इस लेख में आप पढ़ेंगे : हाइपरसोनिक मिसाइल को लेकर चीन और अमेरिकी के मध्य टकराव – UPSC
हाल ही में चीन ने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है जिस पर अमेरिकी ने चिंता प्रकट की है। अमेरिका, रूस और चीन एक लंबे समय से हाइपरसोनिक हथियार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आख़िर क्या होती है हाइपरसोनिक मिसाइल ?
हाइपरसोनिक मिसाइल से आशय उन मिसाइलों से है जो आवाज़ की गति से पांच गुना तेज रफ़्तार (5 Mach) से उड़ते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं। लेकिन हाइपरसोनिक हथियारों को उनका विशेष दर्जा उनकी स्पीड से नहीं मिलता है। हाइपरसोनिक मिसाइल पिछले 30-35 सालों की सबसे आधुनिक मिसाइल तकनीक है। इसके तहत पहले एक व्हीकल मिसाइल को अंतरिक्ष में ले जाया जाता है। इसके बाद मिसाइल इतनी तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं कि एंटी मिसाइल सिस्टम इन्हें ट्रैक करके नष्ट नहीं कर पाते। बैलिस्टिक मिसाइल भी हायपरसोनिक गति से चलती है लेकिन जब उसे एक जगह से लॉन्च किया जाता है तो पता चल जाता है कि वह कहां गिरेगी। ऐसे में इन मिसाइलों को ट्रैक करना आसान होता है। इसके साथ ही लॉन्चिंग के बाद इन मिसाइलों की दिशा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइल के साथ लॉन्चिंग के बाद दिशा परिवर्तन संभव है। ये मिसाइल वायुमंडल में हाइपरसोनिक स्पीड से ग्लाइड करती हैं और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं, चूंकि ये बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह आर्क और प्रॉजेक्टाइल नहीं बनाती हैं, इस वजह से इनके लक्ष्य का पता लगाना काफ़ी मुश्किल होता है। ऐसे में ये एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पकड़ में नहीं आती हैं। सरल शब्दों में कहें तो अगर कोई मुल्क हाइपरसोनिक मिसाइल लॉन्च करता है तो उसे एंटी डिफेंस मिसाइल सिस्टम की मदद से रोकना लगभग नामुमकिन होगा क्योंकि इस तकनीक से लैस मिसाइलों की दिशा को लॉन्चिंग के बाद निर्देशित किया जा सकता है। ये मिसाइल राडार की पकड़ में भी नहीं आती हैं। इससे इन मिसाइलों के लक्ष्य को लेकर एक भ्रम की स्थिति पैदा होती है। अमेरिका ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि चीन अपने दम पर अपने टेक्नॉलॉजी बेस को इतना मजबूत कर लेगा कि वह ऐसी तकनीक विकसित कर सके।
हालांकि जिस भी मुल्क के पास स्पेस कार्यक्रम है, उसके पास हाइपरसोनिक तकनीक होती है। लेकिन इसे हथियार में बदलने के लिए ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम के साथ- साथ सैटेलाइट, इंटीग्रेशन, और वॉरहेड के साथ- साथ एक पूरा सिस्टम चाहिए और चीन अभी इससे काफ़ी दूर है। अब से लगभग साठ साल पहले भी विश्व इतिहास में एक ऐसा मौका आया था जब ‘अमेरिकी प्रभुत्व’ को चुनौती दी गयी थी। उस मौके को क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे। क्यूबा मिसाइल संकट के बाद दुनिया को ये समझ आया कि परमाणु हथियार अगर एक देश चलाएगा तो दूसरा देश भी चला सकता है जिसकी वजह से दोनों की तबाही हो सकती है। इसकी वजह से कई संधियां हुईं और परमाणु युद्ध टाले जा सके।
लेकिन साल 2001 में अमेरिका ने एबीएम ट्रीटी (एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल ट्रीटी) से खुद को बाहर करके एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम बनाने शुरू किए। उसने तर्क दिया कि वह उत्तर कोरिया जैसे छोटे देशों से अपनी रक्षा करने के लिए डिफेंस सिस्टम बना रहा है, इससे चीन और रूस में घबराहट होना लाजमी था।