डॉप्लर रेडार (Doppler Radar) – UPSC

डॉप्लर रेडार (Doppler Radar) – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे : डॉप्लर रेडार – UPSC

बादल फटने जैसी अतिवृष्टि घटनाओं का सही -सही पता लगाने के लिए डॉप्लर रेडार का प्रयोग किया जाता है। हिमालयी राज्यों में बादल फटने की घटनायें पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, बादल फटने की घटनायें सबसे ज्यादा प्री मानसून और मानसून में होती है। ऐसा इसलिये है, क्योंकि ये ही ऐसा वक्त होता है, जब दो विक्षोभों के आपस में टकराने की घटनायें सामान्य तौर पर ज्यादा होती है और जानमाल का बड़ा नुकसान होता है। 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुए ऐसे ही एक घटना में दस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। ऐसे हादसे भविष्य में दोबारा न हो, इसके लिये उत्तराखंड और हिमाचल में तीन-तीन और जम्मू-कश्मीर में दो डॉप्लर रेडार लगाने की घोषणा की गई थी। ये रेडार वांछित लक्ष्य को माइक्रोवेव सिग्नल के माध्यम से लक्षित करता है और विश्लेषण कर बादलों के विकास प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं। ये रेडार बादलों में मौजूद पानी के कणों का आकंलन कर सटीक डाटा देता है। जिससे पूर्वानुमान लगाया जाता है कि कितने मिलीमीटर तक बारिश हो सकती है।डॉप्लर रेडार 100 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसम के बदलाव की जानकारी दे सकता है। यह वातावरण में फैले अति सूक्ष्म तरंगों को भी कैच करने में क्षमता रखता है। इसके साथ ही वातावरण में तैर रही पानी की बूंदों को पहचानने और उसकी दिशा का भी पता लगाने में सक्षम होता है। इस उपकरण के माध्यम से किस क्षेत्र में कितनी बारिश होगी, इसका पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही तेज तूफान की जानकारी भी देता है।तेज पानी बरसने के आधे घंटे पहले भी ये सटीक डाटा दे सकता है। जिसको आपदा प्रबंधन विभाग को देकर जानमाल का बड़ा नुकसान बचाया जा सकता है।

बादल फटने की घटना में कम-से-कम 10 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है जिससे प्रभावित इलाके में अचानक बाढ़ (Flash Flood) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और जान-माल का काफी नुकसान होता है। डॉप्लर वेदर रडार की सहायता से इस तरह की घटनाओं के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटा पूर्व जानकारी मिल सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सूचना देकर इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।बादल का फटना यूँ तो किसी भी समय और कहीं भी हो सकता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पर्वतीय इलाकों में देखने को मिलता है। इसकी मुख्य वजह है पर्वतीय ढलानों से बादल का टकराकर ऊपर उठना होता है। ऊपर उठाने के क्रम में बादल अपेक्षाकृत ठंडी हवाओं के सम्पर्क में आने से संघनित हो जाते हैं और पानी की बूँदों में तब्दील हो जाते है।

भारत में पहला डॉप्लर वेदर रडार चेन्नई में 2005 में लगाया गया था। देश में बड़ी संख्या में डॉप्लर वेदर रडार लगाने की पहल मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी हाल ही में मुक्तेश्वर में स्थापित रडार 100 किमी के दायरे में 360 डिग्री एंगल पर कार्य करेगा। यह हिमालय समेत चारों दिशाओं के मौसम पर नजर रख सकेगा। इससे हवा की गति व दिशा, तापमान व आर्द्रता की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती रहेगी।