बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (Build Back Better World) बनाम बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and road Initiative) – UPSC

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (Build Back Better World) बनाम बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and road Initiative) – UPSC

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जून 2021 में ब्रिटेन के कॉर्नवॉल में आयोजित G-7 शिखर बैठक इस लिहाज़ से अधिक महत्वपूर्ण मानी जा सकती है कि चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के प्रत्युत्तर में अमेरिका की पहल पर बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड प्रोजेक्ट सामने आया है।

बेल्ट एंड रोड परियोजना (Belt and road Initiative)

ज्ञात है कि चीन के द्वारा 2013 में अपनी महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना प्रारम्भ कि गई थी। ट्रिलियन डॉलर कि इस परियोजना के तहत कई बुनियादी ढांचे से सम्बंधित योजनाओं को एक साथ प्रारम्भ किया गया था, ताकि चीन वैश्विक स्तर पर नए-नए बाजार विकसित कर सके और अपने उत्पादों का सही रूप से वितरण कर सके। इस परियोजना के पीछे चीन का एक दूसरा उद्देश्य ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से एशिया अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाना रहा है। अपने इस उद्देश्य में उसे काफी सफलता भी मिली है, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार और अफ्रीका महाद्वीप के देश इसके प्रमुख उदहारण हैं। यही कारण है आज जिधर देखो चीन की ही चर्चा हो रही है। G-7 से लेकर QUAD जैसे मंचों पर चीन की घेराबंदी के लिए पश्चिमी देश तरह-तरह की रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड प्रोजेक्ट को भी इसी सन्दर्भ में समझा जा सकता है।

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड प्रोजेक्ट (B3W)

इस परियोजना के माध्यम से आने वाले वर्षों में निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए सामूहिक रूप से सैंकड़ो अरबो डॉलर के बुनियादी ढांचे के निवेश को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इस समय विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के निर्माण हेतु करीब 40 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक धन की आवश्यकता है। अमेरिका के अनुसार इस वित्त पोषण में काफी पारदर्शिता होगी, जलवायु और श्रम सुरक्षा उपायों पर ध्यान दिया जाएगा।

पश्चिमी देशों पर दबाव

ज्ञात रहे कि चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना पर हस्ताक्षर करने वाला इटली पहला सदस्य राष्ट्र था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन अपनी महत्वकांक्षी परियोजना के लिए पश्चिमी देशों में भी सेंधमारी की फिराक में है। चीन की बढ़ती बाज़ारवादी महत्वकांक्षा से पश्चिमी देश काफी समय से एक मनोवैज्ञानिक दबाव में हैं। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका कि ट्रम्प सरकार ने टैरिफ शुल्कों के माध्यम से चीन के विरुद्ध एक व्यापार युद्ध छेड़ दिया था, हालांकि इस व्यापार युद्ध में चीन को कोई बड़ा नुक्सान नहीं उठाना पड़ा है। G-7 के मंच से जिस नए प्रोजेक्ट कि घोषणा की जा रही है, अब उसका रोडमैप क्या होगा और G-7 देशों की उसमे क्या-क्या भागेदारी होगी, इसको लेकर अभी कोई रणनीति सामने नहीं आई है। पश्चिमी देश यह भली-भांति समझ चुके हैं कि चीन को रोकना किसी एक देश के बूते की बात नहीं है, इसलिए ये सामूहिक रूप से कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं। इस नए प्रोजेक्ट पर चीन ने G-7 देशों को सीधे चेतावनी दी है कि वे दिन कब के लद गए जब मुठ्ठी भर मुल्क दुनिया की किस्मत का फ़ैसला किया करते थे

NOTE:

  • जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं। इसे ग्रुप ऑफ़ सेवन भी कहते हैं।
  • यह समूह खुद को “कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज” यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय मानता है। स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और क़ानून का शासन और समृद्धि और सतत विकास, इसके प्रमुख सिद्धांत हैं।
  • शुरुआत में यह छह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी। इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित समाधानों पर विचार किया गया था। अगले साल कनाडा इस समूह में शामिल हो गया और इस तरह यह जी-7 बन गया।
  • साल 1998 में इस समूह में रूस भी शामिल हो गया था और यह G-7 से G-8 बन गया था। लेकिन साल 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से निलंबित कर दिया गया था।