इस लेख में आप पढ़ेंगे : भारत और नेपाल के बदलते रिश्ते – UPSC
पिछले दो दशकों से नेपाल की राजनीति उतार-चढ़ाव के दौर से गुज़रती रही है। 90 के दशक में राजशाही के स्थान पर लोकतंत्र की बहाली को लेकर जो आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, उसमे चीन समर्थित माओवादी गुट एक ताकत के रूप में उभर कर सामने आये और यहीं से भारत और नेपाल के ऐतिहासिक सम्बन्धो में दरार पड़नी प्रारम्भ हुई। एक समय नेपाल में चीन की कोई भूमिका नहीं थी लेकिन आज नेपाल की राजनीति में चीन का दखल किसी से छिपा नहीं है। 2015 में नेपाल का संविधान लागू हुआ जिससे वहां लोकतंत्र की शुरुआत हुई। भारत हमेशा से ही नेपाल में लोकतंत्र की बहाली का समर्थक रहा है।
पिछले 6 वर्षो की अवधि में अनेक ऐसी घटनाएं हुई है जिससे दोनों देशो के मध्य सम्बन्ध सामान्य नहीं माने जा सकते, कुछ विवादित मुद्दे इस प्रकार से रहे है :-
- नेपाल की मौजूदा माओवादी सरकार भारत के साथ 1950 की ‘पीस एंड फ्रेंडशिप’ संधि को समाप्त करने की मांग करती रही है, और इस संधि को वह नेपाल की सम्प्रभुता में दखल मानती है।
- नवंबर 2019 में जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशो में विभाजित कर भारत के द्वारा जो मानचित्र जारी किया गया था उसपर नेपाल के द्वारा आपत्ति प्रकट की गयी थी क्योकि उसमे कालापानी, लिपुलेख और सुस्ता को भारत के अभिन्न हिस्से के रूप में दर्शाया गया था, जिसे 1816 की संगोळी की संधि का उल्लंघन माना माना गया।
- भारत ने लिपुलेख में तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए 5200 किलोमीटर लम्बी सड़क का उद्घाटन किया है जिसे नेपाल ने अपनी सम्प्रभुत का उल्लंघन माना है।
- 2015 में जब नेपाल का संविधान लागु हुआ था और उसमे मधेशियो के हितो की अवहेलना की गयी थी तो भारत ने विरोध स्वरुप नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी का समर्थन किया था।
- हाल के वर्षो में नेपाल में पानी को लेकर भी राजनीति होती रही है और भारत पर पानी चोरी के आरोप लगते रहे है
भारत के लिए सबसे बड़ा मसला चीन के साथ नेपाल की निकटता को लेकर रहा है। 2017 में नेपाल ने चीन की ‘वन बैल्ट वन रोड‘ परयोजना में सम्लित होकर संकेत दे दिए थे की अब चीन उसकी पहली प्राथमिकता में सम्मिलित है। आज नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा मंदारिन अनिवार्य रूप से पढ़ाई जा रही है। चीन ने नेपाल में ‘क्रॉस बॉर्डर इकनोमिक जोन‘ स्थापित कर लिया है। अगस्त 2018 में भारत की अवहेलना करते हुए चीन के साथ सैन्य अभ्यास को प्राथमिकता दी गयी। इसके अलावा चीन काठमांडू को रेलवे नेटवर्क से जोड़ने का भी रोडमैप तैयार कर चूका है। नेपाल के माओवादी दल अपने यहाँ भारत विरोधी मुहीम का समर्थन करते रहे है।
जहाँ तक 1950 की पीस एंड फ्रेंडशिप संधि का सवाल है, दस अनुछेद वाली इस संधि में नेपाल को व्यवसाय, रोज़गार और आवागमन के क्षेत्र में अनेक विशेष रियायते प्रदान की गयी है। अब इस संधि के किसी एक प्रावधान पर बात करना बेमानी होगा क्योकि संधि में स्पष्ट उल्लेख है की या तो इसके सही अनुछेद लागु होंगे या फिर इसे पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है। नेपाल की राजनितिक अस्थिरता का चीन ने हमेशा से लाभ उठाया है और नेपाल के माओवादी गुट चीन के अजेंडे को थोपकर भारत के लिए समस्या खड़ी करते रहे है। जबकि भारत शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के आधार पर पडोसी देशो के साथ अपने सम्बन्धो को वरीयता देता रहा है। नेपाल के माओवादी गुट सीमा सम्बन्धी और पानी जैसे मुद्दों को उठाकर अपनी जनता का ध्यान तो भटका सकते है लेकिन उनके पास मूल समस्या का कोई समाधान नहीं है। यही कारण है की संविधान लागु होने के बाद भी नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है यहां तक की कुछ लोग पुनः राजशाही की वापसी के लिए सडको पर प्रदर्शन करते देखे जा सकते है।