जम्मू कश्मीर में परिसीमन और लोकतंत्र की बहाली – UPSC

जम्मू कश्मीर में परिसीमन और लोकतंत्र की बहाली – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे : जम्मू कश्मीर में परिसीमन और लोकतंत्र की बहाली – UPSC

9 अगस्त 2019 को धारा 370 को समाप्त करने के पश्चात जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया था और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। ऐसा तात्कालिक परिस्तिथियों के आधार पर किया गया था और उसी समय केंद्र सरकार ने घोषणा की थी की उचित समय पर जम्मू कश्मीर की विधान सभा को बहाल किया जाएगा। 24 जून 2021 को केंद्र सरकार ने राज्य के 14 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल से वार्ता करने के पश्चात इस बात के संकेत दे दिए हैं की राज्य में शीघ्र ही परिसीमन के पश्चात लोकतंत्र की बहाली की जाएगी।

परिसीमन का क्या अभिप्राय है?

परिसीमन वह प्रक्रिया है जिसकी मदद से लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को तय किया जाता है ताकि सभी नागरिकों को संसद और विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जा सके। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे एक निश्चित अंतराल पर दोहराया जाता है ताकि जनसंख्या में हुए बदलावों को ध्यान में रखते हुए मतदाताओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। जम्मू-कश्मीर में आख़िरी परिसीमन साल 1995 में हुआ था। फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 83 सीटें हैं जिनमें 37 सीटें जम्मू क्षेत्र में और 46 सीटें कश्मीर क्षेत्र में आती हैं। इसके साथ ही 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए भी आरक्षित हैं। देखा जाए तो सरकार बनाने के लिए सिर्फ 44 सीटों की ज़रूरत पड़ती है।

राजनीतिक दलों की शंकाएं

जम्मू के लोगों के बीच यह एक असंतोष का विषय है कि 1947 के बाद से अब तक जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री बनने वाला शख़्स कश्मीर से आता रहा है। लेकिन परिसीमन होने के बाद विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र में परिवर्तन होने की आशंकाएं जताई जा रही है। ऐसे में राजनीतिक दल इसे संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। अगर नये परिसीमन के बाद जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 47 हो जाएं और जम्मू से ही कोई दल 44 सीटों पर चुनकर आ जाए, तो यहां के राजनीतिक गुटों को लगता है कि वे अलग-थलग पड़ जाएंगे और कश्मीर पर जम्मू का दबदबा कायम हो जाएगा। वहीं, जम्मू में एक नैरेटिव बना हुआ है कि आज़ादी से लेकर आज तक राज्य का मुख्यमंत्री कश्मीरी ही क्यों हो। एक सवाल यह भी उठता है की जब पूरे देश में 2026 में परिसीमन होना है तो यहां पर अलग से क्यों किया जा रहा है। इससे भी अजीब बात यह है कि जब जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन का ऐलान हुआ था तब असम के लिए भी हुआ था, लेकिन असम के परिसीमन का सिलसिला रोक दिया गया और वहां पर चुनाव संपन्न कराए गए।

जबतक जम्मू कश्मीर में परिसीमन कि प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक तरह-तरह के कयास लगते रहेंगे। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में लम्बे समय तक लॉकडाउन की स्थिति बनी रही। करीब 550 दिन तक इंटरनेट शटडाउन रहा। अब यदि वहां एक राजनीतिक प्रक्रिया बहाल होती है तो सभी दलों के द्वारा उसका स्वागत किया जाना चाहिए। जहा तक अनुच्छेद 370 का सवाल है, वह न्यायालय में विचाराधीन है। अतः उसको लेकर कोई भी विवाद खड़ा करना सही नहीं होगा।

NOTE – परिसीमन आयोग

  • संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रावधान किया गया है की संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात कानून के तहत परिसीमन आयोग की नियुक्ति करेगी, जो परिसीमन अधिनियम के आधार पर संसदीय चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण करेगी।
  • वर्तमान में संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया गया है और लोक सभा व विधान सभाओ की सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना पर। 2002 में संसद के 84वे संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है की अगला परिसीमन वर्ष 2026 के बाद संपन्न होगा। तब तक वर्तमान परिसीमन के आधार पर ही संसदीय क्षेत्र यथावत बने रहेंगे।
  • भारत में अब तक चार बार परिसीमन आयोग (1952, 1962, 1972, 2002) बनाए गए हैं। परिसीमन आयोग के निर्णय सरकार के लिए बाध्यकारी होते हैं,जिन्हे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • संविधान के अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और 332 में परेसीमानन आयोग से सम्बंधित प्रावधान दिए गए हैं।