इस लेख में आप पढ़ेंगे : मोटे अनाजों की अहमियत – UPSC
हरित क्रांति के दौरान जिस प्रकार से गेहू और धान की फसलों को प्राथमिकता दी गयी थी और सरकारी नीतियां भी इन्ही फसलों के इर्द-गिर्द बनाई जा रही थी, उस से मोटे अनाजों की महत्व की अनदेखी की जा रही थी। लेकिन हाल के वर्षो में मोटे अनाजों के औषधीय गुणों के कारण इनके प्रति लोगो की जागरूकता बढ़ी है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा दूसरे ऐसे प्रमुख कारण है जिनसे मोठे अनाजों की अहमियत बढ़ी है।
सोरगम, बाजरा, ज्वार, रागी, फोनियो, कोदो, कुटकी जैसे मोटे अनाज जिन्हें कदन्न भी कहते हैं, मोटे अनाजों की श्रेणी में आते है। इनकी मांग के पीछे कई कारण उत्तरदायी माने जा सकते है –
- ये फसलें कम पानी में भी उग सकती है, साथ ही मौसम में आ रहे बदलावों को भी आसानी से झेल सकती है।
- ये मिलेट फसलें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। इनमें प्रोटीन, फाइबर, स्टार्च प्रतिरोधी बड़ी उच्च मात्रा में होते हैं| साथ ही इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है जिस वजह से यह मधुमेह जैसे रोगों को रोकने में मदद कर सकते हैं। बाजरा में विटामिन बी और आयरन, जिंक, पोटैशियम, फॉसफोरस, मैग्नीशियम, कॉपर और मैंगनीज जैसे आहारीय खनिजों की उच्च मात्रा होती है। इसी तरह ज्वार भी पौष्टिक गुणों से भरा होता है।
- मिलेट एक प्रकार का स्मार्ट्फूड है जो किसानों इसके उपभोक्ताओं और पृथ्वी के लिए फायदेमंद है। जो सतत विकास के लक्ष्यों तक पहुँचने में भी मददगार सिद्ध होगा।
संयुक्त राष्ट्र ने भी इनके महत्त्व को देखते हुए 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स-2023) घोषित किया है। जिसका उद्देश्य इन उपेक्षित फसलों को बढ़ावा देना है, जिससे लोगों में इसकी दिलचस्पी बढे और वो इनके पोषण से भरपूर गुणों को जान पाएं। साथ ही इनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए नीतिगत तौर पर इनको समर्थन मिल सके।
एक प्रकार से देखे इसके लिए न केवल उत्पादन बल्कि इसकी मांग को बढ़ाना भी जरुरी है और साथ ही साथ इन फसलो के प्रति लोगो के नज़रिये को भी बदलना होगा। ऐसे अवसर पैदा करने होंगें जिससे किसानों को भी इनका बेहतर मूल्य मिल सके और उनके और बाजार के बीच की दूरी को मिटाना होगा साथ ही विकास के नए अवसर पैदा करने होंगें।