भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरे संकट से जूझ रही है। कोविड महामारी का असर कम होने के बाद, बुरी तरह लड़खड़ाई देश की अर्थव्यवस्था के संभलने की उम्मीद थी।लेकिन महंगाई और तेजी से गिरते रुपये ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुश्किल कर दिया है।
देश में जून में खुदरा महंगाई दर 7.01 फीसदी थी हालांकि ये मई की 7.04 फीसदी से कम है। लेकिन अभी भी यह आरबीआई की अधिकतम सीमा यानी छह फीसदी से अधिक है, दूसरी ओर डॉलर की तुलना में रुपए में तेज़ गिरावट जारी है
डॉलर की तुलना में रुपया गिर कर 80 के स्तर के पार कर गया। डॉलर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इससे घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं। यूं तो दुनिया भर में हाल के दिनों में महंगाई बढ़ी है। इसकी अहम वजह कोविड की वजह से सप्लाई के मोर्चे पर दिक्कत से लेकर हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल और खाद्य वस्तुओं के दाम में इजाफा है।
हाल में जो महंगाई बढ़ी है उसके पीछे कई कारण उतरदाई माने जा सकते है –
- सरकार की नीतियों की वजह से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने नवंबर से फरवरी तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए थे लेकिन. जैसे ही चुनाव खत्म हुए पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए गए। इससे अचानक महंगाई बढ़ गई है दूसरी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल के दाम बढ़े और इसका भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम पर असर पड़ा है ।
- अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है इसलिए हमारे यहां से डॉलर का निकलना शुरू हो चुका है। यानी निवेशक वहां अपना निवेश कर रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा ब्याज मिल रहा है इस वजह से डॉलर के मुकाबले सिर्फ रुपया कमजोर होता जा रहा है।
- ऐसे दौर में जब महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है जीएसटी बढ़ाने से महंगाई और बढ़ने वाली है।
- रुपया कमजोर होने से हमारा आयात और ज्यादा महंगा होता जाएगा और महंगाई इससे भी ज्यादा बढ़ती जाएगी।
- भारत अपने कुल तेल का करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है। जैसे-जैसे रुपया गिरेगा कच्चे तेल का आयात बिल बढ़ेगा और इस वजह से पेट्रोल और डीज़ल दोनों की कीमतों में बढ़ोतरी होगी। इसका सीधा असर परिवहन की लागत पर पड़ेगा और माल की कीमतों में वृद्धि होने से महंगाई बढ़ती जायगी।
- भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है यानी आयात ज़्यादा कर रहे हैं और निर्यात कम। इसका मतलब यह हुआ कि विदेशी मुद्रा भंडार भरने की तुलना में ख़ाली ज़्यादा हो रहा है जो अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है भारत का निर्यात जून महीने में 16.8% बढ़ा है जबकि आयात में 51% की बढ़ोतरी हुई है।
- कोविड महामारी के बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था काफी मज़बूत हो गई थी। कहने के लिए तो भारत की अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है लेकिन वो अभी भी 2019 के स्तर पर नहीं पहुँच पाई है और उसकी वजह है कि भारत की अर्थव्यवस्था में डिमांड कम है जब तक डिमांड नहीं होगी तब तक विकास दर आगे नहीं बढ़ेगी।
रूपए में आयी गिरावट का एक सीधा असर उन छात्रों पर पड़ेगा जो पढाई के लिए विदेश जाने की योजना बना रहे हैं. डॉलर के मुक़ाबले रूपए के कमज़ोर होने से भारतीय छात्रों के लिए विदेशों में शिक्षा ले पाना मंहगा हो जायेगा।
बढ़ती मंहगाई को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है?
इस माहौल में आरबीआई के रेपो रेट (जिस ब्याज दर पर आरबीआई बैंकों को कर्ज़ देता है) को बढ़ाना सही कदम हो सकता है। अगर आरबीआई रेपो रेट नहीं बढ़ाता यानी निवेश करने वालों को ज्यादा ब्याज नहीं देता तो निवेशक यहां से पैसा निकाल कर बाहर ले जाते। चूंकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है इसलिए हमारे यहां से डॉलर का निकलना शुरू हो चुका है। यानी निवेशक वहां अपना निवेश कर रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा ब्याज मिल रहा है.इसलिए हम ब्याज दर बढ़ा कर निवेशकों को न रोकें तो यहां से डॉलर निकलना शुरू हो जाएगा। इससे हमारा रुपया और कमजोर हो जाएगा. रुपया कमजोर होने से हमारा आयात और ज्यादा महंगा हो जाएगा और महंगाई इससे भी ज्यादा बढ़ जाएगी।
जब जीएसटी की शुरुआत की गई थी तब एवरेज न्यूट्रल रेट 12 फीसदी रखने की बात हुई थी। लेकिन राजनीतिक कारणों से कई राज्यों ने यह मांग रखी की यह रेट कम होना चाहिए। इसलिए कुछ जरूरी चीजों पर कोई जीएसटी नहीं लगाया गया और कुछ चीजों पर पांच-दस फीसदी टैक्स लगाया गया। लेकिन इससे सरकारी का राजस्व घटने लगा है पहले ही रियल एस्टेट, पेट्रोल जैसे उत्पाद जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। इसलिए जीएसटी के जरिये जितने राजस्व का लक्ष्य था वह नहीं आ रहा है. यही वजह है कि सरकार ने जीएसटी दर बढ़ाया है।
हमारे लिए डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी फायदेमंद भी हो सकता है क्योंकि इससे हमारा सामान दुनिया में सस्ता होगा और हमारे निर्यात को फायदा मिलेगा। चीन, बांग्लादेश जैसे देशों ने अपनी मुद्र को अवमूल्यन कर दुनिया के बाजार में अपना माल सस्ता रखा और इसका उन्हें फायदा हुआ है। हमें डॉलर की जरूरत है इसलिए हम दुनिया के बाजार में सस्ता माल बेचकर ज्यादा डॉलर कमा सकते हैं। लेकिन दिक्क्त यह है हमें ज्यादा आयात करना पड़ता है। और इसके लिए हमें डॉलर की जरूरत पड़ती है.। रुपये को कृत्रिम तरीके से मजबूत किया जा सकता है। लेकिन यह भारत के लिए नुकसानदेह साबित होगा. इसके बजाय सरकार को उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के कदम उठाए चाहिए ताकि वे निर्यात करें और डॉलर कमाएं।
भारत में कई लोग ये कह रहे हैं कि क्या भारत की स्थिति पाकिस्तान या श्रीलंका जैसी स्थिति हो सकती है, जहां स्थानीय मुद्रा काफी गिर गई और अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई हुई है? भारत की इन देशों से तुलना बेमानी है यहाँ ऐसी स्थिति कभी नहीं आएगी. भारत का घरेलू बाजार काफी मजबूत है और इसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी काफी बड़ा है. इसलिए भारत में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी स्थिति की कल्पना करना नासमझी है।