हाल ही में इजराइल और फिलस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के मध्य जिस प्रकार से खूनी संघर्ष की स्थित बनी हुई है, ऐसे में सवाल उठता है की इस्लामिक देशो का सबसे बड़ा संगठन OIC क्या इजराइल पर कोई दबाव बनाने में सक्षम है? और यदि नहीं तो फिर इसकी क्या प्रासंगिकता बची है?
फिलिस्तीनी इलाको में इजराइल की आक्रामक कार्यवाही को लेकर इस्लामिक देशो में हलचल है। यरुसलम और गाज़ा में हिंसक टकराव के चलते सऊदी अरब ने OIC की आपात बैठक बुलाई है, लेकिन ऐसा नहीं है की सारे इस्लामिक देश OIC के सदस्य होने के नाते किसी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर एक स्वर में बोलते हो, इनमे भी पर्याप्त मतभेद है।
तुर्की और पाकिस्तान भले ही इजराइल के खिलाफ खुल कर बोल रहे हो लेकिन OIC में इनका दखल नहीं के बराबर है। यहाँ तक की OIC को सऊदी अरब का ही प्रमुख संगठन माना जाता रहा है। देखा जाये तो OIC का वैश्विक राजनीति तो दूर की बात, खाड़ी देशो में भी कोई बड़ा दखल नहीं है, इसके कई सदस्यों ने इजराइल के साथ अपने राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए है जबकि OIC इजराइल को मान्यता नहीं देता है, वर्ष 2020 में OIC के चार सदस्यों- संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को ने इजराइल से औपचारिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए है। पाकिस्तान इस्लामिक दुनिया का एकमात्र देश है जो परमाणु शक्ति संपन्न देश है और वह OIC में अपनी अहमियत दिखाने का प्रयास भी करता है परन्तु 2019 में कश्मीर मामले को लेकर इस संगठन से कुछ ख़ास समर्थन नहीं जुटा पाया था। OIC के भीतर ईरान, सऊदी और तुर्की के बीच हमेशा से मतभेद रहे हैं, तीनों देशों की मध्य-पू्र्व में विदेश नीति बिल्कुल अलग है। ईरान और सऊदी अरब ने इजराइल को कभी मान्यता नहीं दी है जबकि टर्की दुनिया का पहला मुस्लिम देश था, जिसने इजराइल को मान्यता प्रदान की थी और उसके साथ अपने राजनैयिक सम्बन्ध बनाये रखे यहाँ तक कि 2005 में अर्दोआन जब तुर्की के प्रधानमंत्री थे, तो इसराइल के दो दिवसीय दौरे पर भी गए थे। इस दौरे में उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम की आलोचना की थी।
दरअसल अब मध्य-पूर्व में इस्लामिक देश रस्म अदायगी के तौर पर इजराइल की आलोचना करते है और उन्होंने फिलिस्तीनियों को नियति के हवाले छोड़ रखा है। खाड़ी क्षेत्र में जिस प्रकार से अमेरिका के द्वारा बिसात बिछाई गयी है ऐसे में अरब देशो के धुर्वीकरण का सवाल ही नहीं उठता, फिर OIC जैसे संगठनो से उम्मीद करना की वह फिलिस्तीनियों के बचाव में अरब देशो को गोलबंद कर पायेगा, बेमानी होगा। OIC की भूमिका से निराश होकर 2020 में टर्की, ईरान, पाकिस्तान और मलेशिया ने उसके समानांतर नया इस्लामिक संगठन खड़ा करने की नाकाम कोशिश भी की थी।
मध्य पूर्व की ज्वलंत समस्या का समाधान अमेरिका के बिना संभव नहीं है और अमेरिका इजराइल का साथ आसानी से छोड़ने वाला नहीं है। यदि अमेरिका ईमानदार होता तो इजराइल को ऐतिहासिक ओस्लो समझौते पर लौटने के लिए मजबूर कर सकता था।
#NOTE :- OIC क्या है?
1969 में इस्लामिक देशो के हितो के लिए आर्गेनाईजेशन ऑफ़ दा इस्लामिक कांफ्रेंस की स्थापना की गयी थी। बाद में इसका नाम बदल कर आर्गेनाईजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन कर दिया गया। यह अंतर-सरकारी संगठन अपने सदस्यों में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक सहयोग को प्रोत्साहन देता है। वर्तमान में 57 इस्लामिक देश इसके सदस्य है। प्रत्येक 3 साल के अंतराल पर इसकी बैठक आयोजित की जाती है। रूस और थाईलैंड वर्तमान में इसके पर्यवेक्षक है।
अंतर-सरकारी संगठन :- यह शब्द संधि द्वारा बनायीं गयी एक इकाई को संदर्भित करता है अर्थात जिसमे दो या दो से अधिक देश सम्मिलित हो और जो सामन्य हितो के मुद्दों पर आपसी विशवास के साथ काम करते हो।