निसंदेह बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में रूस, अमेरिका, और भारत तीनो की विदेश नीतिया और प्राथमिकताएं बदल चुकी है और ऐसे में प्रत्येक देश की अपनी-अपनी कुछ शिकायते भी उत्पन्न होना लाजमी है जैसे कि –
- चीन से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए जिस प्रकार से भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ‘क्वाड’ संगठन खड़ा किया है उसे लेकर रूस अपनी असहजता जाहिर कर चूका है ।
- पाकिस्तान के साथ रूस के सैन्य अभ्यास और चीन के साथ रूस कि बढ़ती निकटता ने भारत को काफी हद तक असहज किया है
- रूस से S -400 मिसाइल सिस्टम की खरीददारी पर अमेरिका भी नाखुश है।
- अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया में चीन व् पाकिस्तान भारत को बहार रखने के लिए हमेशा से ही प्रयत्नशील है भारत की भागीदारी को लेकर जहँ रूस निष्क्रिय है वहीँ अमेरिका इस शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका को जरुरी मानता है।
देखा जाये तो रूस अब वो रूस नहीं है जो शीत युद्ध के दौरान हुआ करता था, उसके लिए अब ज़रूरी है की कोई पश्चिमी विरोधी नीति में उसका साथ दे सके जिसमे उसे चीन अपना सहयोगी नज़र आता है। चीन के साथ भारत के टकराव के चलते यहाँ पर भारत और रूस के हित बट जाते है चीन और पाकिस्तान की नजदीकी भारत के लिए चुनौती बनी हुई है ऐसे में अमेरिका भारत के लिए एक सहयोगी देश बनकर सामने आया है, चीन को लेकर दोनों देशो क हित एक जगह मिल जाते है। ऐसे में भारत के रूस और अमेरिका के साथ सम्बन्धो में चीन एक बड़ा फैक्टर है।
भारत की मुश्किल यही है की उसे रूस और अमेरिका दोनों को एकसाथ लेकर चलना है, भारत रूस के जरिये अमेरिका की सुपरपावर की स्थिति को भी चुनौती देता है | ‘ब्रिक्स’ इसका एक उदाहरण है जिसमे रूस, चीन और भारत तीनो शामिल है और ये देश बहुधुर्वीय व्यवस्था की बात करते है। रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में रूस भारत का एक बड़ा सहयोगी है, भारत की हथियार खरीद का सबसे अधिक 56 % हिस्सा रूस से आता है, दूसरी ओर भारत भी एक उभरती हुई ताकत है ओर रूस अपने यहाँ भारत का निवेश भी चाहता है। कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक (Sputnik V) के उत्पादन में भी भारत और रूस के बीच सहयोग देखने को मिला है।
यदि अमेरिका की बात की जाये तो उसे भारत में एक बड़ा बाजार और एक रणनीतिक भागीदार नज़र आता है , ये हम पाकिस्तान को लेकर अमेरिका के बदलते रुख से भी समझ सकते है , 2005 में भारत से परमाणु समझौता भी हुआ जिसके लिए अमेरिका ने संविधान संशोधन तक किया था। अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, आतंकवाद और व्यापार के मसले पर भारत के सहयोग की आवश्यकता है, यही कारण है की ट्रम्प प्रशासन हो या बाइडन प्रशासन भारत के प्रति अमेरिका के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
ऐसे में भारत के लिए रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाये रखना जिस तरह एक चुनौती है उसी तरह रूस और अमेरिका भी भारत को एक सहयोगी के तौर पर खोना नहीं चाहेंगे। भारत के लिए आज आवश्यकता है की वह मल्टी एलाइनमेंट की नीति को प्राथमिकता दे।