इस लेख में आप पढ़ेंगे: मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) व अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
2 मार्च 2023 को सर्वोच्च न्यायालय की एक सवैधानिक पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसके अनुसार इनकी नियुक्ति एक पैनल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस पैनल में भारत के प्रधानमंत्री ,विपक्ष के नेता और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश होंगे।
गौर करने वाली बात है विधि आयोग पहले ही सिफारिश दे चूका था कि मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल द्वारा की जाए। सवैधानिक पीठ ने स्पष्ट किया है कि निर्वाचन आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने और सवैधानिक प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य है। पिछले काफी समय से निर्वाचन आयोग की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे है। चुनाव की तारीखों से लेकर सत्ता पक्ष के प्रति लचीला रुख जैसी अनेक शिकायत सामने आती रही है। हाल ही में जिस प्रकार से आनन -फानन में अरुण गोयल को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया है, उस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिपण्णी करते हुए कहा है कि इस पद पर यश मैन की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। बल्कि ऐसा चुनाव आयोग होना चाहिए जो प्रधानमंत्री की भी जांच कर सके।
चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियाँ
- चुनाव आयोग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों के मध्य शक्ति विभाजन के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है। इसके अलावा संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
- भारत में चुनावों के दौरान धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर वोट माँगे जाते हैं, जिसे कई बार रोक पाने में चुनाव आयोग विफल हो जाता है।
- चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश के अनुसार अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम को छोड़कर सभी राज्यों के लोकसभा प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए अधिकतम 70 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। लेकिन कानून सम्मत खर्च और वास्तविक खर्चों के बीच काफी अंतर पाया जाता है।
- लोक सभा प्रत्याशियों द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किये जाते है। इन खर्चों का वास्तविक ब्यौरा चुनाव आयोग के समक्ष नहीं मिल पाता है।
जब तक चुनावी बॉन्ड को लेकर कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं की जाती तब तक चुनाव आयोग निष्पक्ष रहते हुए भी कुछ नहीं कर सकेगा।