सकल पर्यावरण उत्पाद (Gross Environment Product) और सकल पारिस्थितिकी उत्पाद (Gross Ecosystem Product) क्या हैं? – UPSC

सकल पर्यावरण उत्पाद (Gross Environment Product) और सकल पारिस्थितिकी उत्पाद (Gross Ecosystem Product) क्या हैं? – UPSC

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इस लेख में आप पढ़ेंगे : सकल पर्यावरण उत्पाद (Gross Environment Product) क्या है? – UPSC

सकल पर्यावरण उत्पाद एक ऐसा उपाय है जिससे आर्थिक विकास के सामानांतर पर्यावरणीय विकास पर नज़र रखी जा सकेगी। यह किसी भी वर्ष में जीडीपी की बराबरी में जंगलों, मिट्टी और पानी के विकास व हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी देगा। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि विकास पर्यावरण की कीमत पर तो नहीं हो रहा है। इसे एक साल में आर्थिक विकास के समकक्ष एकत्र होने वाली संसाधनों की मात्रा के तौर पर देखा जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।

सकल पर्यावरण उत्पाद के चार प्रमुख स्तम्भ होंगे –

  • वन : संख्या और घनत्व जैसे गुणों के आधार पर हर साल रोपित किए गए पेड़ों की गणना करना और यह देखना साल में वनों में कितनी वृद्धि हुई है। यह काम वन विभाग के द्वारा किया जा सकता है।
  • जल : जलीय स्रोतों में जल की गुणवत्ता और मात्रा में इजाफा करना। पुनर्भरण को मापने के लिए सालाना बारिश और संचय किए हुए जल को मानक माना जाएगा। pH और पानी में मिट्टी की मात्रा जैसे मानकों से जल की गुणवत्ता का आकलन हो सकेगा।
  • मिट्टी : एक साल में मिट्टी में विभिन्न तरीकों से जैविक पदार्थों का कितना संवर्धन हुआ है और तेज बारिश के कारण मिट्टी का कितना कटाव हुआ है, इसे मानक बनाया जाएगा।
  • वायु : उचित अंतराल पर वायु की गुणवत्ता का आकलन करना और उसे सुधारने के प्रयास करना। ऐसे मानकों के जरिए प्रदूषण कम करने के लिए की जा रही कोशिशों का सही आकलन हो पाएगा। जैसे- सीएनजी का उपयोग करना, यातायात के सार्वजनिक साधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना व अन्य रोधी उपाय करना।

सर्वविदित है कि उत्तराखंड सकल पर्यावरण उत्पाद की गणना करने वाला पहला राज्य बन रहा है, जिसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी। सबसे पहले वर्ष 2009 में हिमालयन इनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (हेस्को) ने ग्रोस इनवायरमेंटल प्रोडक्ट का विचार प्रस्तुत किया था। इसके बाद 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने जीईपी (GEP) पर एक कमेटी का गठन किया था। और आखिरकार 5 जून 2021 को उत्तराखंड में जीईपी लागू करने कि घोषणा कर दी गई। उत्तराखंड के भूगोलीय क्षेत्र में वनों की हिस्सेदारी तकरीबन 71 फीसदी है। इसके बावजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की जीडीपी में (2015-16 में) वानिकी की हिस्सेदारी महज 2.08 फीसदी है।

ग्रॉस इकोसिस्टम प्रोडक्ट

जिस प्रकार से एक साल में एक राज्य या देश जो भी उत्पादन कर रहा है उसके जोड़ को जीडीपी कहते हैं। इसमें रेलवे और निर्माण जैसी सेवाएं भी शामिल हैं। ठीक ऐसे ही ग्रोस ईकोसिस्टम प्रोडक्ट उन सभी उत्पादों और सेवाओं का कुल जोड़ है जो किसी क्रियाशील जीवित पारिस्थितिकी तंत्र के अंदर उत्पादित होती हैं और जो इंसानी समृद्धि और सतत विकास के लिए जरूरी हैं। यह राज्य के सभी प्राकृतिक संसाधनों का आर्थिक मूल्य दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर एक पेड़ ऑक्सीजन, जलावन की लकड़ी, छांव, चारा और शरण देता है। वह पानी का नियंत्रण करने, नाइट्रोजन का अनुपात सही रखने, बाढ़ रोकने, मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने के साथ और भी कई काम भी करता है। यह सभी फायदे जीवित पारिस्थितिकी तंत्र के द्वारा प्रदान की जाने वाली अदृश्य सेवाएं हैं, जो साल भर हमें मिलती रहती हैं और कुछ खास संकेतकों के इस्तेमाल से इन्हें मापा जा सकता है।

सकल पर्यावरण उत्पाद और सकल पारिस्थितिकी तंत्र उत्पाद में बहुत सूक्ष्म सा अंतर है।