सामुदायिक किचन (Community Kitchens) क्या कुपोषण और भुखमरी का एक सही समाधान हो सकता है ? – UPSC

सामुदायिक किचन (Community Kitchens) क्या कुपोषण और भुखमरी का एक सही समाधान हो सकता है ? – UPSC

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वर्ष 2019 में सामाजिक कार्यकर्ता अनुन धवन, ईशान धवन और कुंजना सिंह के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई थी। याचिका के मुताबिक कुपोषण और भुखमरी एक खतरनाक दर से बढ़ रही है, जिससे ‘भोजन के अधिकार‘ को खतरा है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीने के अधिकार’ में शामिल है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामुदायिक रसोई की स्थापना के लिए योजनाएं बनाने के लिए दिशा-निर्देश मांगे थे। सामुदायिक रसोई के अंतर्गत बाजार मूल्य से कम में भोजन दिया जाता है। आंध्र प्रदेश में अन्ना कैंटीन, तमिलनाडु में अम्मा उनावगम, ओडिशा में आहार केंद्र जैसी कई सामुदायिक रसोई चल भी रही है। देश के अलावा विदेश से अमेरिका और यूरोप में सूप किचन के उदाहरण भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों के खिलाफ सख्ती दिखाई है, जो सामुदायिक किचन के मामले में अपना जवाब नहीं दे रहे हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, दिल्ली, मणिपुर, ओड़िशा और गोवा पर 5-5 लाख रुपए का जुर्माना और लगाया है। इससे पहले की सुनवाई में भी इन पर 5-5 लाख का जुर्माना लगाया गया था, इस तरह अब इन राज्यों को 10-10 लाख रुपए देने होंगे। दरअसल नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह देश में फैली कुपोषण और भुखमरी से होने वाली मौतों को कम करने के लिए सामुदायिक किचन की स्थापना की मांग वाली याचिका पर अपना जवाब दाखिल करे। लेकिन पांच माह तक जब जवाब नहीं दिया गया तो पिछले सप्ताह जवाब नहीं देने वाले राज्यों पर पांच लाख रुपए जुर्माना लगाते हुए एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा था। कोर्ट ने केंद्र सरकार को पहले ही निर्देश दिए है कि बेघरों और बिना दस्तावेज के लोगों के लिए एक राष्ट्रीय खाद्य ग्रिड का निर्माण हो जिससे किसी कमी की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली से वंचित रहने के बाद उनका भोजान सुनिश्चित हो सके।

वैश्विक भूख सूचकांक (डब्ल्यूएचआई) में भारत 102वें पायदान पर खड़ा है। भारत भूख के मामले में अफ्रीकी देशों के समकक्ष है। रैंकिंग के मामले में भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देशों-बांग्लादेश (88), श्रीलंका (66), पाकिस्तान (94), नेपाल (73) और म्यांमार (69) से भी बदतर है। वैश्विक भूख सूचकांक (डब्ल्यूएचआई) चार मापदंडों पर आधारित है। ये मापदंड हैं, अल्प पोषण, वेस्टिंग (उम्र के अनुसार वजन में कमी), स्टंटिंग (उम्र के लिहाज से लंबाई में कमी) और शिशु मृत्युदर। सूचकांक के अनुसार, भारत में 14.5 प्रतिशत बच्चे अल्प पोषित, 20.8 प्रतिशत बच्चों का वजन उम्र के लिहाज से कम, 37.9 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उम्र के लिहाज से कम है और यहां शिशु मृत्यु दर 3.9 प्रतिशत है।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कल्याणकारी सरकार का यह पहला दायित्व है कि वह भूख से मर रहे लोगों को भोजना मुहैया कराए।सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के लिए सामुदायिक रसोई की नीति बनाने और उसे लागू करने को लेकर केंद्र सरकार के जवाब पर सख्त नाराजगी प्रकट की।