डिजिटल संप्रभुता बनाम सरकारें – UPSC

डिजिटल संप्रभुता बनाम सरकारें – UPSC

इस लेख में आप पढ़ेंगे : डिजिटल संप्रभुता बनाम सरकारें – UPSC

हाल ही में भारत में सोशल मीडिया और ऑनलाइन कंटेंट पर कंट्रोल से जुड़े नए नियमों की ख़ासी चर्चा हो रही है। भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए मानो होड़ सी लगी हुई है। यहाँ हम कुछ उदाहरणों का उल्लेख कर सकते हैं :

  • जर्मनी यूरोपीय संघ का सबसे प्रभावशाली देश है. उसने संघ के क़ानून के अलावा भी अपने कुछ क़ानून बनाए हैं। उसने 2017 में कुख्यात नेटवर्क इंफोर्स्मेंट लॉ कानून लागू किया था, जिसमें प्रावधान है कि 20 लाख से अधिक पंजीकृत जर्मन यूज़र्स वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कंटेंट पोस्ट किए जाने के 24 घंटों के भीतर अवैध सामग्री की समीक्षा करनी होगी और उसे हटाना होगा या 5 करोड़ यूरो तक का जुर्माना भरना होगा।
  • ट्विटर, यूट्यूब और फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ लम्बे समय तक टकराव बना रहा था। आखिरकार 28 मई २०२० एक कार्यकारी आदेश के द्वारा इन मीडिया कंपनियों पर यूजर्स की सामग्री की ज़िम्मेदारी दाल दी गई। हालांकि डोनाल्ड ट्रम्प इस आदेश को लागू नहीं करा पाए।
  • यूके में नए नियमों के अनुसार, अगर टेक कंपनियाँ ब्रिटेन के कानूनों के तहत अवैध सामग्री के प्रसार को हटाने और सीमित करने में नाकाम रहती हैं तो फेसबुक, ट्विटर, टिकटॉक वगैरह को उनके टर्नओवर का 10 प्रतिशत तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। ब्रितानी सरकार इस साल एक ‘ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक‘ लेकर आने वाली है, जो ऑनलाइन दुर्व्यवहार के लिए नियामक ढांचा निर्धारित करेगा।
  • ऑस्ट्रेलिया ने अप्रैल 2019 में शेयरिंग ऑफ एबोरेंट वायलेंट मटेरियल एक्ट पारित किया, जिसका उल्लंघन करने में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए आपराधिक दंड, तकनीकी अधिकारियों के लिए तीन साल तक की संभावित जेल की सज़ा और कंपनी के वैश्विक कारोबार के 10 प्रतिशत तक जुर्माना शामिल है।
  • गतवर्ष तुर्की ने एक व्यापक कानून पारित किया जो बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को स्थानीय कार्यालय खोलने के लिए बाध्य करता है, 48 घंटों में सामग्री हटाने के अनुरोधों का जवाब देना अनिवार्य है. ट्विटर ने उस समय स्थानीय दफ़्तर खोला जब सरकार ने उस पर जुर्माना लगाया।

भारत में 26 मई से लागू हुए सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों को एक मुख्य अनुपालन अधिकारी या चीफ़ कंप्लायंस ऑफ़िसर की नियुक्ति करनी होगी जो भारत में हो और भारत निवासी हो और वह व्यक्ति भारतीय क़ानूनों और नियमों के पालन को सुनिश्चित कराने के लिए जिम्मेदार होगा। भारत में सोशल मीडिया कंपनियों को डर है कि उनका हाल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर जैसा हो सकता है जिन पर प्रशासन जब चाहे अंकुश लगाता रहता है। किसी शहर या राज्य में कानून-व्यवस्था के तहत उठाए गए क़दमों में इंटरनेट सुविधाएं बंद करा देना भी शामिल हो गया है। जिन देशों में इंटरनेट की स्वतंत्रता पर प्रहार करने का इतिहास है, ऐसे ही कानूनों का इस्तेमाल सोशल मीडिया कंपनियों के स्टाफ को डराने या धमकाने के लिए किया जा सकता है। दरअसल इन नियमों को “बंधक बनाने वाले कानून” की तरह बताया जा रहा है , क्योंकि अगर वो सरकार के आदेश को नहीं मानेंगे तो उनके लिए जेल जाने का ख़तरा है।

भारत सरकार का दावा है कि नए नियमों का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ओटीटी प्लेटफॉर्म के सामान्य यूजर्स की शिकायतों की सुनवाई करने वाले ऑफिसर की मदद से उनकी शिकायत के निवारण और समय पर समाधान के लिए सशक्त बनाना है. इस अधिकारी को भारत निवासी होना चाहिए. महिलाओं और बच्चों को यौन अपराधों, फ़ेक न्यूज़ और सोशल मीडिया के अन्य दुरुपयोग से बचाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है. लेकिन कई लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार मानते हैं।

यदि सोशल मीडिया से जुड़े ये विदेशी प्लेटफार्म आईटी नियमों का पालन नहीं करते तो ये भारत में कानूनी सुरक्षा का अधिकार खो देंगे। अमेरिका और जापान के बाद, भारत इनके लिए एक बड़ा बाजार है। अब देखना होगा की सर्कार के साथ टकराव को ये किस तरीके से नियंत्रित करते हैं। कोई भी सरकार सोशल मीडिया की मनमानी को स्वीकार नहीं कर सकती और हाल के वर्षों में दुनिया भर में सरकारों और सोशल मीडिया कंपनियों के मध्य टकराव की मूल वजह यही है की राज्य की मांग है की वे उसके अधीन काम करें, उससे ऊपर नहीं। जबकि कई मामलों में सोशल मीडिया कंपनियां राज्य की सम्प्रभुता से बाहर जा कर काम करते देखी गई हैं।

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