इस लेख में आप पढ़ेंगे : मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण की समस्या कितनी गंभीर ?- UPSC
जून 2021 में भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन (UNCCD) की अध्यक्षता करते हुए चिंता प्रकट की गई है, कि मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण के कारण दुनिया का लगभग दो तिहाई हिस्सा प्रभावित हो रहा है। यदि इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह समाज, अथव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ और जीवन की गुणवत्ता की नीव को कमज़ोर कर देगा।
मरुस्थलीकरण जमीन के खराब होकर अनुपजाऊ हो जाने की ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अन्य कई कारणों से भूमि रेगिस्तान में बदल जाती है। विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने दुनिया को सचेत किया है कि हम हर साल 24 अरब टन उपजाऊ भूमि खो देते है। मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण के पीछे कई कारण उत्तरदायी है –
- खेती योग्य ज़मीन के बड़े हिस्से के बंजरीकरण का एक बड़ा कारण जीन प्रसंस्कृत बीजो (GM crops) का बड़े पैमाने पर उपयोग है। जब से विदेशी बीज और उर्वरक कंपनियों के लिए भारतीय बाजार खोला गया है, उन्होएँ लगभग पूरे देश कि खेती-किसानी पर ही कब्ज़ा कर लिया है। उनके जीन प्रसंस्कृत बीजो को उगाने के लिए अधिक उर्वरको और रसायनो कि आवश्यकता पड़ती है यही नहीं वे पारम्परिक बीजो कि अपेक्षा अधिक पानी की मांग करते है। जिन खेतो में ये बीज बोये जाते है, उनकी हर साल उर्वरता घटती जाती है।
- दूसरा बड़ा कारण वैश्विक तापन को माना जा सकता है। जिसे रोकने के लिए दुनिया के तमाम देश हर साल अपन कार्बन उत्सर्जन में कटौती का संकल्प तो दोहराते है लेकिन अमेरिका और चीन जैसे विकसित देशो ने उसपर कभी अमल नहीं किया है। जबकि ये देश सबसे अधिक कार्बन का उत्सर्जन करते है।
- विकास परियोजनाओं को दी जाने वाली अंधाधुंध मंज़ूरी ने वनो के ह्रास में सबसे अहम् भूमिका निभाई है। भूखंडो पर कंक्रीट से बनाई जाने वाले बड़े-बड़े प्रोजेक्टों के कारण उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में परिवर्तित होती जा रही है। 2005 और 2015 के बीच भारत ने 31% घास के मैदान खो दिये। वनों की कटाई से ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव में वृद्धि होती है।
- ‘काटो और जलाओ’ (स्लैश एंड बर्न) कृषि पद्धति मिट्टी के कटाव के खतरे को बढ़ाती है।
- प्राकृतिक आपदाएं जैसे- बाढ़, सूखा, भूस्खलन,पानी का क्षरण,पानी का कटाव उपजाऊ मिट्टी का विस्थापन कर सकता है। हवा द्वारा रेत का अतिक्रमण भूमि की उर्वरता को कम करता है जिससे भूमि मरुस्थलीकरण के लिये अतिसंवेदनशील होती जाती है।
यदि भारत के सन्दर्भ में देखे तो मरुस्थलीकरण के कारण 29.32 फीसदी भूमि मरुस्थल में बदल चुकी है। इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना, से आता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार 2003 से 2013 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 लाख हेक्टेयर तक बढ़ चुका है। वही, सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण में बदल चुका है।
उपाय
- वनीकरण को प्रोत्साहन
- कृषि में रासायनिक उर्वरको के स्थान पर जैविक उर्वरको का प्रयोग।
- फसल चक्र को अपनाना
- सिंचाई के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना जैसे बूँद-बूँद सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई आदि।
- जल संसाधनों का संरक्षण तथा समुचित मात्र में विवेकपूर्ण उपयोग।
- मरुभूमि की लवणता व क्षारीयता को कम करने में वैज्ञानिक उपाय।
- पशु चरागाहों पर उचित मानवीय नियंत्रण स्थापित करना
14 अक्टूबर 1994 को भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूएनसीसीडी) पर हस्ताक्षर किये थे। इसके अलावा भारत में मिट्टी के क्षरण को रोकने में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना , मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रति बूंद अधिक फसल जैसी भारत सरकार की विभिन्न योजनाएँ काम कर रही हैं।