ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emission) में कटौती के नए मापदंड – UPSC

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emission) में कटौती के नए मापदंड – UPSC

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22 अप्रैल 2021 को जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन अमेरिका में किया गया था। इस सम्मेलन ने जलवायु को एक बार फिर से वैश्विक फलक पर एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उठाया गया था। साथ ही सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए भी बाध्य किया गया । अमेरिका ने सम्मेलन के समापन के अवसर पर पेरिस समझौता (2015) के आधार पर अपने नये राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों को भी घोषित किया है जो काफी मह्त्वपूर्ण है ।

नए एनडीसी लक्ष्य के मुताबिक अमेरिका ने कहा है कि वह वर्ष 2005 के जीएचजी उत्सर्जन स्तर की तुलना में 2030 तक 50 से 52 प्रतिशत की कमी करेगा। इसके अलावा अमेरिका ने साल 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को ”नेट जीरो उत्सर्जन” तक पहुंचाने की प्रतिबद्दता भी जाहिर की है।बहरहाल 2030 तक जीएचजी में 38 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य उनकी पिछली प्रतिबद्धता उत्सर्जन के लक्ष्य से 12 प्रतिशत अधिक है। अगर अमेरिका के दावे की तुलना 2005 के बजाए 1990 को आधार वर्ष मान कर करें तो जीएचजी के उत्सर्जन में कमी साल 2005 के 50-52 प्रतिशत के बजाए 1990 के स्तर के 40-43 प्रतिशत के बराबर ही होगी।

यदि अन्य देशों की बात की जाए तो जापान ने साल 2030 तक अपने 2013 के ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर में 46 प्रतिशत तक की कमी लाने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। कनाडा ने उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कमी लाने के अपने पिछले लक्ष्य की तुलना में साल 2030 तक उत्सर्जन में 40 से 45 प्रतिशत की कमी लाने का वादा किया है। वहीं यूरोपीय संघ (ईयू) और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने उत्सर्जन को कम करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य की घोषणा की है। जो कि क्रमशः साल 2030 और 2035 तक 1990 के उत्सर्जन स्तर से 55 और 78 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। व्यक्तिगत रूप से, दोनों ही पहले से निर्धारित ईयू के दिसंबर 2020 में 40 प्रतिशत और यूके के 2030 तक 68 प्रतिशत उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्य से अधिक हैं।

भारत ने अपने नये एनडीसी लक्ष्यों की घोषणा नहीं की है, क्योंकि भारत का वर्तमान एनडीसी पहले से ही क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ( कैट) के मानक के अनुरूप, 2 डिग्री सेल्सियस निर्धारित है। लेकिन भारत ने स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश जुटाने के लिए एक नई भारत-यूएस जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा साझेदारी- 2030 घोषित की है।

साल 1990 को आधार वर्ष मानने पर यूके का लक्ष्य सबसे महत्वाकांक्षी है। इसके बाद क्रमशः यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान और कनाडा हैं।वहीं 2005 को आधार वर्ष मानने पर भी यूके ही अग्रणी है, जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और जापान का स्थान इसके बाद है। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ( कैट ) के अनुसार अमेरिका के वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 50 से 52 प्रतिशत की कमी से वैश्विक उत्सर्जन अंतर में भी 5 से 10 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। इस सम्मेलन ने जलवायु को एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय एजेण्डे के रूप में स्थापित किया है। साथ ही विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु संकट की समस्याओं का नये सिरे से सामना करने के लिए प्रतिबद्ध किया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पेरिस समझौते को एक बार फिर से स्वीकार करना, अपने व्यक्तव्यों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को केन्द्र में रखना और अमेरिकी नौकरियों की योजना के माध्यम से घरेलू संरचनात्मक नीतियों को जलवायु अनुकूल बनाने पर जोर देना साथ ही अन्य बड़े देशों से संवाद और कूटनीति कायम करना, जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाए जा रहे सराहनीय कदम हैं।

क्या होती है ग्रीनहाउस गैसें?

ग्रीनहाउस गैसें जिन्हें जीएचजी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। यह गैसें तापमान में हो रही वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार होती हैं। यदि वातावरण में मौजूद 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों को देखें तो उनमें कार्बनडाइऑक्साइड (सीओ 2), मीथेन (सीएच 4), नाइट्रस ऑक्साइड (एन 2ओ), हाइड्रोफ्लूरोकार्बन (एचएफसी), परफ्लूरोकार्बन (पीएफसी), सल्फर हेक्साफ्लोराइड (एसएफ 6) शामिल हैं। यह गैसें तापीय अवरक्त सीमा के भीतर के विकिरण को अवशोषित करती हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए जिम्मेवार होता है।ग्रीनहाउस गैसें तापमान में हो रही वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार होती हैं। जैसे-जैसे वातावरण में इन ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है या यह कहें कि इन गैसों का आवरण और मोटा होता जा रहा है वो जरुरत से ज्यादा ऊष्मा को रोक रहीं हैं। जिस वजह से धरती पर गर्मी और तापमान बढ़ रहा है।

कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), एक महत्वपूर्ण हीट-ट्रैपिंग ग्रीनहाउस गैस है, जो मानव गतिविधियों जैसे वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ-साथ सांस छोड़ने और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए वातावरण में फैलती है।यदि 15 फरवरी 2021 तक जारी आंकड़ों को देखें तो इसका स्तर 415.88 पार्टस प्रति मिलियन पर पहुंच चुका है, जोकि पिछले 6.5 लाख वर्षों में सबसे ज्यादा है।

मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से वातावरण को गर्म कर रही है। ग्लोबल वार्मिंग के मामले में यह कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 28 गुना अधिक शक्तिशाली है।गौरतलब है कि वैश्विक तापमान में अब तक जितनी भी वृद्धि हुई है उसके करीब 25 फीसदी हिस्से के लिए मीथेन ही जिम्मेवार है।