किसी भिन्न प्रजाति के जीन को शामिल किया जाता है।

वहीं जीन संपादन (GE) में किसी जीव के विद्यमान डीएनए में कोई बाहरी जीन पदार्थ डाले बिना ही सटीक परिवर्तन किया जाता है।