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क्या वाकई आत्मनिर्भर पैकेज भारतीय अर्थव्यवस्था को उभारने में सफल रहा है? – UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे : क्या वाकई आत्मनिर्भर पैकेज भारतीय अर्थव्यवस्था को उभारने में सफल रहा है? – UPSC

किसी भी बीमार अथव्यवस्था का अनुमान चार-पांच पैमानों के आधार पर लगाया जा सकता है जैसे कि सकल घरेलु उत्पाद की दर, बेरोजगारी दर, महंगाई दर और लोगो के खर्च करने की क्षमता। इन सभी पैमानों पर पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है और यही भारत की बीमार अर्थव्यवस्था की मुख्य वजह है।

कोरोना महामारी से उत्पन्न हालात को देखते हुए सरकार ने गतवर्ष 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की थी जो वाकई एक सरहनीय कदम था। अब सवाल यह उठता है कि उस राहत पैकेज का आख़िर हुआ क्या और उसका असर कब दिखाई देगा? और क्या सरकार उतना ख़र्च कर पाई जितना उसने वादा किया था?

इस राहत पैकेज का यदि हम ब्यौरेवार वर्णन करे तो :-

  • 26 मार्च 2020 को भारत में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज की घोषणा की गई थी जिसमे ग़रीबों के लिए 1.92 लाख करोड़ ख़र्च करने की योजना थी ताकि मज़दूरों को जीने-खाने और घर चलाने संबंधी बुनियादी दिक़्क़तों का सामना ना करना पड़े।
  • 13 मई 2020 को सरकार द्वारा 5.94 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गयी जिसमें मुख्य रूप से छोटे व्यवसायों को क़र्ज़ देने और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा बिजली वितरण कंपनियों को मदद के लिए दी जाने वाली राशि की जानकारी दी गई।
  • 14 मई 2020 को 3.10 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की गयी थी।
  • 15 मई 2020 को 1.5 लाख करोड़ रुपये ख़र्च करने का ब्यौरा दिया था जो खेती-किसानी के लिए था।
  • 16 और 17 मई 2020 को संरचनात्मक सुधारों के लिए होने वाले 48,100 करोड़ रुपये ख़र्च का ब्यौरा दिया. इनमें कोयला क्षेत्र, खनन, विमानन, अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर शिक्षा, रोज़गार, व्यवसायों की मदद और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के लिए सुधार के उपाय शामिल थे। साथ ही राज्यों को अतिरिक्त मदद देने की भी घोषणा की गई।
  • रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी 8,01,603 करोड़ रुपये के उपायों का एलान किया था. उसे भी इसी पैकेज का हिस्सा माना गया।

ऊपर दिए गए तमाम पैकेजों को जोड़ कर सरकार ने 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर पैकेज का नाम दिया था।

यदि इस खर्च का मूल्यांकन किया जाये तो RBI के द्वारा जिस 8,01,603 करोड़ रुपये के उपायों का एलान किया था वह एक प्रकार का लिक्विडिटी पैकेज था, जिसे इसमें जोड़ा ही नहीं जाना चाहिए था। यह बैंको के लिए एक ऑफर था जिसे बैंको ने लिया ही नहीं, इसका सबूत है कि क्रेडिट ग्रोथ जो इस बार भी 5 -6 % के बीच ही है, ऐतिहासिक रूप से सबसे कम है।

20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में राहत की बात केवल 4-5 लाख करोड़ की ही थी, जो सरकार को ख़र्च करना था। इसमें से प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज के तहत प्रवासी मजदूरों के लिए ही 1 लाख करोड़ से 1.5 लाख करोड़ ख़र्च किया गया। इसके अलावा कुछ और मदों में हुए ख़र्च को जोड़ कर देखें तो सर्कार ने 2 लाख करोड़ से ज़्यादा इस पैकेज में ख़र्चा नहीं किया है । दरअसल 20 लाख करोड़ के पैकेज में 15 लाख करोड़ कर्ज़ लेना और ऋण चुकाने के तौर पर ही था। इस हिस्से से सरकार ने बहुत हद तक ख़र्च किया भी। इससे ये हुआ कि जो MSME बंद होने की कगार पर थे, उनके बंद होने की नौबत नहीं आई। लॉकडाउन खुलने के बाद वहाँ कामकाज दोबारा से शुरू हो सका। अर्थव्यवस्था को इस लिहाज से आत्मनिर्भर भारत पैकेज से काफी मदद मिली है। सरकार को 5 लाख करोड़ तक ही असल ख़र्च करना था, जिसमें से 2-3 लाख करोड़ सरकार ने ख़र्च ग़रीबों के अकाउंट में डाल कर, मनरेगा में, उनको मुफ़्त अनाज बांटने में ख़र्च किया।

सरकार ने सिंतबर 2020 में आँकड़ा जारी कर स्पष्ट किया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 42 करोड़ ग़रीबों पर 68 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए गए है। इसमें सरकार ने जन धन खाते में पैसा डालने से लेकर पीएम-किसान योजना, मनेरगा और प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना सब जोड़ कर अपना हिसाब प्रस्तुत किया था।

कोरोना की दूसरी लहर के बीच अप्रैल में केंद्र सरकार ने 80 करोड़ ग़रीबों को मुफ़्त अनाज देने की घोषणा की जिस पर 26 हज़ार करोड़ ख़र्च किया जाएगा। मुफ़्त में अनाज देने से एक अच्छी बात यह होगी कि ग़रीबों का इससे जो पैसा बचेगा उसे वह दूसरी जगह ख़र्च करेगा और इस तरह से मार्केट में पैसा आएगा। कोरोना की दूसरी लहर में सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐसे पैकेज की ज़रूरत है जिससे लोगों के हाथ में पैसा मिले। बिजली कंपनी को पैसा देने से कुछ नहीं होगा। बिजनेस को, मजदूरों को जितना नुक़सान होता है, उनको इस पैकेज कि ज़रूरत है ताकि वो अपने ख़र्चे बढ़ा सकें।

इस बार कोरोना की दूसरी लहर में पूर्ण लॉकडाउन नहीं हुआ, इस वजह से दिक़्क़त उतनी नहीं है। लेकिन मजदूरों और छोटे और मध्यम व्यापारों को आज भी राहत पैकेज की ज़रूरत है, ताकि वो ख़र्च कर सकें।