क्या होता है एफ़पीओ (FPO) और क्यों लाती हैं कंपनियां? – UPSC

क्या होता है एफ़पीओ (FPO) और क्यों लाती हैं कंपनियां? – UPSC

  • Post category:Economy / Prelims
  • Reading time:1 mins read

इस लेख में आप पढ़ेंगे: क्या होता है एफ़पीओ (FPO) और क्यों लाती हैं कंपनियां? – UPSC

एफ़पीओ यानी फॉलो ऑन पब्लिक ऑफ़र- जो कंपनी पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड है, वो मौजूदा शेयरधारकों और दूसरे निवेशकों के लिए नए शेयरों की पेशकश करती है। ये शेयर बाज़ार में मौजूद शेयरों से अलग होते हैं। ज़्यादातर मामलों में इन्हें कंपनी के प्रमोटर्स ही जारी करते हैं यानी आईपीओ की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही कोई कंपनी एफ़पीओ लाती है। एफ़पीओ के ज़रिए शेयर बेचने का मक़सद कंपनी की विस्तार योजनाओं के लिए रकम जुटाना या कर्ज़ चुकाना होता है।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अदानी समूह का संकट –

अदानी इंटरप्राइज़ेज़ ने नवंबर 2022 में एफ़पीओ लाने की घोषणा की थी। तब शेयर बाज़ार में अदानी के शेयरों की धूम थी और इसी तेज़ी के बूते गौतम अदानी पहले भारत के और फिर एशिया के सबसे अमीर शख्स बने थे। साल 2022 के जाते-जाते वो दुनिया के शीर्ष तीन अमीर लोगों में अपनी जगह बना चुके थे। फिर 24 जनवरी 2023 को न्यूयॉर्क की एक छोटी सी निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में अदानी समूह पर कंपनियों के शेयरों में कृत्रिम उछाल और अन्य वित्तीय गड़बड़ियों के संगीन आरोप लगाए गए थे। इस ‘शॉर्ट सेलर’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि अदानी समूह की लिस्टेड कंपनियों की बाज़ार पूंजी को ‘बहुत अधिक बढ़ाया’ जा सके।

रिपोर्ट के जवाब में अडानी समूह ने 20,000 करोड़ रूपये के FPO शेयर लाने की घोषणा की। शुरू में ऐसा लगा कि समूह के इस जवाब से 20,000 करोड़ रुपए का एफ़पीओ लेकर शेयर बाज़ार में उतरी अदानी इंटरप्राइज़ेज़ पर मँडरा रहे संकट के बादल छँट जाएँगे, लेकिन शेयर पर तो हिंडनबर्ग का असर हो चुका था। पिटाई के बाद अदानी इंटरप्राइज़ेज़ का शेयर एफ़पीओ के इश्यू प्राइस से नीचे चला गया। ज़ाहिर है अब इसमें रिटेल निवेशकों को मुनाफ़ा नहीं दिख रहा था और उन्होंने एफ़पीओ में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसे गौतम अदानी का असर या उनकी साख ही माना जाएगा कि कंपनी अबू धाबी के एक बड़े फ़ंड के अलावा कुछ बड़े निवेशकों, देसी-विदेशी बैंक और बीमा कंपनियों को ‘इन विपरीत हालात’ में भी एफ़पीओ के शेयर बेचने में कामयाब रही। 30 जनवरी को जहाँ एफ़पीओ सिर्फ़ 3 फ़ीसदी ही सब्सक्राइब हुआ था, वहीं अपने आख़िरी दिन यानी 31 जनवरी को ये 100 फ़ीसदी से भी अधिक सब्सक्राइब हो गया। लेकिन कहानी में अभी ट्विस्ट आना बाकी था। यूरोप के एक नामी बैंक और वित्तीय संस्था क्रेडिट सुइस ने अदानी ग्रुप की कुछ कंपनियों के बॉन्ड्स की लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो कर दी है।

लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो क्या होता है ?

दरअसल, कई बड़ी कंपनियाँ बाज़ार से पैसा उगाहने के लिए बॉन्ड्स जारी करती हैं, जिसमें वे निवेशकों को एक निश्चित रिटर्न की गारंटी देती हैं। कई निजी बैंक किसी कंपनी के इन बॉन्ड्स के बदले अपने ग्राहकों को उधार देते हैं। कई बैंक अपने ग्राहकों को ये पेशकश करते हैं कि अगर उनके पास किसी कंपनी के बॉन्ड्स हैं तो गिरवी रखने के एवज में वह उन्हें उधार दे सकती है। ये उधारी बॉन्ड्स की रकम का 70 से 80 फ़ीसदी तक हो सकती है। ज़ाहिर है इसके लिए बैंक उस कंपनी के वैल्युएशन और बैलेंसशीट को बारीकी से जाँचता है। अब क्रेडिट सुइस ने कहा है कि वह अपने ग्राहकों को अदानी समूह की कुछ कंपनियों के बॉन्ड्स गिरवी रखने पर कर्ज़ नहीं देगा, यानी क्रेडिट सुइस ने बॉन्ड्स की लेंडिंग वैल्यू ज़ीरो कर दी है। इसका मतलब ये है कि जिन ग्राहकों ने पहले गिरवी बॉन्ड्स पर कर्ज़ लिया था, उन्हें कर्ज़ जारी रखने के लिए दूसरे कोलैटरल देने होंगे। अगर वो ऐसा करने में विफल रहते हैं तो बैंक उनके बॉन्ड्स बेचकर इसकी भरपाई कर सकता है। क्रेडिट सुइस ने अदानी समूह की अदानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन, अदानी ग्रीन एनर्जी और अदानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के बॉन्ड्स की लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो की है हालाँकि कई दूसरे विदेशी बैंक भी अदानी समूह की कंपनियों के बॉन्ड्स की एवज़ में अपने ग्राहकों को कर्ज़ देते आए हैं। अभी तक उनके रुख़ में किसी बदलाव की कोई रिपोर्ट नहीं आई है।