वेनेज़ुएला का आर्थिक और राजनीतिक संकट – UPSC

वेनेज़ुएला का आर्थिक और राजनीतिक संकट – UPSC

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करीब सवा तीन करोड़ आबादी वाला लैटिन अमेरिकी देश वेनेज़ुएला गंभीर आर्थिक एवं राजनीतिक संकट के दौर से गुज़र रहा है। अपार खनिज संसाधन से संपन्न इस देश में आज लाखों लोग भूख से मर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य कार्यक्रम के अनुसार यहाँ हर तीन में से एक नागरिक के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। देश की मुद्रा इस स्तर तक गिर गई है कि दस लाख बोलिवर के नोट की भारत में कीमत महज़ छत्तीस रूपये के बराबर है। भुखमरी के इस दौर में वहां भ्रष्टाचार चरम पर है तथा कानून व्यवस्था की स्थिति चौपट हो चुकी है।

लोकतंत्र में करिश्माई नेतृत्व लोकप्रिय तो हो सकता है लेकिन यह स्थिति आदर्श कतई नहीं मानी जा सकती। 1998 में देश के राष्ट्रपति बने ह्यूगो शावेज़ ने मसीहा बनने की धुन में वह सब कुछ किया जिसकी कीमत आज वेनेज़ुएला की जनता चुकाने को मजबूर है। जनता का भरोसा जीतने के लिए शावेज़ ने उन्हें मुफ्त में अनेक सुविधाएं प्रदान की, लोगों को आधुनिक जीवन शैली जीने के लिए पैसा वितरित किया गया। इस भरोसे का लाभ उठाते हुए सवैधानिक संस्थाओं को पंगु बना दिया गया। शावेज़ ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के सारे अधिकारों को अपने अधीन कर लिया था। उनकी लोप्रियता का खुमार कुछ ऐसा था कि विपक्ष का विरोध भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाया।

2013 में शावेज़ के निधन के बाद उनके करीबी निकोलस मादुरो को जो चुनौतियाँ विरासत में मिली थी, उनका वे कोई समाधान नहीं खोज पाए क्योंकि उन्होंने शावेज़ कि नीतियों को अपनाते हुए अमेरिकी विरोध को जारी रखा। ज्ञात है कि शावेज़ ने वेनेज़ुएला को साम्यवाद का मज़बूत स्तम्भ बनाने पर सबसे अधिक बल दिया था, चीन और रूस जैसे साम्यवादी देशों की शह पर उन्होंने अमेरिकी कंपनियों एक्सॉन और कोनोको फिलिप्स को वेनेजुएला से अलविदा कहने को मजबूर कर दिया था। यही कारण है कि मादुरो को भी अमेरिकी प्रतिबंदों का सामना करना पड़ रहा है। इससे वेनेज़ुएला में रूस और चीन का दखल बढ़ा है। ये दोनों देश लैटिन अमेरिका में अपना कूटनीतिक एवं सामरिक महत्व बढ़ाने के लिए वेनेज़ुएला कि मदद के लिए आगे भी आए हैं।

2019 में देश के सामने राजनीतिक संकट उस समय और बढ़ गया जब राष्ट्रपति चुनाव के नतीज़ो में निकोलस मादुरो पर धांधली का आरोप लगा, चुनाव में मादुरो के सामने खुआन गुइदो थे। जहाँ मादुरो को रूस और चीन का समर्थन हासिल है तो वहीँ गुइदो के पक्ष में अमेरिका, ब्रिटेन सहित यूरोपियन संघ खड़ा है। मादुरो और गुइदो दोनों देश का राष्ट्रपति होने का दावा करते रहे हैं।


दरअसल मादुरो ने शावेज़ कि नीतियों पर चल कर देश को पूंजीवाद और साम्यवाद के टकराव का केंद्र बना दिया है। पूरे देश में चीनी कंपनियों का जाल फैला है और चीन ने वेनेज़ुएला को क़र्ज़ के जाल में फसा लिया है। जिस प्रकार से राष्ट्रपति मादुरो वेनेज़ुएला में साम्यवादी विचारधारा को बनाये रखने के लिए कृत-संकल्प नज़र आ रहे हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वेनेज़ुएला आगे भी अस्थिरता के दलदल में फंसने वाला है, क्योंकि अमेरिका और उसकी मित्र मण्डली उसे आसानी से सांस नहीं लेने देगी। बेहतर यही होता कि वह अमेरिका के साथ टकराव की बजाय कोई बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करता।