भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद – UPSC

भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद – UPSC

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नवंबर 2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए थे और अपना नया नक्शा जारी किया। इस नक्शे में कालापानी भी शामिल था। नेपाल ने इसे लेकर तीखी आपत्ति प्रकट करते हुए कालापानी को अपना इलाक़ा बताया था। अब दोनों देशों के बीच लिपुलेख को लेकर तनाव बना हुआ है। लिपुलेख नेपाल के उत्तर-पश्चिम में है। यह भारत, नेपाल और चीन की सीमा से लगता है। भारत इस इलाक़े को उत्तराखंड का हिस्सा मानता है और नेपाल अपना हिस्सा। भारत ने लिपुलेख में क़रीब 5,200 मीटर रोड का उद्घाटन किया है और इसे लेकर नेपाल के लोग ग़ुस्से में हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी एक बड़ा मुद्दा है। सुस्ता और कालापानी इलाक़े को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद है। लिपुलेख में सड़क निर्माण मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले हिंदू, बौद्ध और जैन तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए किया जा रहा है। इस सड़क की मदद से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा महज एक हफ़्ते में की जा सकेगी। पहले इसमें दो-तीन हफ़्ते लगते थे।


दोनों देशों के बीच साल 2015 से ही तनाव चल रहा है, जब भारत ने नेपाल के नए संविधान का विरोध किया था और इसके जवाब में अनाधिकारिक रूप से आर्थिक नाकेबंदी लगा दी थी। नेपाल ने भी पिछले वर्षों में भारत की बजाय चीन पर ज़्यादा भरोसा किया है, जबकि ऐतिहासिक रूप से नेपाल के सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक सम्बन्ध भारत से रहे हैं। नेपाल दावा करता रहा है कि महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख सहित सभी क्षेत्र 1816 की सुगौली संधि के आधार पर नेपाल के क्षेत्र का हिस्सा हैं। हाल ही में नेपाल कैबिनेट ने एक नए नक़्शे पर मुहर लगाई थी जिसमें लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताया गया है सुगौली की संधि ने काली नदी के उत्पत्ति स्थल को भारत और नेपाल की सीमा तय किया। लेकिन दोनों देश काली नदी के स्रोत को लेकर अलग-अलग राय रखते हैं।

एक लैंडलॉक देश होने की वजह से नेपाल कई सालों तक भारत के आयात पर निर्भर था और भारत ने नेपाल के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन हाल के सालों में नेपाल भारत के प्रभाव से दूर हुआ है और चीन ने धीरे-धीरे नेपाल में निवेश और क़र्ज़ देकर उस जगह को भरा है। चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में नेपाल को एक अहम पार्टनर के तौर पर देखता है और वैश्विक व्यापार बढ़ाने के अपने बड़े प्लान के उद्देश्य से नेपाल के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना चाहता है। भारत के लिए चीन के सीमावर्ती सामरिक क्षेत्र को छोड़ना मुश्किल होगा।